Tuesday, February 8, 2011

प्रेम की उद्दात अभिव्यक्ति 'नीरज' : (प्रेम श्रृंखला - 2)


इटावा (उत्तर प्रदेश) के पुरावली गाँव में जन्मे पद्मश्री गोपालदास नीरज हिंदी साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. ( दुर्भाग्य से इनके जन्मदिन की तिथी 4 जनवरी  या  8 फरवरी; में मुझे कुछ संशय है, अलग-अलग सन्दर्भों में पृथक तिथियाँ मिल रही हैं )  ये हिंदी के उन चंद साहित्यकारों में हैं जिन्होंने फिल्म गीत लेखन को भी अपनी कलम से समृद्ध किया है.
मंचीय कवि सम्मेलनों में इनकी प्रखर उपस्थिति रही है, और इसके ये अप्रतिम स्तंभ मने जाते हैं. यूँ तो इन्होने साहित्य और कविताओं के माध्यम से हरेक पहलु को स्पर्श किया है, मगर आम जनता उन्हें प्रेम के अन्यतम गायक के रूप में ही देखती है, तो युवा पीढ़ी को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कवियों में बच्चन जी के साथ इन्ही का नाम लिया जाता रहा है.
कविवर दिनकर ने इन्हें 'हिंदी की वीणा' कहा था.
हिंदी सिनेमा को अपने गीतों से इन्होने काफी समृद्ध किया. देव आनंद और राजकपूर जैसे फिल्मकारों ने इनकी प्रतिभा का हमेशा सम्मान किया, मगर नीरज जी ने खुद ही स्वयं को सिने जगत से दूर कर लिया. इसके लिए फिल्म जगत की राजनीति और गुटबाजी भी जिम्मेदार थी कि जिसमें यह अफवाह फैला दी गई थी कि 'इनके गाने तो हिट हो जाते हैं, मगर फिल्में फ्लॉप हो जाती हैं (!!!)'. फिर भी कुछ फिल्मकारों ने इनपर से अपना भरोसा टूटने नहीं दिया. देव साहब के नए प्रोजेक्ट्स में अभी भी नीरज जी द्वारा गीत लिखे जा रहे हैं.
एक नजर इनके कुछ यादगार फ़िल्मी सफर पर -
लिखे जो खत तुझे ... (कन्यादान)
ऐ भाई जरा देख के चलो ... (मेरा नाम जोकर)
दिल आज शायर है ... (गैम्बलर)
जीवन की बगिया महकेगी ... (तेरे मेरे सपने)
मेघा छाए आधी रात ... (शर्मीली)
खिलते हैं गुल यहाँ... (शर्मीली)
फूलों के रंग से ... (प्रेम पुजारी)
शोखियों में घोला जाये ... (प्रेम पुजारी)
कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे ... (नई उमर की नई फसल)
....................................
...................................
उनके सुदीर्घ और स्वस्थ जीवन की शुभकामनाओं के साथ यह कामना भी कि वो यूँ ही अपने कलम से गीत रचते रहें.
उनकी एक कविता का आनंद उनकी ही आवाज में यहाँ भी ले सकते हैं.
चलते चलते उनकी एक प्रमुख कविता-
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं.....
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
हैं फ़ूल रोकते, काँटें मुझे चलाते..
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढाते..
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते..
मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे..
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं..
मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं..
हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से..
सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूं..
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझपर कोई एह्सान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
शर्म के जल से राह सदा सिंचती है..
गती की मशाल आंधी मैं ही हंसती है..
शोलों से ही श्रृंगार पथिक का होता है..
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है..
पग में गति आती है, छाले छिलने से..
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
फूलों से जग आसान नहीं होता है..
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है..
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी..
है नाश जहां निर्मम वहीं होता है..
मैं बसा सकूँ नव-स्वर्ग धरापर जिससे..
तुम मेरी हरी बस्ती वीरान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता..
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता जाता..
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..




    7 comments:

    Subhashis Das. said...

    dasGrand Bittu,

    Kudos to you for remembering someone as worthy and magnanimous as Niraj.
    You see his poems in films did not have the grand opulence of Sahir's use of complex Urdu, but nevertheless his lines were so simple and subtle and his use of simple Hindi ,that a chord did touch somewhere deep within.

    His combination with "Sachin- Karta" or the granddaddy of all the musicians; the late S.D.Burman was just divine.

    i just contain myself narrating Kishore babu's amazing narrative of Niraj in Prem Pujari:

    ".... Sason ki sargam
    Dhadkan ki veena
    sapno ki geetanjali tum
    man ki gali mein mahke jo hardam
    waisi juhi ki kali tum."

    it extends to
    "..... chota safar ho
    lamba safar ho
    Suni dagar ho ya mela
    yad tum aaye
    man ho jaaye
    bhid ke bich akela...."

    Such linhes and that too in just plain Hindi devoid of erudite Urdu, wow! they have never been written. I have never heard the term "geetanjali" being used in any film song"
    The magic is gone.

    We do have great poets in the Hindi film industry these days,but where is the simple narration of love? How about giving love a flair of poetry and nature?

    Congrats Bittu for such a grand blog.Thanx again for remembering Niraj.
    Mausaji

    वीना श्रीवास्तव said...

    तबियत खुश हो गई कविता पढ़कर...बहुत-बहुत बधाई...

    Shikha Kaushik said...

    bahut khoob prastuti .shubkamnaye basant panchmi ki .

    ZEAL said...

    .

    पहले के गानों में जो बात होती थी , वो आजकल कहाँ । अब तो बस rhyming कर देते हैं , जबरदस्ती का शोर गुल होता है उसमें। पहले की lyrics अर्थपूर्ण होती थीं, मन की गहराइयों तक पहुँचती थीं।

    श्री गोपालदास नीरज जी का स्मरण करने और करवाने के लिए आभार। उनके दिए गीत अनमोल हैं।

    .

    Rajasthan Study said...

    उत्तम अति उत्तम। बधाई जी आपको।

    Vineeta Yashsavi said...

    great...

    Dr. Zakir Ali Rajnish said...

    सचमुच नीरज जी अपने समय के बेजोड़ रचनाकार हैं।

    उनके शानदार गीतों को यहां प्रस्‍तुत करने का शुक्रिया।

    ---------
    समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
    प्रकृति की सूक्ष्‍म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।

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