Friday, September 5, 2014

शिक्षक दिवस के अवसर पर गुरु द्रोणाचार्य का स्मरण


यूँ तो गुरु द्रोण को आज के दिन थोड़ी आलोचना के साथ ही याद किया जाता है। शिक्षा को राजकुल तक सीमित करने, व्यवसायीकरण करने और एकलव्य के साथ अन्याय करने तक के लिए भी... मगर कई मायनों में उनकी तुलना आज के शिक्षा के व्यवसायियों से की भी नहीं जा सकती। खैर फ़िलहाल चर्चा एकलव्य की। उनके ऊपर एकलव्य का अंगूठा गुरु दक्षिणा में मांग लेने के आरोप लगाये जाते हैं। मगर एकलव्य जैसे शिष्य के साथ कोई गुरु ऐसा कैसे कर सकता है ! कई बार गुरु की कठोरता के पीछे कुछ और ही आशय होता है। प्राचीन परम्पराओं में तीर चलाने की कई विधियाँ प्रचलित थीं। इनमें  अंगूठे का प्रयोग वाली विधि शेष से कमतर ही मानी जाती थी। अंगूठे को तीर चलाने की निरंतरता में बाधक ही माना जाता था। आज भी आधुनिक तीरंदाज सामान्यतः अंगूठे का प्रयोग नहीं करते। तो कहीं ऐसा तो नहीं कि जिसप्रकार एकलव्य ने बिना द्रोण को बताये उनसे ज्ञान लिया उसी प्रकार गुरु द्रोण ने भी अपनी सीमाओं के बावजूद और जगत के तमाम लांक्षण उठाते हुए भी एकलव्य को उसकी गुरुभक्ति का प्रतिदान दे ही दिया, जो कुछ न कहते हुए भी उसके भविष्य के लिए बेहतर ही था। अंगूठे के बिना भी उसकी लगन उसे तीरंदाजी के अभ्यास के लिए प्रेरित करती ही और अब उसके पास वही विकल्प होता जो अन्य राजपुरुषों के पास थे। अन्यथा यदि गुरु द्रोण उससे उसकी हथेली भी मांग ले सकते थे और यहां शायद ही कोई हो जो कहे कि एकलव्य इंकार कर देता...
इससे यह भी स्पष्ट है कि गुरु-शिष्य संबंध में दोनों की योग्यता ही नहीं समर्पण का भी कितना महत्व है.....

4 comments:

कविता रावत said...

आज योग्यता और समर्पण की सीख की जरुरत है ..
शिक्षक दिवस पर बहुत सुन्दर संस्मरण

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुंदर ...शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं 

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुंदर ...शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं 

Kailash Sharma said...

एक नयी सोच...बहुत सुन्दर..

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...