Sunday, February 6, 2022

स्वर कोकिला का मौन हो जाना...

 


हमारे देश की पहचान जिन चंद नामों से है उनमें से एक को आज हमने खो दिया। इसी साल जनवरी महीने की शुरुआत में कोविड संक्रमित होने के बाद मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर जी ने आज रविवार सुबह 8 बजकर 12 मिनट पर 92 साल की उम्र में अंतिम साँस ली। इस देश के आम आदमी के जीवन का शायद ही कोई दिन होगा जिस दिन उसके कानों में लता जी के किसी गीत की आवाज न जाती हो। मेरे जैसे रात को सोते सुबह उठते ही विविध भारतीऔर पुराने गाने सुनने वाले व्यक्तियों को अगली सुबह यह याद दिलायेगी कि यह आवाज अब सशरीर हमारे बीच मौजूद नहीं है। भारत के रत्नों में आज एक और रत्न कम हो गया। 


इस देश में बहुत कम ऐसे अवसर आते हैं जब हर इंसान के मन में एक ही भाव हों। आज भी फेसबुक टाइमलाइन या व्हाट्सएप स्टेटस यही दर्शा रहे हैं। 


सोशल मीडिया की हालिया परंपरा में धारा के अलग बोल कर अपनी अलग पहचान दिखाने के इच्छुक कुछ लोग भी दिखेंगे, मगर लता जी अब इन सब से बहुत दूर निकल चुकी हैं।


उनके साथ हिंदी फिल्म संगीत के सुमधुर इतिहास का एक बड़ा हिस्सा भी चला गया है। पीछे छोड़ गई हैं असंख्य गीत जो संगीत प्रिय आम आदमी के विभिन्न मनोभावों में उसके दिल में उमड़ते रहेंगे। 

माता सरस्वती की विदाई के दिन ही स्वर साम्राज्ञी की भी विदाई 


उन्होंने ख़ुद भी कभी शास्त्रीय संगीत में संभावित भूमिका में कमी पर अफसोस ज़ाहिर किया था। काश हिंदी फ़िल्म संगीत के अलावा भी अन्य विधायें अपने बीच उनकी उपस्थिति का और लाभ उठा पातीं...


उन्हें याद करते गीतकार आनंद बख्शी जी की एक कविता  जो उन्होंने 1973 में लिखी थी लेकिन उन्होंने लता जी को ये कविता 2001 में भेंट की, जब उन्हें पद्म विभूषण से नवाज़ा गया था।


ये गुलशन में बाद-ए-सबा गा रही है


के पर्वत पे काली घटा गा रही है


ये झरनों ने पैदा किया है तरन्नुम


कि नदियां कोई गीत सा गा रही हैं


ये माहिवाल को याद करती है सोहनी


कि मीरा भजन श्याम का गा रही हैं


मुझे जानें क्या क्या गुमां हो रहे हैं


नहीं और कोई लता गा रही हैं


यूं ही काश गाती रहें ये हमेशा


दुआ आज खुद ये दुआ गा रही है


लता को पसंद करने वाले देश, धर्म, भाषा आदि की सीमाओं से भी परे थे। शायर हबीब जालिब ने भी एक नज़्म लता जी के लिए लिखी थी। उन्हें श्रद्धांजलि देते इस नज़्म के माध्यम से भी याद करते हैं...


तेरे मधुर गीतों के सहारे

बीते हैं दिन रेन हमारे


तेरी अगर आवाज़ न होती

बुझ जाती जीवन की जोती

तेरे सच्चे सुर हैं ऐसे

जैसे सूरज चांद सितारे


तेरे मधुर गीतों के सहारे

बीते हैं दिन रेन हमारे


क्या क्या तू ने गीत हैं गाये

सुर जब लागे मन झुक जाए

तुझ को सुन कर जी उठते हैं

हम जैसे दुख-दर्द के मारे


तेरे मधुर गीतों के सहारे

बीते हैं दिन रेन हमारे


'मीरा' तुझ में आन बसी है

अंग वही है रंग वही है

जग में तेरे दास हैं इतने

जितने हैं आकाश पे तारे


तेरे मधुर गीतों के सहारे

बीते हैं दिन रेन हमारे

1 comment:

Radhey said...

आज सरस्वती के स्वरों को विराम लगा है । इस जहाँ से दूसरी लता मंगेशकर कभी नहीं होगी

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