'गुदडी का लाल' - यही शब्द किसी के भी मुंह से निकलेगा, जब वो संजीत कुमार के बारे में सुनेगा। झाड़खंड एकेडमिक काउंसिल की 12 वीं की परीक्षा में कला वर्ग में पूरे राज्य में टौपर रहे - संजीत महतो। जिन विपरीत परिस्थितियों में इन्होने सफलता प्राप्त की वह इसी शेर को दोहराने पर विवश करता है कि - "कौन कहता है आसमान में सुराख़ हो नहीं सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों। "
संजीत के पिता किसान हैं, जो किसी तरह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह कर पा रहे हैं। इन्ही परिस्थितियों में संजीत ने अपने गाँव से ही 10 वीं की पढाई पूरी की. आगे की शिक्षा की वहां व्यवस्था न होने के कारण उसने 2007 में रांची के रविन्द्रनाथ टैगोर इंटर कॉलेज में दाखिला लिया. यहाँ उसने चुटिया नामक स्थान पर एक लौज में रहने की व्यवस्था की. खाने-पीने की व्यवस्था के लिए लौज में रहने वाले 15 दोस्तों के लिए सुबह - शाम खाना बनता और खुद भी खाता. साथ-साथ पढाई के प्रति उसकी लगन और समर्पण ने उसे आज इस मुकाम पर पहुंचा दिया है.
जाहिर है आगे उसकी तमन्ना उच्च और गुणवत्तायुक्त शिक्षा पाने की होगी, मगर उसकी गरीबी फिर कहीं उसके आड़े न आ जाये ! ऐसे प्रतिभाशाली छात्रों के हित का दावा करने वाली सरकारी-गैरसरकारी घोषणाओं का कर्मकांड अभी शेष है, मगर आवश्यक है कि इनपर ईमानदारी से अमल भी हो।
ऐसे गुदडी के लालों की चर्चा गाहे-बगाहे होती रहती है मगर उचित कार्यनीति के अभाव में ये कहीं गुमनामी में खो जाते भी देखे गए हैं। सुजीत और ऐसी ही अन्य प्रतिभाओं के साथ ऐसा न हो हमारी तो यही कामना रहेगी। सुजीत और ऐसे सभी प्रतिभाशाली छात्रों को उनके उज्ज्व्वल भविष्य की शुभकामनाएं.