Showing posts with label जगजीत सिंह. Show all posts
Showing posts with label जगजीत सिंह. Show all posts

Tuesday, October 25, 2011

जगजीत सिंह : एक संगीतमय श्रद्धांजलि


गत 10  अक्तूबर को हमने उस शख्सियत को खो दिया जो जाने कब और कैसे चुप - चाप हमारी साँसों में शामिल हो दिल में कहीं उतर गया था. जगजीत सिंह का जाना मैं अपनी व्यक्तिगत क्षति मानता हूँ. अपने आप का ही साथ सबसे ज्यादा पसन्द करने वाले मेरे जैसे लोगों के पास हर मूड में कभी कोई होता था तो वो निश्चित रूप से जगजीत सिंह ही थे. खुश हुआ तो जगजीत, उदास हुआ तो जगजीत, जीत गया तो जगजीत, हार गया तो जगजीत, भीड़ में रहूँ तो जगजीत, तन्हाई में रहूँ तो जगजीत..... उनकी उपस्थिति को अपने से अलग मानना छोड़ ही दिया था मैंने. ऐसे में उनका जाना मेरे लिए कितना बड़ा मानसिक सदमा था मैं ही समझ सकता हूँ. 

मैं बड़ा ही साधारण आदमी हूँ. भारी-भरकम सिद्धांतों से मैं दूर ही भागता हूँ.  बच्चन जी की मधुशाला से ही मैंने जीवन दर्शन समझ लिया, गांधीजी के गीता पर लिखी टीका से आगे जाने की हिम्मत नहीं हुई और गज़ल जैसी ऊँचे दर्जे की चीज में भी बस जगजीत स्कूल का ही छात्र बने रहने से ज्यादा की आवश्यकता मुझे कभी महसूस नहीं हुई. और यही चीज जगजीत सिंह को बाकी सभी नामी-गिरामी ग़ज़ल गायकों से अलग करेगी कि उन्होंने हाई-प्रोफाइल महफ़िलों और शास्त्रीय दायरों से ग़ज़ल को मुक्त कर आम-से-आम आदमी तक सुलभ करा दिया.खुद भी मेरी कोशिश होती है कि विज्ञान आदि किसी विषय पर लिखी पोस्ट या आर्टिकल को इस प्रकार से लिख सकूँ कि आम-से-आम आदमी को भी सहजता से समझ आ सके. इसी प्रवृत्ति की समानता ने भी शायद मुझे जगजीत सिंह से बांधे रखा था. उनकी चुनी हरेक नज्म, हरेक लफ्ज़ में आम आदमी ने अपने ख्यालों की अभिव्यक्ति पाई; विशेषकर युवाओं ने 'एंग्री यंग मैन' के अलावे भी अंतःकरण में कहीं उभरने वाली भावुक भावनाओं की अभिव्यक्ति में जगजीत सिंह को अपने काफी करीब पाया और शायद जगजीत इस धरती पर उन चंद कारणों में रहे जिसने दो अलग-अलग पीढ़ियों को एक साथ जोड़ा. अनगिनत ऐसे उदाहरण मिलेंगे जहाँ कि पिता अपने कमरे में जगजीत सिंह की ग़ज़ल  सुन रहे होंगे और दुसरे कमरे में उनके सुपुत्र भी जगजीत सिंह के साथ ही अपने ख्याल साझा कर रहे होंगे. यह तो मात्र मेरे जैसे एक अदना से प्रशंसक की भावनाएं हैं, उन्होंने तो न जाने कितने विज्ञ और सुधि श्रोताओं को अपना मुरीद बना लिया था. ऐसे ही एक प्रशंसक समूह का प्रयास था विगत 24  अक्तूबर को ' अनफोरगेटेबल जगजीत - अ म्यूजिकल ट्रिब्यूट ' ; जिसे सांस्कृतिक संस्था ' परिधि आर्ट ग्रुप ' ने आयोजित किया था. कार्यक्रम के आयोजन में अपूर्वा बजाज, पंकज नारायण और निर्मल वैद जी की महत्वपूर्ण भूमिका थी.



कार्यक्रम में जगजीत सिंह के छोटे भाई श्री करतार सिंह सहित कई परिजनों के अलावे सांसद श्री राजीव शुक्ल भी उपस्थित थे. 
करतार सिंह जी सहित उपस्थित परिजन व अतिथिगण

न्यूज 24  चैनल के मयंक जी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए गुलजार साहब की एक बहुत ही माकूल पंक्ति का उल्लेख किया -
" आज की रात - इस वक़्त के चूल्हे में, एक दोस्त का उपला और गया....." 

श्री आलोक श्रीवास्तव 

जगजीत सिंह जी के लिए कई नज्म लिखने वाले और वर्तमान में टीवी टुडे नेटवर्क के असोसिएट सीनियर प्रोड्यूसर श्री आलोक श्रीवास्तव जी ने भी जगजीत सिंह से जुडी अपनी कई यादें साझा कीं. 

" मंजिले क्या हैं ! रास्ता क्या है !!
हौसला हो तो फासला क्या है !!!.....
जब भी चाहेगा छीन लेगा उसको, 
सब उसी का है, आपका क्या है !!! "

इस कार्यक्रम को अपनी सुरमय श्रद्धांजलि दी विख्यात ग़ज़ल गायक श्री जितेन्द्र सिंह जाम्ब्वाल और श्री विनोद सहगल ने.


श्री जितेन्द्र सिंह जाम्ब्वाल 












श्री विनोद सहगल 


















जितेन्द्र सिंह द्वारा ' बात निकलेगी ' से जो बात शुरू हुई वो ' चिट्ठी न कोई सन्देश ', ' तुम इतना जो ' से गुजरते हुए विनोद जी के 'ग़ालिब' और 'होठों से छु लो तुम...' जैसे कई स्मृति चिह्नों से गुजरती हुई श्रोताओं को जगजीत सिंह से जुडी यादों के कहीं और करीब लेता गया.

 
अक्ष्दीप 

इस बीच जगजीत सिंह जी के रिश्ते में पौत्र अक्ष्दीप ने भी अपनी संगीतमय श्रद्धांजलि प्रस्तुत की - 

" जिसने  पैरों  के  निशाँ भी नहीं छोड़े पीछे, 
उस मुसाफिर का पता भी नहीं पुछा करते;.....
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते..."  

हमें भी यही उम्मीद है कि जगजीत सिंह के साथ बना हमारा यह रिश्ता समय के साथ और मजबूत ही बनेगा छुटेगा नहीं.....
परिजनों व् दर्शकों के साथ बैठे सांसद श्री राजीव शुक्ल 
प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँच कर भी जगजीत आम आदमी की अपनी छवि से कभी अलग नजर नहीं आये. समय के साथ उनकी जिंदगी में आने वाले झंझावातों को जिस दृढ़ता और सौम्यता से उन्होंने स्वीकारा उसने भी उन्हें आम आदमी के और करीब ला दिया. उनका व्यक्तित्व अपने प्रशंसकों के लिए वाकई एक स्वाभाविक आदर्श था. अंतिम समय तक वे संगीत के गिरते स्तर और गीतकारों - संगीतकारों को उनके वाजिब अधिकारों के लिए मुखर आवाज उठाते रहे. उनके प्रशंसक अच्छे संगीत और सच्चे कलाकारों को सम्मान दें तो यह भी जगजीत सिंह जी को एक सार्थक श्रद्धांजलि होगी.

मगर हाँ, इतना जरुर कहना चाहूँगा कि कार्यक्रम से पहले से ही जो सवाल मन में उभर रहा था वो अब भी अनुत्तरित ही है कि भावनाएं तो अब भी उभरती रहेंगीं मगर उन्हें अभिव्यक्त करने के लिए जो आवाज हमने अपने दिल में उतारी थी वो अब कहाँ मिलेगी !!!!!

Monday, October 10, 2011

जगजीत सिंह : कहाँ तुम चले गए.....


जगजीत सिंह एक ऐसा नाम, जो पिछले कई वर्षों से संगीत की स्वरलहरियों से गुजरता हमारे दिलों में उतरता रहा, आज उसी संगीत में घुल अमर हो गया है. निःशब्द हूँ, शब्द खो गए हैं अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए. और ऐसा हो भी क्यों न शब्दों का जादूगर ही जो चला गया; जो मौसिकी के एक घने साये के समान ही तो था !!!!!

मेरे ही नहीं न जाने कितनी पीढ़ियों और धर्म-उम्र की सीमा से परे प्रशंसकों को न सिर्फ उन्होंने अपनी करिश्माई आवाज से मोहित किया है बल्कि हम सभी ने जाने-अनजाने उन्हें अपने सुख-दुःख, खुशियों और गमों में शामिल भी किया है. कितनी रातें जागते हुए गुजारी हैं हमने आपके साथ और कितने दिनों को आपके सहारे काटा है. आज अपने सभी चाहने वालों को अकेला छोड़ एक अनंत यात्रा पर न जाने कौन से देश की ओर  निकल लिए. जानता हूँ की सृष्टि के इस चक्र से कोई नहीं बच सकता, मगर कुछ लोगों को यह हक़ नहीं मिलना चाहिए - कभी नहीं मिलना चाहिए कि बस मुंह मोड़ा और चल दिए...

कहते हैं जाने वाले को रोकर विदा नहीं करते, मगर कुछ रिश्ते ऐसे बन जाते हैं जो दिमाग से निर्धारित नहीं होते.....

आपने भी जिंदगी में कम गम झेले हों ऐसा नहीं था, मगर संगीत का सहारा आपके पास था अपने गम को छुपाने के लिए, जिसके साथ मुस्कुराते हुए आपने अपना गम तो छुपा लिया मगर हमारे पास तो यह विकल्प भी नहीं है. खैर अब हैं तो बस आपकी ग़ज़लों की विरासत .... और अब वही शायद साथ-साथ रहे हमारे...

आप जहाँ भी रहें, सुकून से रहे, और ईश्वर चित्रा जी को इस दुःख से उबरने की शक्ति दे यही प्रार्थना है.....

अपनी घुड़सवारी के शौक के समान ही खुबसूरत शब्दों पर सवार हो दिल में उतर जाने वाली आवाज के साथ जग को  जीतने वाले जगजीत सिंह  कभी भुलाये नहीं जा सकेंगे.....

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो,
भले छीन लो मुझसे, मेरी जवानी;
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, 
वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी.....



Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...