(हिंदी दिवस विशेष)
मैं यहाँ-हूँ यहाँ...जी हाँ अरुणाचल से ब्लौगिंग में वापस. और दूरियां वाकई कम हो गई हैं न सिर्फ मेरे और ब्लौगिंग के बीच, बल्कि हिंदी के ह्रदय प्रदेश से संबद्ध मैं और इस सुदूर उत्तर-पूर्व क्षेत्र के बीच भी. लगभग 1 सप्ताह से गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में ही हूँ, मगर भाषा को लेकर कोई विशेष समस्या नहीं पाई है. अपनी लचीली शैली में हिंदी यहाँ भी पूरी शान से विद्यमान है. गोहाटी से काफी दूरी तक तो 'विविध भारती' का भी साथ रहा, अलबत्ता यहाँ इससे संपर्क कायम नहीं हो सका है.
ऐसे में क्या यह स्वीकार करने के लिए किसी औपचारिक दिवस की प्रासंगिकता का कोई औचित्य है कि -
"हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तां हमारा..."
हाँ इतना जरुर कहूँगा कि व्यक्तिगत स्तर पर मैंने पाया है कि बहुतया हिंदी भाषी क्षेत्र अपने - आप में ही एक आत्ममुग्धता में रहते हैं, और अन्य भाषा तथा भाषियों के प्रति सामान्यतः एक उपहास तथा उपेक्षा सा भाव रखते हैं. अक्सर यही प्रवृत्ति विवादों का आधार बनती है और संकीर्ण राजनीति के बाजीगर इसका लाभ उठाकर 'राज' करते हैं.
तो आइये क्यों न हम भी प्रयास करें हिंदी के अलावे कम-से-कम एक क्षेत्रीय भाषा की कम-चलाऊ जानकारी का ही सही. यही प्रयास तो मूल होगा भारत की वास्तविक एकता का. क्योंकि यदि हम देशवासी एक-दुसरे की बोली ही नहीं समझेंगे तो गलतफहमियां और मनभेद तो होंगे ही.
यहाँ के अपने अनुभव आगे भी बांटूंगा और विश्वास करता हूँ कि वे सभी अपने - आप में एक 'धरोहर' ही होंगे.
साथ ही आप सभी ब्लौगर्स से एक रियायत देने का अनुरोध भी करूँगा. वो यह कि इन्टरनेट की सुविधा और उसकी परिस्थितियों के अनुरूप संभव है आगामी पोस्ट्स में कभी रोमन हिंदी का प्रयोग भी करना पड़े. हिंदी की अभिव्यक्ति के लचीलेपन की इस सुविधा का लाभ उठाते हुए यथासंभव आपतक इस सुदूर प्रान्त के अनुभव पहुँचाने का प्रयास करता रहूँगा.
शुभकामनाएं.