Wednesday, October 29, 2008

दीपावली vs सोहराई

अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है दीपावली। इसके प्रारंभ की जड़ें अतीत से भी परे हिन्दुस्तानी जनमानस की आस्था की परतों में है। मगर यह भी वास्तविकता है की यह पर्व अलग-अलग नामों के साथ लगभग पुरे विश्व में प्रचलित है. तो क्या हमें इस पर्व की मूल तक पहुँचने के बारे में नही सोचना चाहिए!
भारत में जैसा की हर पर्व के पीछे हर संप्रदाय की अपनी एक अलग ही मान्यता है, जो इसकी विविधता के कारण स्वाभाविक भी है। मगर जहाँ तक मैं समझता हूँ दिवाली की जड़ें 'आर्यों' के आगमन के पूर्व उस समाज तक भी जाती हैं जब 'मात्रिसत्तात्मक' व्यवस्था प्रचलित थी और प्रकृति की भी उपासना होती थी।
भारत में अधिकांश बातें प्रतीकों में छुपी हुई हैं। हमारे गांवो और आदिम समाज जो पूजा की आधुनिक और कानफोडू शोर वाली प्रथा से अछुता है आज भी दीपावली में जिन प्रमुख प्रतीकों का प्रयोग करता है वो हैं- 'दिया', 'मछली' और 'घडा' जो की fertility या 'प्रजनन शक्ति' के प्रतीक हैं. आदिम कृषक समाज धरती को माँ के रूप में देख उसकी उर्वरा शक्ति की ही पूजा करता था. भारत के सांस्कृतिक एकीकरण के अभूतपूर्व प्रयास में 'राम' के मध्यम से इस त्यौहार को भी हिंदू संस्कृति में आत्मसात कर लिया गया. आज भी ग्रामीण भारत में दीपावली मनाने की प्रक्रिया 'पारंपरिक' है 'सांस्कृतिक' नहीं. उदाहरण के लिए बिहार, झारखण्ड के गांवो में 'घरोंदा' बनाना, यम का दिया जलाना, या 'सोहराई' मनाया जाना जिसमें दिवाली के अगले दिन घर की दीवारों को प्राकृतिक रंगों से रंग जाता है और एक 'रेखा' द्वारा घर को घेर दिया जाता है जिसे 'बंधना' भी कहते हैं. मान्यता है की इससे 'अकाल मृत्यु' नहीं होती.
इन सारी परम्पराओं की विधि किसी धार्मिक पुस्तक में नही मिलेगी मगर इनकी जनस्विकार्यता इनके प्रचलन के मूल तत्वों पर पुनर्दृष्टि डालते हुए भारत की विविधता को एक नए परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत पर बल देती है, जोकि हमारी साझी धरोहर भी है.

Friday, October 17, 2008

श्रीराम राज्याभिषेक


आँखों देखे अनुभव, समाचार पत्रों और इन्टरनेट से जुटाई तस्वीरों के माध्यम से बनारस की रामलीला से सम्बंधित लेख का अन्तिम भाग प्रस्तुत कर रहा हूँ, आशा है पोस्ट पसंद आएगी.


श्रीराम राज्याभिषेक
अयोध्या के सिंहासन पर बैठे श्रीराम
ऐसा लग रहा था जैसे श्रीराम राज्याभिषेक का दृश्य देखने के लिए अयोध्यावासी ही नहीं अपितु संपूर्ण देवलोक भी व्याकुल हों। श्री राम व सीता को राज सिंहासन पर विराजमान होते देखने के लिए गुरु वशिष्ठ के साथ लंका के राजा विभीषण, सुग्रीव, अंगद, जामवंत, निषादराज व हनुमान सहित समस्त जनसमुदाय आतुर हैं। गुरु वशिष्ठ की आज्ञा पाकर श्रीराम ने दरबार में उपस्थित सभी का सिर नवाकर अभिवादन किया। श्रीराम की जय के घोष के बीच प्रभु के राजसिंहासन पर आरुढ़ होते ही रामनगर में चल रही रामलीला के 29 वें दिन रविवार को श्रीराम राज्याभिषेक की लीला संपन्न हुई।

लीला स्थल पर जाते श्री राम-लखन
काशीराज की परंपरा का निर्वहन करते महाराज कुंवर अनंतनारायण सिंह सायंकाल राजपरिवार के सदस्यों, दरबारियों, सभासदों के साथ रामनगर दुर्ग से पैदल चलकर अयोध्या लिलास्थल पहुँच चुके थे। राजा बने श्रीराम के सम्मान में कुंवर सहित सभी लोग जमीन पर बिछाए गए आसन पर बैठे। कुंवर ने श्रीराम को भेंट देकर राजतिलक किया। श्रीराम बने स्वरूप ने अपने गले का पुष्पहार कुंवर के गले में डाल दिया और हर-हर महादेव के उद्घोष से लीलास्थल गूंज उठा। समस्त देवता, चारों वेद और भगवान शिव भी समारोह में शामिल हुए। भगवान शिव के कैलाश प्रस्थान के बाद सभी वीर योद्धाओं को उपहार दे विदा किया गया। भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न वानर वीरों को विदाई देने दूर तक गए। सुग्रीव ने हनुमान की इच्छा को देखते हुए सर्वदा श्रीराम सेवा के लिए उन्हें मुक्त कर दिया।

अयोध्या के राजसिंहासन पर राम-सीता विराजमान हैं, भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न खड़े हैं तथा हनुमान को चरणों में नतमस्तक देख दर्शक भावविभोर हो उठे हैं।

Wednesday, October 8, 2008

बनारस की रामलीला
वाराणसी- भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक राजधानी. भोलेनाथ की इस नगरी की हर बात अनूठी है और अनूठी है यहाँ की रामलीला भी. विजयादशमी के अवसर पर यूँ तो पुरा शहर ही रामलीला का मंच बन जाता है, मगर रामनगर की रामलीला की बात ही कुछ और है. आम लोगों के दिलों में रस-बसे काशी नरेश के सान्निध्य में आयोजित होने वाली यह रामलीला 1, 2 या 10 नहीं बल्कि पुरे एक महीने तक चलती है।
अनंत चतुर्दशी से आरम्भ होने वाली इस लीला में मुख्य किरदार बाल कलाकार ही निभाते हैं। अभ्यास आरम्भ होने से लेकर लीला समाप्ति तक सारे कलाकार पूर्ण अनुशासन और वैष्णव विधियों का पालन करते हैं. पारंपरिक स्वरुप को बरक़रार रखते हुए लीला के मंचन के दौरान आधुनिक संचार उपकरणों (माइक, स्पीकर आदि) तथा बिजली के बल्बों का प्रयोग नही किया जाता. दर्शकों में उपस्थित अनगिनत संत जो 'रामायणी' कहलाते हैं तथा अन्य भक्त भी अपने साथ 'रामचरितमानस' की प्रति साथ रखते हैं, और पात्रों की भंगिमा का अनुमान लगा उनके साथ संवाद दोहराते हैं.
श्रद्धा और पारम्परिकता का अद्भुत मेल और हमारी साझी धरोहर है यह 'रामलीला'. आइये आप भी इस विजयादशमी को शिव की नगरी में राम के स्वरुप के दर्शन करने.

Wednesday, October 1, 2008

युवा सत्याग्रही - मोहनदास करमचंद गाँधी


युवा सत्याग्रही

2 अक्टूबर- महात्मा गाँधी का जन्मदिन। सारे हिंदुस्तान के लिए यह गर्व की बात है की गांधीजी के जन्मदिन को स. रा. संघ द्वारा अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। मगर गाँधी जी की जो छवि हमारे दिलो-दिमाग में बसा दी गई है, वह है एक 80 साल के बुजुर्ग की जो हाथ में लाठी लिए तेज क़दमों से चल रहा है। उनकी यह छवि चाहे जितनी सम्माननीय लगे मगर न तो गांधीजी के व्यक्तित्व के साथ पूर्णतः न्याय कर पाती है और न ही ज्यादातर युवाओं को अपनी ओर आकर्षित .मगर गांधीजी की एक और भी छवि है, जो जाने-अनजाने भुला दी गई है- युवा सत्याग्रही की।

आज याद करें उस युवा बैरिस्टर गाँधी को जिसने उपनिवेशवाद के विरुद्ध विदेशी धरती पर हल्ला बोला था। अपने अपमान पर तिलमिलाया था और व्यक्तिगत आक्रोश को एक पुरे राष्ट्र के विरोध की गूंज बना दिया था। और इस साध्य के लिए उसने कभी भी अपने साधनों से समझौता नही किया.

आइये श्रद्धान्जली दें उस जुझारू व्यक्तित्व को जिसके विचार आज भी संपूर्ण विश्व को अशांति के बीच शान्ति का मार्ग दिखाते हैं।


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