Friday, December 31, 2010

दशक के दस सबक



(जिंदगी से जो रोज एक नया सबक सिखाती है)

1. दिल की आवाज को पहचानो जो अक्सर दिमाग और बाहर के शोर में दब जाती है.

2. कोई भी निर्णय पूरे सोच – विचार के बाद लो और उसपर अडिग रहो ताकि बाद में कभी पछतावा न हो.

3. आज के दौर में कैरियर इस देश का सबसे विचारणीय मुद्दा है. अपने शौक और क्षमताओं की पहचान कर उसे कैरीयर का रूप दे सको तो महज duty की formality पूरी नहीं करोगे बल्कि उसका लुत्फ़ भी उठाओगे.

4. Problems को opportunities के रूप में लेना. याद रखना कि – “ जिस काम में जितनी ज्यादा समस्याएं आयें, समझ लेना वो काम उतना ही बेहतर होने वाला है.”

5. NCC की ट्रेनिंग कभी अनिवार्य हो या नहीं, कम – से - कम 1 वर्ष के रिसर्च का अनुभव किसी उपयुक्त गाईड के अंतर्गत जरुर ले लेना. भावार्थ समझने का मौका जीवनपर्यंत मिलता रहेगा; 1 उम्र तो थोड़ी कम ही पड़ेगी. J

6. परिवर्तन एक शाश्वत प्रक्रिया है, इससे कभी घबडाना मत. Evolution के लिए परिवर्तन भी आवश्यक है.

तो – “ सैर कर दुनिया की गाफिल, ये जिंदगानी फिर कहाँ;

जिंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ ! “

7. असफलता सिर्फ यही नहीं सिखाती कि सफलता का प्रयास पुरे मन से नहीं हुआ बल्कि यह भी कि – “ सितारों के आगे जहाँ और भी हैं;

अभी मंजिलों के इम्तिहाँ और भी हैं “

8. दोस्ती सबसे बड़ी नेमत है. यह ऐसी शै है, जिसे इश्वर आपको खुद चुनने का मौका देता है. तो इस मौके को व्यर्थ मत जाने देना ताकि कल बता सको कि रिश्ते जोडने में अपनी काबिलियत उससे कम भी नहीं.

9. शादी ??? (अहूँ – अहूँ) – “ उसी से करो जिससे दोस्ती कर सकते हो, घंटों बातें कर सकते हो ”

10. और यह भी कि – “ जो तुम्हारे मन का हो अच्छा, जो न हो वो और भी अच्छा; क्योंकि उसमें भगवान की मर्जी छुपी होती है “

Wednesday, December 29, 2010

अरुणाचल से दिल्ली - शुक्रिया '2010'




पिछले वर्ष जब लगभग इसी समय, गुजर रहे वर्ष का लेखा - जोखा संकलित कर रहा था, तब जहाँ एक ओर एक अधूरे सपने के साथ बनारस को छोडने की कसक थी, तो वहीँ दूसरी ओर देश के एक सुदूरतम प्रदेश से जीवन के एक नए सफर की शुरुआत की एक उम्मीद भी.

गुजरा वर्ष कई नए अनुभवों और उपलब्धियों का वर्ष रहा. कैरियर की दृष्टि से जहाँ काफी कुछ सीखने को मिला; वहीँ विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोच और काम के प्रति समर्पण ने नई जिम्मेदारियां और उन्हें संभालने का आत्मविश्वास भी दिया.

एक तरह से खुद को नए परिवेश के प्रति समर्पित ही कर दिया था,, मगर बुझते दीपक की तरह एक अंतिम कोशिश की लपट कहीं बाकि थी. और अंततः इस देश के बहुसंख्यक युवाओं की सबसे बड़ी आकांक्षा - 'सरकारी सेवा में आना ' - यह स्वप्न भी पूरा हुआ; और वर्षों से बंद इस दरवाजे को आखिर अंतिम धक्के में खोल पाने (या यूँ कहें कि तोड़ पाने) * में सफल रहा. और अब लगभग एक वर्ष अधिक के नेटवर्क जोन से वनवास के बाद देश और नेटवर्क जोन की राजधानी दिल्ली आखिरकार दूर नहीं रह गई.

रचनात्मक जगत से अवान्क्षनीय दूरी के बावजूद आंशिक रूप से ब्लौगिंग भी जारी रही, जिसे मेरी विवशताओं को समझते हुए ब्लॉग परिवार का प्रोत्साहन भी मिलता रहा.

पत्रिका 'विज्ञान प्रगति ' और विज्ञान वेबसाईट 'कल्किओं' पर विज्ञान कथाएँ भी प्रकाशित हुईं.

इनके अलावे प्रत्यक्ष संपर्क में न रह पाने पर भी कुछ आभासी तो कुछ साभासी मित्रों से इस वनवास ने घनिष्ठता को और प्रगाढ़ ही किया. दोस्तों की पहचान रोज चाय या फ़ोन पर लंबी और अनर्थक बातों से ही नहीं होती, बल्कि ख़ामोशी भी दोस्तों के बीच भाषा सी ही काम कराती है.

"एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों,
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों."

बीता वर्ष यह सिखाता हुआ गया कि वाकई जीवन चलने का नाम है, पीछे मुड़-मुड़ कर देखते रहने का नहीं; और यह भी कि "सच्चे दिल से किसी को चाहो तो सारी कायनात उसे तुमसे मिलाने कि कोशिश में लग जाती है....."

नए शहर में नई जिम्मेदारियों को निभाता हुआ, ब्लॉग जगत से भी पुनः सक्रिय रूप से जुड़ने का नए वर्ष में प्रयास रहेगा, जिसमें आशा है सभी ब्लौगर्स का अपेक्षित सहयोग मिलेगा.

नववर्ष और नवदशक भी आप सभी के लिए खुशियाँ लाये; शुभकामनाएं.....

Sunday, December 26, 2010

नववर्ष का उपहार : दिल्ली पुस्तक मेला

दिल्ली का प्रगति मैदान एक बार फिर तैयार है पुस्तक प्रेमियों के स्वागत के लिए, 25 दिसंबर से २ जनवरी तक आयोजित दिल्ली पुस्तक मेले के साथ. कॉमनवेल्थ गेम्स की वजह से प्रस्तावित तिथी में बदलाव के साथ अनजाने में ही यह नववर्ष के लिए एक विशेष destination बन गया है. मेले का मुख्य थीम है – ‘ग्रामीण भारत हेतु पुस्तकें’. यूँ तो इस थीम की रस्मअदायगी कुछ सरकारी प्रकाशन केंद्र ही करते दीखते हैं, मगर रस्मों से ऊपर पुस्तकों के विशाल महासागर में एक बार फिर गोते लगाने का अवसर तो है ही यह पुस्तक मेला.
कई देशी-विदेशी प्रकाशन समूहों के साथ पुस्तक प्रेमियों के लिए पलक – पांवड़े बिछाये प्रस्तुत है यह आयोजन. तो चलें इस बार पुस्तक मेला इस निश्चय के साथ कि नववर्ष की शरुआत अपनी पसंदीदा पुस्तकों से करेंगे और उपहार में पुस्तकें देने की परंपरा को और भी सुदृढ़ कर पुस्तक पठन - पाठन की संस्कृति विकसित करने में अपना भी योगदान देंगे.

लगभग एक वर्ष से अधिक लंबे वनवास से वापसी के बाद मुख्यधारा से जुड़ने के अवसर को enjoy करने के लिए मेरे लिए तो यह आयोजन काफी महत्वपूर्ण था, मगर अपने बारे में बात अपनी अगली किसी पोस्ट में. अभी तो बस पुस्तक मेले का ही लुत्फ़ उठाएं.

Wednesday, October 20, 2010

तस्वीरें : इस जमीं से आसमान तक...

1. सत्यम , शिवम् सुन्दरम : अरुणाचल से  
2 . गोहाटी और ब्रह्मपुत्र (एरियल व्यू)
3 . आसमान नीचे...
4. ढल गया दिन

Friday, October 15, 2010

"भारतीय कला में खेल - कूद" : एक प्रदर्शनी

प्रदर्शनी कक्ष

चौसर

शतरंज खेलते राधा - कृष्ण

सावन में झुला झूलती महिलाएं

खेलों से जुडी विभिन्न कलाकृतियाँ

दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों के साथ-साथ जारी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में नेशनल म्यूजियम में भी प्रदर्शनियों की एक विशेष श्रृंखला चल रही थी. उन्ही में एक थी "भारतीय कला में विविध क्रीड़ायें". प्रस्तुत है उन्ही में से चुनिन्दा कलाकृतियों की एक झलक -

Saturday, September 4, 2010

Sikshak Divas par - Arunachal se.....

Pichle dinon Gurudev Ravindra Nath Taigore ki ek baal katha padhne ko mili. Sikshak divas par iski prasangikata ko dekhte hue ise aapke samaksh JPG roop mein rakh pa raha hun. Padhne mein thodi asuvidha to hogi, magar yakin hai bharatiya saikshanik vyavastha ko aaina dikhati yeh kahani aapko nirash nahin karegi. Sikshak divas par gurujanon ke prati shraddhasuman sahit...

Sunday, August 15, 2010

अरुणाचल की भी थी भागीदारी स्वतंत्रता संग्राम में




केकर मनियोंग युद्ध स्मारक
 
अंग्रेजों की साम्राज्यवादी निति के विरुद्ध अपनी तरह का एक अनूठा प्रतिरोध उत्तर - पूर्व के इस भाग की और से भी दर्ज किया गया था. अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी सियांग जिले के पंगिन क्षेत्र में एक खड़ी पहाड़ी (Cliff ), जिसे स्थानीय जनजातीय समुदाय 'आदि' अपने प्रदेश का प्रवेश द्वार मानता है साक्षी है उस अनूठे प्रतिरोध का जब इस समुदाय ने अपेक्षाकृत समृद्ध और सक्षम ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अपने परंपरागत तीर - धनुष आदि हथियारों से प्रकट किया था. 1911 का यह आन्दोलन मात्र एक समूह विशेष तक ही सीमित नहीं रह गया था, बल्कि अंग्रेजी साम्राज्यवादी नीतियों से प्रभावित तमाम जनजातीय समूह इस विरोध में एकजुट थे. इसलिए स्थानीय समुदाय आज भी इस स्थल को देश के किसी भी अन्य स्वतंत्रता संग्राम जुड़े स्थलों के सामान सम्मान देते हुए स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संघर्ष में अपने योगदान के रूप में देखते हुए संरक्षित रखे हुए है.
 
स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ी ऐसी कई और विरासत जो इस देश में अब भी अज्ञात और अल्पचर्चित हैं उनके पुनः अध्ययन  और संरक्षण की जरुरत है. 

Saturday, May 15, 2010

Arunachal ki Bio diversity

Arunachal ki Jaiv - vividhata ke bare mein suna to tha, magar mahsus kar pane se ab tak vanchit tha. Ab jab sardi ja chuki hai aur barish dastak de rahi hai; yeh vividhata bhi saamne aa rahi hai.
 
Ek jhalak.
 
Jara sarp ko pahchanane mein madad karein.

Sunday, April 18, 2010

कोलकाता, 'City of Joy' और 'आनंद नगर'

हावड़ा से गोहाटी लौटता हुआ दमदम एअरपोर्ट  पर  'डोमिनिक लेपियर ' की 'City of Joy' के हिंदी अनुवाद 'आनंद नगर' पर नजर पड़ी, जिसे पढने की उत्कंठा रोक न सका और इसे आज ही समाप्त की है. कोलकाता जैसे महानगर की पृष्ठभूमि में सारे भारत की ही विशिष्टता को प्रदर्शित करने वाली यह पुस्तक पिछले कुछ दशकों में बदलते कोलकाता और उससे जुड़े आम लोगों की जिंदगी को बखूबी  अभिव्यक्त करती है. जमीन से कटे, बेगारी से हाथ रिक्शा खींचती किसानों की व्यथा, जिंदगी की जद्दोजहद, कोलकाता में स्थित छोटा सा भारत 'आनंद नगर' , कम्युनिस्ट आन्दोलन, मदर टेरेसा और अन्य मिशनरी सेवाएं आदि समकालीन कोलकाता का बखूबी चित्रण करती है यह पुस्तक. हाँ दीवाली के बाद दुर्गा पूजा का जिक्र जैसी बातें एक बारगी चौंकाती  जरुर हैं, मगर कोलकाता के परिवेश को एक नए दृष्टिकोण  और समग्र रूप से व्यक्त करने में यह पुस्तक अनूठी है. वाकई यह पुस्तक भारत के सन्दर्भ में आशा की  एक नई दृष्टि देती है.

Wednesday, April 14, 2010

फिर मिलेंगे: चलते-चलते


टीवी पर सानिया की शादी की ही खबरें हैं। मैं 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' और 'मीडिया की दीवानगी' पर कुछ नहीं कहने जा रहा। ब्लॉग जगत में इसपर पहले ही काफी चर्चा हो चुकी होगी। मगर एक सवाल मन में उभरता है कि क्या अति सफलता (और सुन्दरता भी) किसी व्यक्ति को अपने परिवेश के प्रति इस कदर उपेक्षा का भाव भर देती है कि वो अपनी सामाजिक जिम्मेदारिओं के प्रति बिलकुल बेपरवाह ही हो जाये। आखिर जिस आम जनता ने इन्हें स्टार बनाया है उनकी भावनाओं के प्रति भी ये थोड़े उत्तरदाई हैं या नहीं !

अरुणाचल की वादिओं, और नेटवर्क मुक्त जोन से कुछ दिनों का यह संछिप्त विराम अब समाप्ति की ओर है, आज रात वापस रवाना हो जाऊंगा। जब तक इन्टरनेट के संपर्क में रहा पोस्ट्स का प्रयास रहेगा, उसके बाद फिर एक अनिश्चितकालीन ब्रेक।

बस तब तक -
"मुझे तुम याद करना और मुझको याद आना तुम,
मगर मैं लौट के आऊंगा, ये मत भूल जाना तुम..."

Saturday, April 10, 2010

मुंबई प्रवास और 'विविध भारती'

मुंबई प्रवास और 'विविध भारती'
अरुणाचल में 'विविध भारती' से बनी दूरी से उपजी असहनीय पीड़ा का उपचार अधूरा ही रह जाता यदि अपने मुंबई प्रवास के दौरान इसके केंद्र का भ्रमण न कर लेता. इसी  क्रम में मैं बोरीवली स्थित इसके कार्यालय पहुँच ही गया, जहाँ न सिर्फ विविध भारती के युवा चेहरे और ज्ञान - विज्ञान पर आधारित कायक्रमों की कमान संभालने वाले युनुस खान साहब से, बल्कि अपनी हृदयस्पर्शी आवाज से श्रोताओं के दिलों में उतर जाने वाले कमल शर्मा जी से भी मुलाकात हुई.
शब्दों के साथ खेलने वालों से तो कई बार मुलाकात हुई है, मगर यहाँ पहली बार साक्षी बना आवाज के साथ चल रहे खेल का. अवसर मिला ज्ञान-विज्ञान पर आधारित, नए कलेवर में पुनः प्रारंभ हो रहे कार्यक्रम 'जिज्ञासा' की प्रसारण पूर्व तैयारी के अवलोकन का. 
विविध भारती को सुतने हुए इससे जुड़े व्यक्तियों की जो छवि मानस पर बचपन से ही अंकित हो गई थी, उसपर खरी ही उतरी यह मुलाकात. और धन्यवाद अपने ब्लॉग मित्र और विविध भारती के प्रमुख सदस्य युनुस खान  जी का भी जो माध्यम बने एक आम श्रोता  और मनोरंजन के इस प्रमुख स्रोत को और भी करीब लाने का.
 
अंत में एक विशेष आग्रह भी कि - 'सुनना ना भूलें हर शनिवार रात 7 :45 PM पर, ज्ञान - विज्ञान की रेडियो - एक्टिव तरंग- "जिज्ञासा" युनुस खान के साथ.

Thursday, April 8, 2010

सांस्कृतिक पहेली का उत्तर

राज जी के उत्तर से पिछली पहेली की सारी बातें स्पष्ट हो ही गई हैं।
यह तस्वीर गोहाटी में 'कामख्या कामरूप' से ली गई थी। जैसा की विदित है कामख्या शक्तिपीठों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह तस्वीर भी उसी प्राचीन सभ्यता को निरुपित करती है जब मात्रिसत्तात्मक व्यवस्था प्रचलित थी और स्त्री की 'प्रजनन शक्ति' को धरती की उर्वरता से जोड़ते हुए सम्मान से देखा जाता था।

Sunday, April 4, 2010

पहेली सुधार सहित



अरविन्द मिश्र जी के सुझाव को स्वीकार कर, तस्वीर को और स्पष्ट करने का प्रयास किया है। डॉ साइबर कैफे में तस्वीर की सुस्पष्टता कभी- कभी स्पष्ट नहीं भी हो पाती है। इस बार पहेली लंबी नहीं खींचूंगा। कल इसका उत्तर भी आ जायेगा।

एक सांस्कृतिक पहेली

 
यह पहेली भी नहीं एक चर्चा है, इसलिए यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं कि यह तस्वीर कहाँ से ली गई है; मैं खुद ही यह बता देता हूँ कि यह मूर्ति 'कामख्या कामरूप' के मंदिरों की बाह्य दीवार पर उत्कीर्ण  है.  महत्वपूर्ण यह है कि इस मूर्ति की विशेषता क्या है और इसका भारत या वैश्विक सभ्यता से क्या सरोकार है ?  तो आइये चर्चा शुरू करें.

Saturday, April 3, 2010

सफ़र- ए-बनारस और 'अल्केमिस्ट'

 
अरुणाचल से बनारस वाया गोहाटी जाने के क्रम में गोहाटी स्टेशन पर आदतन 'व्हीलर स्टाल' पर थोड़ी तफरीह की. (व्हीलर नाम का क्या अब तक ब्रिटिश शासन से भी कोई संबंध है क्या !) 
इसी कम में 'पाओलो कोएलो' रचित 'अल्केमिस्ट' के उसी नाम के हिंदी अनुवाद पर नजर पड़ी. मूल रचना को हिंदी में प्रवाह के साथ पढने की प्रवृत्ति के कारण अनुवाद बहुधा आकर्षित ही करते हैं, और ऐसे में अनुवादक के रूप में 'कमलेश्वर साहब' के नाम ने पुस्तक को स्टाल से उठा मेरे हाथों तक पहुंचा ही दिया. मगर सफ़र के एक तिहाई से भी कम पलों में पुस्तक ने साथ छोड़ दिया मनो - मस्तिष्क पर एक यादगार छाप छोड़ कर.
 
सहज ही नायक से तादात्मय स्थापित कर लेने वाले आम हिंदी दर्शक या पाठक को कथानक न सिर्फ पूरी अवधि में बांधे रखता है,अपितु अंत में एक तृप्ति भरी मुस्कान को स्वतः ही अपने चेहरे पर ले आने का भरोसा भी देता है.  वैसे भी एक नियति, एक खजाने की तलाश तो हर मन में कहीं - न - कहीं तो रहती ही है.
 
उपन्यास पढता देवसाहब की 'गाईड' की भी बरबस याद आई और लगे हाथ एक विचार भी क़ि 'Slumdog Millionnaire' की जोड़ी के साथ इस उपन्यास पर फिल्म बनाने का आईडिया क्यों न दे दूँ. सुझाव देने में हम हिन्दुस्तानियों का कोई जोड़ है क्या !
 
चलते-चलते इस उपन्यास की एक प्रमुख उक्ति (जिसे शायद आपने कहीं सुना तो होगा... :-) ) 
 
"... जब तुम वास्तव में कोई वस्तु पाना चाहते हो तो संपूर्ण सृष्टि उसकी प्राप्ति में मदद के लिए तुम्हारे लिए षड्यंत्र रचती है "
 
(आपको नहीं लगता क़ि 'ओम शांति ओम' में 'साजिश' और यहाँ 'षड्यंत्र' शब्द का प्रयोग अनुवादात्मक त्रुटी है  ! )

Wednesday, February 17, 2010

अरुणाचल : तो बजरंग बली यहाँ तपस्यारत हैं !

Breaking News for India TV
 
मान्यता है कि बजरंग बली भगवान श्री राम से आशीर्वाद प्राप्त कर अजर-अमर हो गए और हिमालय की ही किसी कन्दरा में तपस्यालीन हैं. इस मान्यता में सच्चाई कितनी है यह तो ज्ञात नहीं मगर अरुणाचल में एक स्थल है जहाँ पर्वतों पर ubhari एक छवि बजरंग बली के रूप में ही देखी जाती है.
 
अरुणाचल के प. सियांग जिले के एक महत्त्वपूर्ण स्थल मेचुका से लगभग 10 किमी. की दुरी पर हनुमान  कैंप है. उसके थोडा पहले ही एक view पॉइंट से सामने की पहाड़ी पर  पत्थरों की बनी एक मानवीय आकृति सा आभास मिलता है, जिसे बजरंग बली की छवि माना जाता है. आस्था और विज्ञान के सवालों से परे खुबसूरत वादियों और पहाड़ियों के बीच यह स्थल धार्मिक लिहाज से भी अनूठा है.

Sunday, February 14, 2010

हाँ मुझे मोहब्बत है - मोहब्बत

प्रेम के उल्लास का मौसम कहें, वसंतोत्सव कहें या वैलेंटाइन डे. यह माहौल प्रेम विषय पर एक पुनर्दृष्टि डालने को प्रेरित करता ही है। मैंने भी कई बार सोचा कि मेरे आस-पास की दुनिया जिस प्रेम की बात करती है, उसकी अनुभूति मुझे कभी क्यों नहीं हुई! मैं सायास किसी आकर्षण से इनकार नहीं करता, मगर औफिसिअल प्रेम जैसे किसी भाव को कभी महसूस नहीं कर पाया। और अब जब जिंदगी के साथ यहाँ - वहां भटकता फिर रहा हूँ , उसे पूरी तरह एन्जॉय करता हुए तो महसूस कर पा रहा हूँ कि - 'हाँ मैंने भी प्यार किया है'।
राष्ट्रवादी जैसे भारी-भरकम और lagbhag Copyrighted शब्द का इस्तेमाल तो मैं नहीं करूँगा; मगर हाँ मुझे प्यार है इस खुबसूरत धरती से, प्रकृति से, अपने इतिहास से, संस्कृति,से साहित्य से और अति समृद्ध विरासत से। इसके साथ मैं कभी खुद को अकेला नहीं मानता , मुझे किसी अंदरूनी खालीपन का एहसास नहीं सताता. मैं इसमें पूरी तरह डूब जाता हूँ एक प्रेमी की तरह ही.

शायद तभी किसी एक व्यक्तित्व के प्रति ही सीमित नहीं रह पाती मेरे प्रेम की परिभाषा।

हाँ मुझे प्रतीक्षा जरुर रहेगी ऐसे किसी चेहरे की जो पूर्ण रूप से स्वीकार कर सके मुझे और मेरे इस असीमित प्रेम को।
कोई है !!!!!

Friday, February 12, 2010

Heart of The Stones

Pattharon Ke Bhi Hote Hain Dil,
Magar Har Kisi Ko Numayan Nahin Karte;
Seene Mein Hain Inke Bhi Kai Nagme,
Magar Yun hi Sunaya Nahin Karte;
Koi Pyaar Se Tatole To Sahi,
Ye Haale-dil Chupaya Bhi Nahin Karte.

Saturday, January 30, 2010

अरुणाचल का 'पोदी-बारबी' पर्व

 
अरुणाचल में भी वसंत ने दस्तक दे दी है. शाखों पर नई पत्तियां और फूल दिखने लगे हैं. यहाँ - वहां घूमता प्रकृति के इन नजारों का आनंद उठा रहा हूँ, मगर दिल है कि कहीं दूर ' पलाश के फूल ' ढूंढ़ रहा है. अब भी याद आते हैं होली के समय पलाश के पीले फूलों का छा जाना और बच्चों का उनसे रंग तैयार करना.
खैर हाल ही में अरुणाचल का एक महत्वपूर्ण पर्व मनाया गया - 'पोदी - बारबी'.
यह यहाँ की बोकर जनजाति का एक प्रमुख पर्व है, जो हर वर्ष ५ दिसंबर को मनाया जाता है. मान्यता है फसल के देवता 'पोदी' और 'बारबी' इस अवसर पर स्वर्ग से धरती पर आकर उर्वरता, अच्छी फसल और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.
बोकर अरुणाचल की एक प्रमुख जनजाति है जो मंगोलियन मूल की है. यह वर्त्तमान में प. सियांग जिले के मेंचुका सब-डिविजन के मनिगोंग, पिदी, और टातो क्षेत्र में फैली हुई है.
आधुनिकता और धार्मिक prabhav ने पर्व कि मूल छवि को प्रभावित तो किया है, मगर लोगों के प्रकृति के प्रति अपने लगाव को प्रदर्शित करने का एक माध्यम तो है ही - 'पोदी - बारबी'.

Monday, January 11, 2010

गीत गाता चल

काफी समय बाद 2009 की चिट्ठी लिख पाया हूँ.
काफी कुछ दिया इस वर्ष ने, मगर बनारस से दूर होने की टीस अब भी बाकि है. इतना बड़ा खुद को नहीं समझता कि किसी को माफ़ करने के लायक खुद को मानूँ, मगर उन्हें भुलाने की कोशिश चार माह बाद भी जारी है. शायद इसीलिए दुनिया की मुख्यधारा से कट इस सुदूरतम स्थल पर आ गया हूँ.
अब बेहतर समझ पा रहा हूँ कि परिवर्तन को स्वीकार कर आगे बढ़ते जाना ही जिंदगी है, और मैं भी जिंदगी का साथ निभाता बढ़ता जा रहा हूँ.
हाँ ब्लॉग जगत की मधुर यादें एक खुशनुमा झोंके की तरह साथ हैं.
साहित्यिक दृष्टि से भी काफी सार्थक रहा यह साल.
जिस विषय से जुड़ा रहा, उसी में और अपनी रुची के करीब जॉब मिलना भी इस वर्ष की एक सौगात रही.
आशा है आप सभी ब्लौगर्स के लिए भी गुजरा साल बेहतर रहा होगा,
कामना करता हूँ कि नया साल भी आपके लिए मंगलमय हो.
शुभकामनाएं.
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