Thursday, May 14, 2015

भारत-चीन संबंध और डॉ कोटनीस की अमर कहानी


प्रधानमंत्री मोदी आज से अपनी चीन यात्रा पर हैं। चीन के साथ हमारे संबंध ऐतिहासिक होने के साथ काफी उतार-चढ़ाव लेते हुए भी रहे हैं। दोनों देशों के साथ जुड़ी चंद खुशनुमा यादों में डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस की स्मृतियाँ भी शामिल हैं। तो कल 'डॉ कोटनीस की अमर कहानी' की भी याद आएगी ! डॉ द्वारकानाथ कोटनीस वो भारतीय डॉक्टर थे जो 1938 में चीन-जापान युद्ध के दौरान जापानी आक्रमण के समय चीन एक राहत अभियान में गए थे। वहां वो जापानियों के बंदी भी रहे। चीनी युवती चिंग लान ( Guo Qinglan) से उन्होंने विवाह किया, जिससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई- जिसका नाम Yinhua  (Yin-India और Hua-China) रखा गया। प्लेग के रोगियों का इलाज करते हुए इसी बीमारी से उनकी मृत्यु भी हुई... 

ख्वाजा अहमद अब्बास लिखित कहानी 'And one didn't didn't come back' के आधार पर सुप्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक व्ही. शांताराम ने अपनी क्लासिक फ़िल्म 'डॉ कोटनीस की अमर कहानी' बनाई थी। फ़िल्म में मुख्य भूमिका स्वयं व्ही. शांताराम और जयश्री ने निभाई थी। भारत-चीन के द्विपक्षीय संबंधों के मध्य डॉ. कोटनीस को बड़े आदर के साथ याद किया जाता है। इन दो देशों के मध्य सिर्फ ऐतिहासिक-व्यापारिक ही नहीं बल्कि ऐसे ही ठोस और सुदृढ़ नागरिक संबंधों की भी आवश्यकता है.....

Sunday, May 10, 2015

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, सिनेमा और नटिर पूजा

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य के अलावा न सिर्फ संगीत, चित्रकला, दर्शन आदि में अपना योगदान दिया बल्कि तब के अभिव्यक्ति के उभरते माध्यम सिनेमा के लिए भी एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई। नटिर पूजा एकमात्र ऐसी फ़िल्म है जिसमे गुरुदेव ने निर्देशक तथा एक महत्वपूर्ण पात्र की भूमिका भी निभाई। एक बौद्ध मिथक पर आधारित उनकी कविता 'पुजारिनी' का नाट्य रूपांतरण थी 'नटिर पूजा'। 1932 में टैगोर की 70 वीं वर्षगांठ पर न्यू थियेटर के बैनर तले इसे फ़िल्म के रूप में फिल्माने का प्रयास किया गया। गुरुदेव के ही मार्गदर्शन में स्क्रीनप्ले तैयार किया उनके भतीजे दिनेंद्रनाथ टैगोर ने तो कलाकार शांतिनिकेतन से ही लिए गए। 22 मार्च 1932 को कोलकाता के चित्रा सिनेमा में यह फ़िल्म प्रदर्शित हुई। निर्माताओं को सफलता की उम्मीद तो थी ही इसलिए फ़िल्म से प्राप्त होने वाली आधी राशि शांतिनिकेतन को समर्पित करने की भी बात थी, मगर आर्थिक सफलता के पैमाने पर फ़िल्म खरी न उतर सकी। संभवतः इसका कारण इसका नृत्य नाटिका स्वरुप था। फिर भी कई समीक्षक इसे बंगला संस्कृति और टैगोर की छाप लिए एक अमूल्य धरोहर मानते हैं। 
इस महामानव को उनके जन्मदिवस पर नमन.....
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