Saturday, October 12, 2013

पहचान की बाट जोहती कश्मीर की एक प्राचीन विरासत...


धरती का स्वर्ग कश्मीर जो अक्सर नकारात्मक कारणों से ही चर्चा में रहता रहा है, कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी भारत के प्राचीन इतिहास के कई पन्नों को अब भी सहेजे हुए है. भले ये पन्ने अब पीले से पड़ चुके होंय उनमें से कुछ बुरी तरह फटे-चीते भी हों – पारखियों की नजर उनमें अपने अतीत के कुछ संस्मरण ढूंढ ही लेंगीं. ऐसी ही पारखी नजरों की बाट जोह रहे हैं कश्मीर घाटी के गांदरबल जिला स्थित मानसबल (कुछ मान्यताओं के अनुसार मानसरोवर का अपभ्रंश) झील के निकट स्थित एक प्राचीन मंदिर के अवशेष. मानसबल विकास प्राधिकरण के द्वारा इस क्षेत्र के पुनरूद्धार कार्यक्रम के दौरान जमीन में धंसे इस मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए. 


प्राचीन कश्मीर की पारंपरिक आर्य शैली में बने इस मंदिर की कालावधि 8-9 वीं शताब्दी मानी जा रही है. इसके पिरामिडाकार शिखर इसे एक अलग ही स्वरुप देते हैं (जो फिलहाल तो स्थानीय बच्चों के इनपर चढ नीचे पानी में कूदने के लिए ही प्रयोग आ रहे हैं...). जलकुंड के मध्य स्थित यह मंदिर कभी अपने वास्तुशिल्प में भी विशिष्ट स्थान रखता होगा. आतंरिक जलश्रोतों की ससंभावित उपस्थिति के कारण बढते जलस्तर के कारण भी इसके पुनरुद्धार में प्राधिकरण को कठिनाइयाँ आती रही हैं. क्षेत्रीय अख़बारों के अनुसार कुछ स्थानीय लोगों ने यहाँ हर शुक्रवार को एक सांप के दिखने की बात भी कही है, जिसकी तस्वीर नहीं ली जा सकी.
मान्यताओं से परे यह एक ऐसा स्थल तो है ही जो इतिहास से वर्तमान में अपने वाजिब स्थान और पहचान का अधिकारी है और इसे इसकी वास्तविक पहचान मिलनी ही चाहिए.....

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