Sunday, April 18, 2010

कोलकाता, 'City of Joy' और 'आनंद नगर'

हावड़ा से गोहाटी लौटता हुआ दमदम एअरपोर्ट  पर  'डोमिनिक लेपियर ' की 'City of Joy' के हिंदी अनुवाद 'आनंद नगर' पर नजर पड़ी, जिसे पढने की उत्कंठा रोक न सका और इसे आज ही समाप्त की है. कोलकाता जैसे महानगर की पृष्ठभूमि में सारे भारत की ही विशिष्टता को प्रदर्शित करने वाली यह पुस्तक पिछले कुछ दशकों में बदलते कोलकाता और उससे जुड़े आम लोगों की जिंदगी को बखूबी  अभिव्यक्त करती है. जमीन से कटे, बेगारी से हाथ रिक्शा खींचती किसानों की व्यथा, जिंदगी की जद्दोजहद, कोलकाता में स्थित छोटा सा भारत 'आनंद नगर' , कम्युनिस्ट आन्दोलन, मदर टेरेसा और अन्य मिशनरी सेवाएं आदि समकालीन कोलकाता का बखूबी चित्रण करती है यह पुस्तक. हाँ दीवाली के बाद दुर्गा पूजा का जिक्र जैसी बातें एक बारगी चौंकाती  जरुर हैं, मगर कोलकाता के परिवेश को एक नए दृष्टिकोण  और समग्र रूप से व्यक्त करने में यह पुस्तक अनूठी है. वाकई यह पुस्तक भारत के सन्दर्भ में आशा की  एक नई दृष्टि देती है.

Wednesday, April 14, 2010

फिर मिलेंगे: चलते-चलते


टीवी पर सानिया की शादी की ही खबरें हैं। मैं 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' और 'मीडिया की दीवानगी' पर कुछ नहीं कहने जा रहा। ब्लॉग जगत में इसपर पहले ही काफी चर्चा हो चुकी होगी। मगर एक सवाल मन में उभरता है कि क्या अति सफलता (और सुन्दरता भी) किसी व्यक्ति को अपने परिवेश के प्रति इस कदर उपेक्षा का भाव भर देती है कि वो अपनी सामाजिक जिम्मेदारिओं के प्रति बिलकुल बेपरवाह ही हो जाये। आखिर जिस आम जनता ने इन्हें स्टार बनाया है उनकी भावनाओं के प्रति भी ये थोड़े उत्तरदाई हैं या नहीं !

अरुणाचल की वादिओं, और नेटवर्क मुक्त जोन से कुछ दिनों का यह संछिप्त विराम अब समाप्ति की ओर है, आज रात वापस रवाना हो जाऊंगा। जब तक इन्टरनेट के संपर्क में रहा पोस्ट्स का प्रयास रहेगा, उसके बाद फिर एक अनिश्चितकालीन ब्रेक।

बस तब तक -
"मुझे तुम याद करना और मुझको याद आना तुम,
मगर मैं लौट के आऊंगा, ये मत भूल जाना तुम..."

Saturday, April 10, 2010

मुंबई प्रवास और 'विविध भारती'

मुंबई प्रवास और 'विविध भारती'
अरुणाचल में 'विविध भारती' से बनी दूरी से उपजी असहनीय पीड़ा का उपचार अधूरा ही रह जाता यदि अपने मुंबई प्रवास के दौरान इसके केंद्र का भ्रमण न कर लेता. इसी  क्रम में मैं बोरीवली स्थित इसके कार्यालय पहुँच ही गया, जहाँ न सिर्फ विविध भारती के युवा चेहरे और ज्ञान - विज्ञान पर आधारित कायक्रमों की कमान संभालने वाले युनुस खान साहब से, बल्कि अपनी हृदयस्पर्शी आवाज से श्रोताओं के दिलों में उतर जाने वाले कमल शर्मा जी से भी मुलाकात हुई.
शब्दों के साथ खेलने वालों से तो कई बार मुलाकात हुई है, मगर यहाँ पहली बार साक्षी बना आवाज के साथ चल रहे खेल का. अवसर मिला ज्ञान-विज्ञान पर आधारित, नए कलेवर में पुनः प्रारंभ हो रहे कार्यक्रम 'जिज्ञासा' की प्रसारण पूर्व तैयारी के अवलोकन का. 
विविध भारती को सुतने हुए इससे जुड़े व्यक्तियों की जो छवि मानस पर बचपन से ही अंकित हो गई थी, उसपर खरी ही उतरी यह मुलाकात. और धन्यवाद अपने ब्लॉग मित्र और विविध भारती के प्रमुख सदस्य युनुस खान  जी का भी जो माध्यम बने एक आम श्रोता  और मनोरंजन के इस प्रमुख स्रोत को और भी करीब लाने का.
 
अंत में एक विशेष आग्रह भी कि - 'सुनना ना भूलें हर शनिवार रात 7 :45 PM पर, ज्ञान - विज्ञान की रेडियो - एक्टिव तरंग- "जिज्ञासा" युनुस खान के साथ.

Thursday, April 8, 2010

सांस्कृतिक पहेली का उत्तर

राज जी के उत्तर से पिछली पहेली की सारी बातें स्पष्ट हो ही गई हैं।
यह तस्वीर गोहाटी में 'कामख्या कामरूप' से ली गई थी। जैसा की विदित है कामख्या शक्तिपीठों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह तस्वीर भी उसी प्राचीन सभ्यता को निरुपित करती है जब मात्रिसत्तात्मक व्यवस्था प्रचलित थी और स्त्री की 'प्रजनन शक्ति' को धरती की उर्वरता से जोड़ते हुए सम्मान से देखा जाता था।

Sunday, April 4, 2010

पहेली सुधार सहित



अरविन्द मिश्र जी के सुझाव को स्वीकार कर, तस्वीर को और स्पष्ट करने का प्रयास किया है। डॉ साइबर कैफे में तस्वीर की सुस्पष्टता कभी- कभी स्पष्ट नहीं भी हो पाती है। इस बार पहेली लंबी नहीं खींचूंगा। कल इसका उत्तर भी आ जायेगा।

एक सांस्कृतिक पहेली

 
यह पहेली भी नहीं एक चर्चा है, इसलिए यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं कि यह तस्वीर कहाँ से ली गई है; मैं खुद ही यह बता देता हूँ कि यह मूर्ति 'कामख्या कामरूप' के मंदिरों की बाह्य दीवार पर उत्कीर्ण  है.  महत्वपूर्ण यह है कि इस मूर्ति की विशेषता क्या है और इसका भारत या वैश्विक सभ्यता से क्या सरोकार है ?  तो आइये चर्चा शुरू करें.

Saturday, April 3, 2010

सफ़र- ए-बनारस और 'अल्केमिस्ट'

 
अरुणाचल से बनारस वाया गोहाटी जाने के क्रम में गोहाटी स्टेशन पर आदतन 'व्हीलर स्टाल' पर थोड़ी तफरीह की. (व्हीलर नाम का क्या अब तक ब्रिटिश शासन से भी कोई संबंध है क्या !) 
इसी कम में 'पाओलो कोएलो' रचित 'अल्केमिस्ट' के उसी नाम के हिंदी अनुवाद पर नजर पड़ी. मूल रचना को हिंदी में प्रवाह के साथ पढने की प्रवृत्ति के कारण अनुवाद बहुधा आकर्षित ही करते हैं, और ऐसे में अनुवादक के रूप में 'कमलेश्वर साहब' के नाम ने पुस्तक को स्टाल से उठा मेरे हाथों तक पहुंचा ही दिया. मगर सफ़र के एक तिहाई से भी कम पलों में पुस्तक ने साथ छोड़ दिया मनो - मस्तिष्क पर एक यादगार छाप छोड़ कर.
 
सहज ही नायक से तादात्मय स्थापित कर लेने वाले आम हिंदी दर्शक या पाठक को कथानक न सिर्फ पूरी अवधि में बांधे रखता है,अपितु अंत में एक तृप्ति भरी मुस्कान को स्वतः ही अपने चेहरे पर ले आने का भरोसा भी देता है.  वैसे भी एक नियति, एक खजाने की तलाश तो हर मन में कहीं - न - कहीं तो रहती ही है.
 
उपन्यास पढता देवसाहब की 'गाईड' की भी बरबस याद आई और लगे हाथ एक विचार भी क़ि 'Slumdog Millionnaire' की जोड़ी के साथ इस उपन्यास पर फिल्म बनाने का आईडिया क्यों न दे दूँ. सुझाव देने में हम हिन्दुस्तानियों का कोई जोड़ है क्या !
 
चलते-चलते इस उपन्यास की एक प्रमुख उक्ति (जिसे शायद आपने कहीं सुना तो होगा... :-) ) 
 
"... जब तुम वास्तव में कोई वस्तु पाना चाहते हो तो संपूर्ण सृष्टि उसकी प्राप्ति में मदद के लिए तुम्हारे लिए षड्यंत्र रचती है "
 
(आपको नहीं लगता क़ि 'ओम शांति ओम' में 'साजिश' और यहाँ 'षड्यंत्र' शब्द का प्रयोग अनुवादात्मक त्रुटी है  ! )
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