Wednesday, July 25, 2012

अमरनाथ यात्रा...




“इस दर पे वही आता है, जिसे वो बुलाता है...”; ये पंक्तियाँ कुछ समय पहले तक मेरे लिए शब्द मात्र ही थीं; मगर वाकई इनपर विश्वास सा होने लगा है। घर से निकला तो था जम्मू में वैष्णो देवी के दर्शन कर श्रीनगर और इसके आस-पास की कुछ जगहें घूमने की योजना बनाकर, मगर जम्मू की जबर्दस्त गर्मी और श्रीनगर में कुछ संवेदनशील कारणों से कर्फ्यू लगे होने के कारण योजना परिवर्तित करनी पड़ी। संयोग से अमरनाथ यात्रा शुरू हो गई थी और कई यात्रियों के जत्थे जाते देख हमने भी बाबा अमरनाथ के दर्शनों का निश्चय कर लिया। इस बिल्कुल अन्प्लान्न्ड जर्नी में संयोग ही कहा जाएगा कि भगवती नगर में बने कैंप से अगले दिन का रजिस्ट्रेशन मिल गया, और तमाम शंका-आशंकाओं के मध्य ही चंद ही बची छुट्टियों में बिना किसी व्यवधान के यात्रा संपन्न हो ही गई। 

अपने पास छुट्टियाँ काफी गिनी-चुनी थीं, मगर फिर भी हमने पहलगाम मार्ग से चढ़ाई और बालटाल मार्ग से वापसी का निर्णय लिया। बालटाल मार्ग से कठिन चढ़ाई होने पर भी दूरी मात्र 14 किमी होने के कारण दो दिनों में यात्रा संपन्न होने की संभावना रहती है, मगर पहलगाम मार्ग में मिलने वाले प्राकृतिक दृश्यों के अवलोकन के आनंद से वंचित रह जाने की कसक भी रह जाएगी। वैसे भी धार्मिक मान्यताओं  के अनुसार भी पहलगाम मार्ग को ही वरीयता दी गई है. 


जम्मू से बस द्वारा सुबह रवाना होकर शाम तक पहलगाम पहुँचे जहाँ हजारों तीर्थयात्रियों के रहने और भोजन के लिए टेंट और भंडारे की अच्छी व्यवस्था की गई थी। मगर यहाँ कुछ स्टाल्स पर गुटके आदि की बिक्री ने थोडा विचलित भी किया. तंबुओं का मानो जंगल सा बसा हुआ था। ऐसी तीर्थयात्रा का पहला अनुभव और इतनी भीड़ में थोड़ी असुविधाओं के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करता हुआ रात वहाँ बिताई और और अगले दिन सुबह चंदनबाड़ी के लिए निकले। यहाँ तक के लिए वाहन उपलब्ध थे. चन्दनबाड़ी से रजिस्ट्रेशन चेकिंग की औपचारिकता पूरी होने के बाद यात्रियों के जत्थे अपनी सुविधानुसार पैदल, घोड़े या पालकी के द्वारा रवाना हुए. पहला चरण चन्दनबाड़ी से शेषनाग तक का था. इस मार्ग के प्रमुख पड़ावों में पिस्सू टॉप , जोजी बल और नागा टोपी आते हैं; जिसमें पिस्सू टॉप की चढाई वाकई यात्रिओं के धैर्य की परीक्षा लेती है. बर्फ से ढंकी पहाड़ियां और खूबसूरत झरने यात्रियों के मन को आनंद जरुर देते हैं मगर संकरे रस्ते पर सावधानीपूर्वक चलने की अपरिहार्यता  सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है. कार्यक्षेत्र की विशिष्टता मुझे इन पहाड़ों की खूबसूरती से रूबरू कराती रही है, मगर शेषनाग झील का अवलोकन वाकई एक अविष्मरणीय अनुभव था. रात्री पड़ाव हमने शेषनाग में ही किया. यहाँ भी यात्रियों के लिए रियायती दर पर टेंट्स की व्यवस्था थी और भंडारे भी चल रहे थे, इसलिए सुबह जल्द ही पंचतरणी के लिए रवाना हो गए. बर्फीले रास्ते और हलकी बारिश ने सफर को थोडा और कठिन बना दिया था, मगर दूर-दराज से आये बुजुर्ग स्त्री-पुरुषों के उत्साह और जज्बे से प्रेरणा लेते हम आगे बढते रहे. इस मार्ग के प्रमुख पड़ावों में वरबल, गणेश टॉप, पोषपत्री आदि थे. पंचतरणी हमलोग दोपहर तक पहुँच गए थे, मगर समय और साधनों को ध्यान में रखते हुए हम बीच राह में कहीं न रुक सीधे अमरनाथ ही पहुंचना चाहते थे; इसलिए हमने अपना सफर जारी रखा और उसी दिन शाम तक अमरनाथ पहुँच गए. मार्ग में संगम एक महत्वपूर्ण पड़ाव था. यहाँ पर बताया गया कि ठहरने के लिए कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है और स्थानीय लोगों द्वारा उपलब्ध टेंटस् और भोजन की व्यवस्था पर ही निर्भर रहना पड़ेगा. ज्यादा खोजबीन और तहकीकात की स्थिति में हम रह भी नहीं गए थे, इसीलिए इसी व्यवस्था को स्वीकार कर लिया. 


अगले दिन पवित्र अमरनाथ गुफा की ओर अपने निर्णायक सफर पर निकले और अपने पीछे बढती लाइन से प्रेरित होते शनैः-शनैः आगे खिसकते हुए अंततः बाबा के सामने पहुँच ही गए. 

जो वाकया, जो शब्द बस यहाँ-वहाँ पढ़े थे वो खुद पर चरितार्थ होता पाया. बाबा बर्फानी के दर्शन ने वाकई अभिभूत और भावुक ही कर दिया. अपलक प्रकृति की इस अनूठी लीला को निहारता रहा. दर्शनों की प्यास बुझ नहीं रही थी, मगर इस दृश्य का दर्शनाकांक्षी मैं अकेला ही तो नहीं था.....



भोलेनाथ के इस स्वरुप को मन में बसा बालताल मार्ग से वापस उतरा.  

यात्रा तो वाकई सफल और यादगार रही मगर कुछ बातें वाकई ध्यान देने वाली हैं. इधर आस-पास कोई गाँव न होने के कारण स्थानीय व्यवस्था जो मुस्लिम समुदाय द्वारा ही की जाती है, हर छोटी -से- छोटी चीज के लिए नीचे के स्थानों पर ही निर्भर है. इसलिए ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ हर चीज महँगी होती जाती है. घोड़े और पालकी वाले मनचाहे रेट मांगते हैं, जिनमें मोलभाव की भी थोड़ी गुंजाईश रहती है. वैसे कहीं बेहतर होता यदि सरकारी दर तय कर दी जाती. मगर शायद अल्पावधि में इनके जीविकोपार्जन की संभावनाओं के दबाव को देखते हुए वो कुछ ठोस पहल न कर पा रही हो. बेहतर है कि ये घोड़ेवाले जो सामान्यतः रजिस्टर्ड होते हैं के पहचानपत्र सफर तक अपने ही पास रखे जायें, इससे इनकी मनमानी पर किंचित नियंत्रण की संभावना तो रहती ही है. 

रजिस्ट्रेशन के पूर्व मेडिकल चेकअप की सामान्यतः औपचारिकता ही होती है, इसलिए अपने स्वास्थ्य को परखने के बाद ही यात्रा पर रवाना हों. क्योंकि ऊँचे स्थानों पर ऑक्सीजन की कमी सहित कुछ अन्य परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है. कोई भी असुविधा होने पर राह में बने आर्मी कैम्पस की सहायता लें. सेना की सक्रिय और सराहनीय भूमिका इस यात्रा को थोड़ा सहज तो बना ही देती है. 

लौटते वक्त आश्चर्यजनक रूप से जम्मू का बारिश से भीगा मौसम मानो मुसकुराता हुआ सवाल कर रहा था – “क्यों ! हो गया न !!!”

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