धरती पर अगर कहीं जन्नत है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है; कश्मीर के संदर्भ
में यदि यह उक्ति कही गई थी तो यह सर्वथा सटीक है। यूँ तो कश्मीर का नाम लेने पर
सामान्यतः श्रीनगर, सोनमर्ग, गुलमर्ग जैसे प्रचलित नाम ही ज़हन में उभरते हैं, मगर वाकई देश के इस मुकूट का हर अंश कहीं से भी एक-दूसरे से
कमतर नहीं है। चाहे आप इस प्रदेश के सुदूरतम स्थल तक चले जाएँ यहाँ की सुंदरता से
आप मंत्रमुग्ध हुये बिना रह नहीं सकेंगे। और वाकई भीड़-भाड़, शोर-शराबे, गंदगी आदि ( जो
कि मशहूर पर्यटन स्थलों की पहचान बन गई है) से दूर प्रकृति का संपूर्ण आनंद लेना
हो तो कुछ कदम और आगे तो बढ्ना ही पड़ेगा।
प्रकृति के अलौकिक दृश्यों को उनकी पूरी
भव्यता के साथ प्रकृति प्रेमियों के समक्ष रखने वाले स्थलों में एक प्रमुख नाम है ‘ राजधन पास ’। श्रीनगर से लगभग
100 किमी और बांदीपूर – गुरेज मार्ग पर लगभग 3000 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह पास प्रसिद्ध ‘सिल्क रूट’ से भी जुड़ता है। हिमालय
की ऊँची चोटियों में से एक पर खड़े होकर समकक्ष स्थित
चोटियों को निहारना एक अलग ही अनुभूति देता है। सर्दियों में यह मार्ग बर्फ से
ढँका होने के कारण आवागमन बाधित रहता है, मगर गर्मियों की
शुरुआत में इसपर सहेजी हुई बर्फ की चादर इसकी सुंदरता और भव्यता को और भी आकर्षक
बना देती है।
राजधन पास पर ही एक पीर बाबा की दरगाह भी
है, जो स्थानीय जनता
की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। कहते हैं 30 के दशक में लाहौर से यहाँ आ बसे थे
बाबा, जो अपनी साधना से
बाहर निकल कभी-कभी ही स्थानीय वाशिंदों से मिल पाते थे। उनकी मृत्यु के बाद
श्रद्धालुओं ने उनके शव को दफनाने के लिए बाँदीपुर ले जाना चाहा, मगर आस-पास की मधुमक्खियों ने उनपर हल्ला बोल दिया। अंततः
इसी स्थल पर ही उनकी क़ब्र स्थापित की गई। आज यह स्थल एक प्रसिद्ध दरगाह का रूप ले
चुका है, जिसका प्रबंधन
भारतीय सेना करती है।
मई-सितंबर तक यह स्थल भ्रमण के उपयुक्त
माना जाता है। अप्रैल में मेरे इस ओर से गुजरने के दौरान अचानक हुई हल्की बर्फबारी
ने इस स्थल के अपने एक अत्यंत ही मनमोहक रूप को हमारे सामने पेश कर दिया था।
अगर आप वाकई एक प्रकृति प्रेमी हैं तो
इसे अकेले ही एंजॉय करें या फिर आपही की तरह कुछ और चाहने वालों का साथ हो.....