29 दिसंबर 1989 को रिलीज हुई ‘मैंने प्यार किया’ के 25 साल पूरे हो रहे हैं। इसके साथ एक पूरी पीढ़ी जवाँ हुई है जिसकी यादों में यह फिल्म रची-बसी है। किशोर वय प्रेम के रोमानी अहसासों को अभिव्यक्ति देती यह फिल्म कई मायनों में ट्रेंड सेटर थी। शायद इसके पीछे युवा निर्देशक सूरज बड़जात्या की युवा सोच भी थी जिसने राजश्री बैनर की परंपरा को भी एक युवा अंदाज दिया। घिसी-पीटी ऐक्शन फिल्मों के दौर में युवा प्रेम कहानी को बिल्कुल फ़्रेश अंदाज में प्रस्तुत करने का यह प्रयास एक नए दौर के शुरू होने की कहानी कह रहा था। ‘एक लड़का और लड़की दोस्त हो सकते हैं’ के सवाल को स्पर्श करती यह फिल्म युवा पीढ़ी की बदलती सोच को भी अभिव्यक्त कर रही थी।
स्थापित कलाकारों की भीड़ से अलग नए चेहरों को स्वीकार करने की दर्शकों की चाहत को इस फिल्म की अपार सफलता ने दृढ़ता से स्थापित किया। भाग्य श्री की सरल और घरेलू छवि घर-घर में बस गई, युवा दिलों पर छा गई, सलमान खान नई पीढ़ी के एक रोल मौड़ल के रूप में उभरे। कोई शक नहीं कि शरीर सौष्ठव पर ध्यान देने का ट्रेंड स्थापित करने में भी सलमान की छवि की प्रमुख भूमिका रही जो आज भी कायम है।
हिन्दी सिनेमा में काफी समय से हाशिये पर पड़ी सहायक भूमिकाओं में माँ की छवि को एक नया आयाम मिला। अपने बेटे को असीम प्यार करने वाली ममतामयी माँ जो उसे संस्कार देती है और जिन संस्कारों पर खड़ा प्रेम जब अपने प्यार की पसंदगी का इज़हार करता है तो सही गलत के पक्ष को समझते हुये वह अपने पति के बजाए बेटे के पक्ष में मजबूती से खड़ी होती है। अथाह लाड़-प्यार में पला बेटा अपने प्यार को पाने के लिए शौर्टकट नहीं अपनाता बल्कि एक ऐसा कठिन रास्ता चुनता है जो उसके प्यार की राह में दीवार बने सभी लोगों को उसके समर्थन में ले ही आता है। विदेश से लौटे प्रेम के माध्यम से पश्चिम और भारतीय परंपराओं का टकराव भी इसके बाद की कई फिल्मों में बखूबी आजमाया गया। दोस्ती, अमीरी-गरीबी, सही-गलत, चालबाजियाँ और सच्चाई तथा प्यार की ताकत जैसी हिन्दी सिनेमा के कई पारंपरिक विषयों को प्रभावी तरीके से स्पर्श किया गया ‘मैंने प्यार किया’ में। तमाम आधुनिकता के बावजूद राजश्री की पारिवारिक फिल्मों की प्रचलित छवि इस फिल्म में भी कायम रखी गई जो इस फिल्म के प्रसिद्ध बिना प्रत्यक्ष संपर्क में आए फिल्माए ‘किस सीन’ से भी झलकती है जो सलमान की नजर में हिन्दी सिनेमा का बेस्ट किस सीन है।
गौरतलब है कि ‘बीवी हो तो ऐसी’ में अपनी परफ़ौर्मेंस से निराश सलमान ने सूरज से खुद को इस फिल्म में न लेने का भी आग्रह किया था, जिसे सूरज ने नकार दिया और उनका यह सफल साथ आज भी कायम है। इसी तरह भाग्य श्री से पहले यह भूमिका दूरदर्शन के धारावाहिक ‘फिर वही तलाश’ फेम पूनम को औफ़र की गई थी। अगर उन्होने यह भूमिका स्वीकार कर ली होती तो घर-घर और हर जवाँ दिल में बसने वाली सुमन की छवि उन्ही की होती...
इसके साथ राम-लक्ष्मण के संगीत को याद न किया जाना भी अनुचित होगा जिनके माध्यम से हिन्दी सिनेमा में अर्से बाद सुरीले गीतों की पुनः वापसी हुई...
बहरहाल अपने बेहतरीन अभिनय, संवाद, गीत-संगीत और निर्देशन आदि से सजी यह फिल्म बौलीवुड के इतिहास का एक मील का पत्थर है जो आगे भी कई फिल्म प्रेमियों को आकर्षित और प्रेरित करती रहेगी.......