Tuesday, April 21, 2015

राज अच्छे हैं: Time Capsule


कुछ राज कभी सामने आते नहीं, कुछ राज सामने आने दिये जाते नहीं... कुछ राज आधे सामने आते हैं-आधे पर्दे के पीछे ही रखे जाते हैं... सबके पीछे अपने-अपने स्वार्थ होते हैं... तात्कालिक लाभ के साथ लंबी अवधि तक भ्रम फैलाए रखना भी इसके कारणों में से हैं। और ये देश जिसकी परी और रहस्य कथाओं में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी है वहाँ ऐसे किस्सों का होना तो आम होना ही है...
ऐसे ही किस्सों में एक है टाईम कैपसूल का... यूँ तो ये कहानी एक बार हवा में उठ कर शांत हो चुकी है, मगर कोई कारण नहीं कि  अफवाहों से प्राणवायु लेने वाली लौबी के तत्वावधान में इसे समुचित समय पर फिर हवा न दी जाए...
कहा जाता है कि आजादी की 25 वीं या 26 वीं वर्षगांठ पर तत्कालीन प्र.मं. स्व. इन्दिरा गांधी ने एक टाईम कैप्सूल 1000 वर्षों के लिए लाल क़िला के प्रांगण में कहीं दबवाया था जिसमें इस देश का इतिहास दर्ज था। टाइम कैप्सूल- धातु का एक पात्र होता है जिसके भीतर दस्तावेज और अमूल्य प्रतीक चिह्न रखकर इसे जमीन में दबा दिया जाता है। यह भी कहा गया कि यह कैप्सूल 27 मई को जमींदोज़ किया गया जो कि नेहरू जी
की पुण्यतिथि भी थी और इसमें मात्र नेहरू जी के देश के प्रति योगदानों का ही जिक्र है। खैर एक सनसनीखेज, रहस्यमयी चर्चा का बीजारोपन तो हो ही गया था। परिदृश्य बदला – जनता पार्टी सत्ता में आई। और इसे उनका समर्थन तो मिला ही हुआ था जिनके कंधों पर देश का यथार्थ इतिहास प्रस्तुत करने की स्वआरोपित महती जिम्मेदारी है। कहा गया कि उसने गड़े मुर्दे उखाड़ने की तर्ज यह कैप्सूल भी निकलवाया और इसमें ऐसा कुछ नहीं पाया गया जिसकी और चर्चा की जानी जरूरी लगे... (तहलका पत्रिका, नवम्बर, 2012 में इसके बारे
में कुछ और भी जान सकते हैं) इसके बाद से सभी इसपर चुप हैं, मगर कभी-कहीं सुगबुगाहट होती ही रहती है...
हमें समझना चाहिए कि इतिहास के कई रूप होते हैं। उनकी परतों को उघाड़ना कहीं उल्टा ही न पड़ जाए। हर तरफ-हर चीज की खुदाई हमें खंडहरों, कूड़ों और बदबुओं के बीच ही उलझा देगी... वर्तमान को बेहतर बनाते हुये भविष्य की ओर बढ़ें यही उचित होगा.....
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