धरती पर
स्वर्ग के रूप में विश्वविख्यात कश्मीर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए तो प्रसिद्ध
है ही, इसकी माटी सभ्यता और संस्कृति के विकास के लिए भी काफी उर्वर रही है।
प्राकऐतिहासिक काल से आधुनिक काल तक इसने मानव सभ्यता की विकासयात्रा के कई पड़ावों
को पल्लवित होते देखा है। इसकी धरती बौद्ध, शैव, वैष्णव, सूफी आदि कई परंपराओं की साक्षी रही; जिनके प्रमाण वक्त के बदलते दौरों के विभिन्न झंझावातों का सामना करते
हुये भी आज भी अपना अस्तित्व बचाए रख पाने में सफल रहे हैं। कश्मीर की ऐसी ही कुछ
प्रमुख विरासत में एक है- मार्तंड मंदिर। कश्मीर घाटी के अनंतनाग-पहलगाम मार्ग पर
मार्तंड नामक स्थान पर स्थित यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। हेनरी कोल के
मतानुसार इस मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व 35 में हुआ था। कल्हण रचित राजतरंगिनी जो
कि कश्मीर के इतिहास का एक प्रामाणिक ग्रंथ मानी जाती है के अनुसार इसका निर्माण 8
वीं शताब्दी में राजा ललितादित्य ने करवाया था। यह मंदिर अपने स्थापत्य कला के लिए
प्रसिद्ध है। यह मंदिर एक ऊँचे पठार पर स्थित है, जहाँ से
कश्मीर घाटी का नयनाभिराम दृश्य सामने आता है। विशाल प्रांगण के मध्य में मुख्य मंदिर
और चारों ओर 84 स्तंभाकार संरचनाएँ हैं। इसके साथ ही गर्भगृह और मंडप भी हैं।
मुख्य मंदिर के तीन कक्ष हैं जिनपर प्रतिमाएँ उत्कीर्णित हैं। मंदिर की रचना में
पत्थरों का ही प्रयोग किया गया है, जिन्हे लोहे से जोड़ा गया
है। यहाँ स्थित स्तंभों तथा मुख्य मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्णित प्रतिमाएँ
कश्मीर की प्राचीन मूर्तिकला की उत्कृष्टता का भी प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।
प्राकृतिक और ऐतिहासिक कारणों से आज इस भव्य विरासत के भग्नावशेष ही विद्यमान हैं, मगर फिर भी ये अपने गौरवशाली अतीत का आभास कराने में सक्षम हैं।
विशाल भारद्वाज की 'हैदर' की शूटिंग के सिलसिले में यह मंदिर कुछ विवादों और चर्चा में भी रहा। यह मंदिर एक वैश्विक विरासत का सम्मान पाने की पात्रता रखता है, जिसके संरक्षण और इसके प्राचीन महत्व को पुनर्स्थापित करने हेतु सार्थक प्रयास की आवश्यकता है।
विशाल भारद्वाज की 'हैदर' की शूटिंग के सिलसिले में यह मंदिर कुछ विवादों और चर्चा में भी रहा। यह मंदिर एक वैश्विक विरासत का सम्मान पाने की पात्रता रखता है, जिसके संरक्षण और इसके प्राचीन महत्व को पुनर्स्थापित करने हेतु सार्थक प्रयास की आवश्यकता है।