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नाटक का आमंत्रण |
'मारे गए गुलफाम' जब फणीश्वरनाथ रेणु जी ने लिखी होगी उनकी एक भावना रही
होगी, जब शैलेंद्र ने इसपर फ़िल्म
बनाने का सोचा होगा उनकी भी एक भावना रही होगी, राजकपूर ने जब हिरामन की भूमिका
चुनी होगी, उनकी भी एक भावना रही होगी
और जब वहीदा रहमान ने कहानी सुन
भावुक होते हीराबाई के अपने रोल के लिए स्वीकृति दी उनकी भी एक भावना रही होगी। एक
भावना प्रधान कहानी आज भी लोगों को अपने साथ बांध लेती है चाहे माध्यम जो भी हो।
ऐसा ही फिर दिखा जब इस प्रसिद्ध कहानी का मंचन रंगमंच पर भी हुआ। 14 फरवरी की संध्या नई दिल्ली
के LTG ऑडिटोरियम में मध्यप्रदेश
नाट्य विद्यालय के छात्रों की मैथिली लोकरंग (MAILORANG) के माध्यम से इस नाटक का
मंचन किया। कथानक ही ऐसा है कि दर्शक तो मंत्रमुग्ध थे ही कलाकार भी स्पष्ट दिख रहा था कि काफी समय
अपने किरदार से बाहर नहीं निकल पाए थे।
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वहाँ पैदल ही जाना है... सजन रे झूठ मत बोलो... हीराबाई को ले जाता हिरामन |
कथानक
ज्यादातर लोग जानते ही हैं कि कहानी एक गाड़ीवान हिरामन की है जो बैलगाड़ी चलाता है, चोरी का माल ढ़ोते हुए एक बार पुलिस पकड़ लेती
है। इसके बाद हिरामन कभी भी चोर बाजारी से माल नहीं ढ़ोने की कसम खाता है। एक और
कसम खाता है कि बांस की लदाई नहीं करेगा। लेकिन तीसरी कसम उसे किसी पुलिसिया चक्कर
से परेशान होकर नहीं बल्कि दिल टूटने पर खानी पड़ती है, जब नौटंकी कंपनी में काम करने वाली हीराबाई उसकी
बैलगाड़ी से सफर करती है।
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नौटंकी में प्रदर्शित एक नृत्य प्रस्तुति |
हिरामन का भोलापन हीराबाई को उसकी ओर आकर्षित करता है।
रास्ते में वो उसे महुआ घटवारिन की कहानी सुनाता है जिसे एक सौदागर ने खरीद लिया
था, और इस कारण उसका प्यार अधूरा रह
जाता है। कहानी में खोया भावुक हृदय हिरामन उन दोनों के बीच अपने लिए एक कोमल
रिश्ता महसूस
करता है।
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पान खाये सैयां हमार... |
उसपे विश्वास इतना करता है कि अपनी दिन भर की कमाई हीराबाई के पास जमा
करवा देता है। कुछ दिन बाद पता चलता है कि वह किसी और मेले के लिए जा रही है। वह
स्टेशन जाता है जहां हीराबाई की बातें सुनकर हिरामन का दिल टूट जाता
है कि उसे भी एक सौदागर ने खरीद लिया है। आखिरी विदा देने के बाद हिरामन तीसरी कसम खाता है कि वह अब किसी भी नौटंकी वाली को गाड़ी पर नहीं बिठाएगा।
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सपने जगा के तूने कहे को दे दी जुदाई... |
पता नहीं वो समझ
भी पाता है या नहीं कि व्यवहारकुशल हीराबाई को अपने पास रोके रख पाना उस जैसे
हिरामनों के लिए संभव नहीं हो सकता। उसके इस हश्र को रेणु की ही कहानी 'रसप्रिया'
का नायक मिरदंगिया भांप
जाता है जो इस कहानी का सूत्रधार भी है और आजकल उसकी ही कहानी लोगों को सुनाता फिर
रहा है। अपनी भी अधूरी कहानी लिए मिरदंगिया जानता है कि कोई भी कहानी अधूरी ही
अच्छी लगती है। हिरामन की कहानी भी अधूरी ही छूट जाती है, जाने कभी पूरी हुई भी या नहीं। वैसे भी हिरामनों
की कहानियां न तो पूरी होती हैं न कोई उनके अंत के बारे में जानने में दिलचस्पी ही
रखता है...
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काहे को प्रीत जगाई, काहे को दुनिया बनाई... हिरामन के मन के भाव जताता मिरदंगिया |
युवा
निर्देशक राजीव रंजन झा और सह निर्देशक रितिका का निर्देशन प्रभावशाली था। संगीत
में अनिल मिश्र का योगदान नाटक को काफी समृद्ध कर रहा था। सभी कलाकारों का अभिनय
अच्छा था लेकिन हिरामन की भूमिका निभा रहे अक्षय सिंह ठाकुर और मिरदंगिया की
भूमिका निभा रहे गौरव की भूमिका ने विशेष रूप से प्रभावित किया, जिनकी आँखें भी अभिनय में उनका न सिर्फ बखूबी
साथ दे रही थीं बल्कि दर्शकों को खुद से बांध भी ले रही थीं...
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नाटक की संगीत टीम |
कुल
मिलाकर नाटक एक अच्छा था सिर्फ इस एक और राय के साथ कि नाटक में फ़िल्म से
लिये कुछ गाने अच्छे तो लग ही रहे थे,
नृत्य और संगीत
संयोजन भी अच्छा था;
लेकिन नाटक कहानी
पर आधारित था फ़िल्म पर नहीं;
ऐसे में स्वरचित रचनाओं
को शामिल किये जाने की संभावनाओं पर विचार करना चाहिए था...
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नाटक की पूरी टीम
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