दूरी की नाप जोख सभ्यता के आदिकाल से ही मनुष्य के लिए काफी महत्वपूर्ण रही है। समय के साथ विकास और आवश्यकताओं के मद्देनजर इसके उपयोग और माध्यमों में भी बदलाव आये।
शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित करवाई गई ग्रांट ट्रंक रोड जिसे भारत का पहला राष्ट्रीय राजमार्ग माना जाता है उस प्राचीन मौर्ययुगीन मार्ग का पुनर्निर्माण मानी जाती है जो तक्षशिला से पाटलिपुत्र के मध्य उपयोग किया जाता था। यूनानी यात्री मैगस्थनीज़ के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य की सेना इस राजमार्ग की देखभाल करती थी। उस दौर में यह मार्ग उत्तरापथ कहलाता था जो बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का भी प्रमुख पथ बना।
आज देखें तो चार मुख्य साम्राज्यों मौर्य साम्राज्य, अफ़ग़ान शेर शाह सूरी, मुग़ल साम्राज्य, ब्रिटिश साम्राज्य और आज़ादी के बाद आज भी यह देश की एक मुख्य सड़क है।
विभिन्न साम्राज्यों के दौर में इस मार्ग पर नियत दूरी पर तालाब और कुएं बनवाए गए, छायादार के लिए पेड़ लगवाए गए और यात्रियों के विश्राम के लिए सराय आदि बनाये गए। आज भी कई नए शहर, हाईवे आदि आधुनिक विकास के चिह्न इस राजमार्ग के इर्दगिर्द ही उभर रहे हैं।
इस प्रमुख मार्ग पर प्राचीन काल में दो स्थलों/गांवों के बीच की दूरी के निरूपण, सूचना-डाक आदि की सुनियोजित संयोजन के लिए एक अनूठी व्यवस्था अस्तित्व में आई कोस मीनार के रूप में।
यह कोस मीनार प्रत्येक हर कोस पर बनाई जाती थी, जिनसे स्थानों की दूरी प्रदर्शित होती थी। अधिकतर मीनारें 1556-1707 के मध्य बनवाई गईं। समय के साथ कई मीनारें अपना अस्तित्व खो बैठीं मगर उनमें से कुछ आज भी अपने गौरवशाली अतीत की विरासत सहेजे खड़ी हैं।
देश में सबसे ज्यादा कोस मीनारें हरियाणा में (लगभग 50) सुरक्षित हैं जिनमें से कई को पुरातत्व विभाग का संरक्षण भी मिला है। बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल के शासन काल में उन के मुख्य सचिव श्री एस के मिश्र जिनकी पर्यटन ओर पुरातात्विक में विशेष रूचि थी के प्रयासों से इस क्षेत्र में कई कार्य हुए जिनमें कोस मिनारो के संरक्षण के लिए हरियाणा मे विशेष अभियान भी शामिल था। इन मीनारों के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते पाकिस्तान में भी इन कोस मीनारो के संरक्षण के प्रयास आरंभ हुए हैं।
देश में सबसे पहले शेर शाह सूरी ने डाक सेवा आरंभ की थी। उस समय हरकारों की नियुक्ति होती थी जो चिट्ठी लेकर तीन मील दौड़ते थे। वो दौड़ते हुए एक चकरी लिए रहते थे जिसमे घंटी होती थी और दौड़ते हुए घूमती थी। सब लोग घंटी सुनकर रास्ता छोड़ देते थे। तीन मील पर दूसरा हरकारा तैयार होता था जो चिट्ठी मिलते ही फिर तीन मील दौड़ता था। इस तरह संदेश हरकारों अथवा घुड़सवारों के माध्यम से पंहुचाये जाते थे।
ये मीनारें अफ़ग़ान शासक शेरशाह सूरी और मुग़ल बादशाहों अकबर, जहांगीर और शाहजहां की शासन व्यवस्था की गवाह रही हैं। यह इस देश के इतिहास और संचार क्षेत्र के विकास की धरोहर हैं। इनके बारे में जानकारी पाना, इन्हें सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है।
फरीदाबाद-आगरा के मध्य ऐसे ही एक कोस मीनार पर विज्ञापन रंगा पाया तो एक के आसपास इंसानों ने ही पशुओं से बदतर गंदगी फैला रखी थी। पशुओं को भी इस बात का एहसास होता है कि अपने आसपास की किस जगह का कैसा उपयोग करना है। खुद को स्वघोषित समझदार समझने वाले कई इंसान उनके स्तर से भी कहीं नीचे हैं।
प्रशासन, पुरातत्व विभाग और इतिहास-संस्कृति आदि के प्रति जागरूक जनों को भी ऐसी विरासत के प्रति संवेदनशील होना चाहिए...
(स्रोत- इंटरनेट पर उपलब्ध विविध सामग्रियों से संकलित)