बनारस से हावडा तक के सफ़र का हाल तो आप पिछली पोस्ट्स में पढ़ ही चुके हैं। हावडा से अगली ट्रेन जो शाम 4 बजे प्रस्तावित थी पुनर्निर्धारित हो रात 8 बजे हो गई थी. दिन भर के इस अतिरिक्त समय का सदुपयोग दक्षिणेश्वर काली भ्रमण ओर दो बार नेट सर्फिंग के रूप में किया.
नॉर्थ-ईस्ट की यात्रा का कार्यक्रम बनाने वालों को मेरा सुझाव रहेगा कि वो इधर पोस्ट-पेड सिम लेकर आयें, अन्यथा असम में प्रवेश के साथ ही सिम डिस्कनेक्ट होने की समस्या से मेरी तरह उन्हें भी दो-चार होना पड़ सकता है।
खैर सफ़र का मुख्य आकर्षण तो अभी बाकी ही था., जब गोहाटी से डिब्रूगढ़ होता ब्रह्मपुत्र तट पर पहुंचा. समझ गए न आप - यानी कि रेल ओर बस के सफ़र के बाद नौका यात्रा अभी बाकी ही थी. मध्यम आकार की बोट्स पर गाडियां, कार, बाइक्स आदि चढा ब्रह्मपुत्र पार आना - जाना ही मुख्य भूमि से जुड़ने का तत्कालीन एकमात्र माध्यम था।इस जीवनधारा पर अत्यधिक वर्षा या पानी की कमी के भी संभावित परिणामों का आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं. खैर, स्वदेश के शाहरुख़ के साथ "ये जो देश है तेरा ...." गुनगुनाता अरुणाचल पहुँच ही गया.
यहाँ मेरा अगला लक्ष्य था पुनः ब्लॉग जगत से जोड़ने वाली मेरी जीवनधारा साइबर कैफे की खोज, जो एकमात्र कैफे के रूप में पूरी तो हुई मगर 50 रु। / घं की कीमत पर. किन्तु इस आभासी जगत से वास्तविक रूप से जुड़े रहने की संतुष्टि का मूल्य इससे कहीं अधिक था.
आगामी पोस्ट्स में अरुणाचल ओर अपने फिल्ड वर्क से जुड़ी और भी बातें बांटने का प्रयास करूँगा।
इस पोस्ट के साथ संलग्न है - विक्टोरिया मेमोरियल के पास इतराती मेरी, जीवनधारा ब्रह्मपुत्र पर निर्भर जनजीवन की और अरुणाचल में मेरे नए आशियाने की झलक।
9 comments:
यात्रा संस्मरण बहुत बढ़िया रहा!
भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
बढिया यात्रा संस्मरण .. आपको हिन्दी ब्लाग जगत से जुडे हुए देखना अच्छा लगता है !!
आप तो पूरे आधुनिक गंगा पुत्र ही ठहरे
बहुत सुंदर लगा आप का यात्रा संस्मरण, भाई सब चित्रो के बारे तो लिखते कहां कहां के है, सब से पहला चित्र कहां का है जरुर लिखे.
धन्यवाद
बहुत अच्छे लगे आपके यात्रा संस्मरण धन्यवाद व शुभकामनायेम्
@ राज जी,
साइबर कैफे की अनिश्चितता पोस्ट्स को भी प्रभावित कर रही है, इसलिए विधिवत तस्वीरों की हेडिंग नहीं दे पा रहा हूँ, मगर तस्वीरों के बारे में क्रम से पोस्ट के अंत में लिखा है.
अभिषेक जी,
आपके आशियाने पर तो मेरा भी मन आ गया है. और ब्रह्मपुत्र में तो गंगा से भी ज्यादा पानी लग रहा है.
बहुत अच्छी पोस्ट पर आगे पढने की भूख बढाती हुई ।
विक्टोरिया मेमोरियल वाली आपकी तसवीर देख कर कलकत्ते की पुरानी योदें ताजा़ हो गईँ ।
यात्रा संस्मरण पढ़ कर तो यात्रा करने का दिल होने लगा है
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