Thursday, April 12, 2012

दिल्ली की यादों में शामिल सीमा तोमर

लगभग एक साल दिल्ली में रहता हुआ अब जब इसे छोड़ने के दिन करीब आ रहे हैं तब एक बार पलट कर देखता हूँ तो निश्चित रूप से इस अरसे में दिल्ली के कई रूपों को देखने का अवसर मिला. यहाँ की कला-संस्कृति और साहित्यिक हलचलों से तो रूबरू हुआ ही देश की कुछ प्रमुख राजनीतिक घटनाक्रमों के भी साक्षी बनने का अवसर पाया. इनके अलावे कुछ मानवीय पहलुओं को भी जानने के अवसर मिला. महानगरीय संस्कृति में अक्सर समयाभाव और दबाव में रिश्तों के टूटने और कायम न रह पाने के किस्से सुनने को मिलते रहे हैं मगर कुछ उदाहरण इसके विपरीत भी होते हैं. अपने अकेलेपन के साथ जब दिल्ली की सांस्कृतिक सरगोशियों में खुद को डुबो सा चूका था, तभी एक ऐसी शख्शियत से मुलाकात हुई शायद जिस तरह के लोगों के लिए ही कभी दिल्ली को दिल वालों की नगरी कहा गया होगा ! और यह संपर्क भी हुआ तो आभासी दुनिया के प्रमुख माध्यम फेसबुक के जरिये. 

फेसबुक पर मित्रों की वालपोस्ट्स और कमेन्ट देखता ही कभी सीमा तोमर जी की कुछ पंक्तियों के अपडेट्स पर नजर पड़ी, जिसने सहसा ही अपनी ओर आकर्षित किया. रचनात्मक लोगों से मित्रता की आकांक्षा ने मुझे उन्हें फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने को प्रेरित किया और सामान्यतः अन्य महिलाओं की अपेक्षया इन्होने काफी जल्दी मेरी फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली. इसी के बाद पता चला कि ये एक उदीयमान चित्रकार और उभरती कवयित्री भी हैं. इनसे और इनकी कला से रूबरू होने का अवसर भी जल्द ही मिला जब ललित कला अकादमी में आयोजित मास्क प्रदर्शनी में इनकी कृति को देखने का मौका मिला. इसी अवसर पर इनके पति श्री राम चित्रांशी जी से मिलने का भी अवसर प्राप्त हुआ. पहली ही मुलाकात में लगा ही नहीं कि जैसे हम पहली बार मिले हों. ऐसा अपनापन, ऐसी आत्मीयता इस अजनबी और अनजाने शहर में अकल्पनीय ही थी. इसके बाद तो एक-दूसरे से मिलने के और भी कई मौके मिले. हमारी साझी अभिरुचियों ने हमें कई मौकों पर मिलवाया; जैसे कला प्रदर्शनी, दिल्ली हाट, सूरजकुंड मेला और गुलज़ार साहब के साथ एक महफ़िल जैसे और भी कई अवसर...
एक साहित्यिक सम्मलेन में कविता पाठ करतीं सीमा जी...

जामिया मीलिया से कला में स्नातक और अपने चित्रों में महिलाओं की भूमिका और अस्तित्व को मजबूती से उभारने वाली सीमा जी एक संवेदनशील कवि भी हैं. गुलज़ार साहब के लेखन से अतिशय प्रभावित सीमा जी अपनी रचनाओं को भी भाषाई क्लिष्टता से दूर रखते हुए बहुत सरल और सहज शब्दों में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करती हैं. कुछ उदाहरण - 

1. आज कुछ कमी रहने दो 
आँखो में बरकरार नमी रहने दो
चाँद ख्वाबो के आसमान पर है
पावं के नीचे ज़मीं रहने दो ...........

2. डोर का एक सिरा 
मेरे पास रहा
और एक तुम्हारे
और बीच में बँधी
गाँठ के दो सिरो
में से भी
एक मेरे पास था
और एक तुम्हारे ....
हिसाब के पक्के हो
तो बताओ ज़रा

... कितने बंधनो को 

तुम थामे रहे 
और कितने रिश्तो को
मैने संभाला .....
राम जी, सीमा जी और मैं...

सीमा जी को उनके बेह्तरीन भविष्य और रचनात्मक ऊँचाइयों को छूने की हार्दिक शुभकामनाएं. वाकई आप जैसे लोग काफी कम हैं.....


Sunday, April 1, 2012

ब्लौगिंग से चलते - चलते : साँची से होते हुए..

दिल्ली आये हुए एक साल से थोडा ज्यादा अरसा हो गया, और अब फिर यहाँ से विदाई की बेला है - धरती के स्वर्ग की ओर (कृपया इस सूचना को आज के दिन विशेष से जोड़ कर न देखा जाये...)

जानता था एक इंजीनियरिंग जियोलौजिस्ट  होने के नाते मुख्य भूमि पर ज्यादा दिन नहीं लिखे हैं मेरे लिए, इसलिए इस अवधि को भरपूर जिया. आर्ट और कल्चर से जुडी कई गतिविधियों में शामिल हुआ, कई महत्वपूर्ण लोगों से मिलने का मौका मिला, काफी घुमा, वापस ब्लौगिंग से जुड़ा और अपने अनुभवों को शेयर किया. इस सफ़र में आप लोगों ने भी पूरा साथ दिया और उत्साहवर्धन किया धन्यवाद. इस सफ़र का सारांश फिर कभी. पहले इस सफ़र के संभवतः अंतिम महत्वपूर्ण पड़ाव प्राकैतिहसिक महत्व के ' भीमबेटका' और ऐतिहासिक स्थल 'साँची' की एक झलक चित्रों के माध्यम से...

प्राकऐतिहासिक भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्द भीमबेटका

वो पहली रचना !!!

समय के साथ अपनी पहचान खोते भित्तिचित्र

भोपाल का एक प्राचीन मंदिर

साँची की शांति वाकई महसूस हुई यहाँ.

स्तूप को स्पर्श करने पर महसूस हुए भावों को अभिव्यक्त नहीं कर सकता 

प्रवेश तोरणों पर बुद्ध तथा तत्कालीन जनजीवन को झलकाती झांकियां

प्राचीन बौद्ध मठ

उदयगिरी की गुफाएं जहाँ जैन धर्म का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है

विदिशा का करीब 2000 वर्ष प्राचीन 'गरुड़ स्तंभ' जिसे हेलियोदौरस ने 'वासुदेव' (विष्णु) के सम्मान में स्थापित करवाया था...

 चैत्र नवरात्री और रामनवमी के पावन पर्व की भी हार्दिक शुभकामनाएं...
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