गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य के अलावा न सिर्फ संगीत, चित्रकला, दर्शन आदि में अपना योगदान दिया बल्कि तब के अभिव्यक्ति के उभरते माध्यम सिनेमा के लिए भी एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई। नटिर पूजा एकमात्र ऐसी फ़िल्म है जिसमे गुरुदेव ने निर्देशक तथा एक महत्वपूर्ण पात्र की भूमिका भी निभाई। एक बौद्ध मिथक पर आधारित उनकी कविता 'पुजारिनी' का नाट्य रूपांतरण थी 'नटिर पूजा'। 1932 में टैगोर की 70 वीं वर्षगांठ पर न्यू थियेटर के बैनर तले इसे फ़िल्म के रूप में फिल्माने का प्रयास किया गया। गुरुदेव के ही मार्गदर्शन में स्क्रीनप्ले तैयार किया उनके भतीजे दिनेंद्रनाथ टैगोर ने तो कलाकार शांतिनिकेतन से ही लिए गए। 22 मार्च 1932 को कोलकाता के चित्रा सिनेमा में यह फ़िल्म प्रदर्शित हुई। निर्माताओं को सफलता की उम्मीद तो थी ही इसलिए फ़िल्म से प्राप्त होने वाली आधी राशि शांतिनिकेतन को समर्पित करने की भी बात थी, मगर आर्थिक सफलता के पैमाने पर फ़िल्म खरी न उतर सकी। संभवतः इसका कारण इसका नृत्य नाटिका स्वरुप था। फिर भी कई समीक्षक इसे बंगला संस्कृति और टैगोर की छाप लिए एक अमूल्य धरोहर मानते हैं।
इस महामानव को उनके जन्मदिवस पर नमन.....
1 comment:
सुंदर प्रस्तुति.
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