महान महिला क्रांतिकारी 'दुर्गा भाभी' जी का जन्मदिन है आज। क्रांतिकारियों के मध्य उनके वजूद का अनुमान इसी से लग सकता है कि वो आज भी 'दुर्गा भाभी' के रूप में ही याद की जाती हैं।
7 अक्टूबर, 1907 को शहजादपुर, इलाहाबाद में जन्मीं दुर्गावती देवी का बचपन बिन मां के साए में गुजरा। उन्होंने केवल तीसरी कक्षा तक पढ़ाई की थी। जब वे बारह वर्ष की हुईं तब उनका विवाह भगवती चरण वोहरा से कर दिया गया जो खुद भी एक समर्पित क्रांतिकारी थे। यही कारण था कि क्रांतिकारी दुर्गा भाभी का घर क्रांतिकारियों के लिए आश्रयस्थल बन गया था। उनके घर जो भी स्वतंत्रता सेनानी आते वह उनका आदर-सत्कार करतीं। इस वजह से सभी उन्हें दुर्गा भाभी बुलाते थे।
जो भी क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ कोई योजना बनाता, तो ठिकाना दुर्गा देवी का घर ही होता था। दुर्गा देवी क्रांतिकारियों के लिए चंदा इकट्ठा करतीं और पर्चे बांटती थीं।
उनकी भूमिका मात्र गृहस्थ रूप में सेवा तक ही सीमित न रही। सन 1927 में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिये लाहौर में बुलायी गई बैठक की अध्यक्षता दुर्गा भाभी ने की थी। भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी की सजा देने वाले गवर्नर हेली से बदला लेने के लिए दुर्गा देवी ने गवर्नर पर 9 अक्तूबर, 1930 को गोली चलाई। इस गोली से हेली बच गया और उसका सैनिक अधिकारी टेलर घायल हो गया। इस घटना के बाद दुर्गा को गिरफ्तार कर लिया और तीन साल की सजा सुनाई गई। मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी दुर्गा भाभी ने गोली मारी थी, जिसके बाद उन्हें और उनके साथी यशपाल को गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्होंने पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण कानपुर और लाहौर से लिया। वे राजस्थान से पिस्तौल लाकर क्रांतिकारियों को देती थीं। चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ते हुए खुद को जिस पिस्तौल से गोली मारी थी वह भी दुर्गा भाभी ने लाकर दी थी।
देश के क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में यह प्रसंग अमर हो गया है जब भगत सिंह और सुखदेव ब्रिटिश पुलिस अफसर जॉन सांडर्स को गोली मार कर आए तो दुर्गा देवी के घर रुके। उन्हें कोलकाता पहुंचाने के क्रम में पुलिस से बचाने के लिए दुर्गा देवी ने भगत सिंह का हुलिया बदलवाया और खुद को उनकी पत्नी बता कर उन्हें कोलकाता ले गईं।
28 मई 1930 को रावी नदी के तट पर दुर्गा देवी के पति भगवती चरण वोहरा अपने साथियों के साथ बम बनाने के बाद परीक्षण कर रहे थे जिस दौरान उनकी मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु के बाद भी दुर्गा देवी सक्रिय रहीं। दुर्गा भाभी को 1937 में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष नियुक्त की गईं। इस पद पर आकर उन्होंने कांग्रेस के कार्यक्रमों में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
दुर्गा देवी 1935 में गाजियाबाद में प्यारेलाल कन्या विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी करने लगीं। इसके बाद 1939 में मद्रास जाकर मारिया मांटेसरी से मांटेसरी पद्धति का प्रशिक्षण लिया और 1940 में लखनऊ में एक मकान में सिर्फ पांच बच्चों के साथ मांटेसरी विद्यालय खोला। आज भी यह विद्यालय लखनऊ में सिटी मांटेसरी इंटर कालेज के नाम से जाना जाता है।
15 अक्तूबर, 1999 को गाजियाबाद में रहते हुए बानबे साल की उम्र में दुर्गा देवी का निधन हो गया।
देश की आज़ादी में उनके योगदान एवं स्मृतियों को नमन...
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