Showing posts with label मालविकाग्निमित्रम. Show all posts
Showing posts with label मालविकाग्निमित्रम. Show all posts

Sunday, January 8, 2012

रंगमंच से - कालिदास की मालविकाग्निमित्रम

खजुराहो में प्राचीन भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत से रूबरू हो लौटने के तुरंत बाद ही हमारे समृद्ध  इतिहास की एक और विरासत से साक्षात्कार का अवसर मिला - भारत की पारंपरिक 'नौटंकी' शैली में महाकवि कालिदास की सांस्कृतिक रचना 'मालविकाग्निमित्रम' की नाट्य प्रस्तुति के रूप में. 


नई दिल्ली के ' Indian  Habitat  Centre ' के स्टीन ऑडिटोरियम में श्री अतुल यदुवंशी द्वारा परिकल्पित  व निर्देशित ' स्वर्ग रंगमंडल ' की प्रस्तुति मालविकाग्निमित्रम महाकवि कालिदास की प्रथम रचना मानी जाती है. 

लगभग 2200 वर्ष पूर्व के युग का चित्रण करते इस नाटक में शुंग वंश जो कि वैदिक पुनर्जागरण का भी दौर था के काल की कला, संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था आदि की उल्लेखनीय झलक मिलती है. इस नाटक में कालिदास जी द्वारा स्वांग, चतुष्पदी क्षंद तथा गायन के साथ अभिनय के भी संकेत किये गए हैं, जो इंगित करते हैं कि उस युग में भी इन लोकनाट्य के तत्व विद्यमान थे.


नाटक की कथावस्तु राजकुमारी मालविका और विदिशा नरेश महाराज अग्निमित्र के मध्य प्रेम पर केन्द्रित है. विदर्भ राज्य पर अधिकार हेतु संघर्ष की स्थिति में माधवसेन अपनी बहन मालविका को सुरक्षा हेतु अन्यत्र भेज देते हैं. परिस्थितिवश मालविका को गुप्त रूप से विदिशा जाना पड़ता है जहाँ वो राजकीय रंगशाला में संगीत-नृत्य आदि का प्रशिक्षण प्राप्त करती है. अग्निमित्र एक चित्र में मालविका को देख उसपर मोहित हो जाते हैं. महारानी धारिणी इनके प्रेम प्रसंग को रोकने के प्रयास करती है, मगर राजा का मित्र और विदूषक (जो कि तत्कालीन नाटकों का एक अभिन्न भाग हुआ करता था) गौतम के प्रयासों से दोनों का मिलन होता है. नाटक के अंत में मालविका की राजसी पृष्ठभूमि के संबंध में ज्ञात होने पर धारिणी स्वयं मालविका और अग्निमित्र का विवाह करवा देती है. 

निर्देशक अतुल यदुवंशी अपनी टीम के साथ...
नाटक के एक दृश्य में तत्कालीन मान्यता कि सुन्दर स्त्रियों के चरण प्रहार से अशोक के फूल पुष्पित हो जाते हैं का भी रोचक वर्णन किया गया है. 

प्रमुख कलाकारों में अग्निमित्र - अजित विक्टर नाथ, मालविका - देविका पांडे, विदूषक गौतम - गौरव के अभिनय ने प्रभावित किया. नाटक के प्रस्स्तुतिकरण में इसके गीत - संगीत की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही...

लोक नाट्य और सांस्कृतिक तत्वों को अमूमन एक दुसरे पर वर्चस्व के रूप में ही कल्पित किया गया है, मगर स्वर्ग ग्रुप की ये प्रस्तुतियां देश के पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत के समन्वय का एक अनूठा उदाहरण हैं. इस ग्रुप ने कालिदास, भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रेमचंद, रेणु आदि की कई रचनाओं को भी नौटंकी शैली में अभिव्यक्ति दी है. संस्था को उसके इस अभिनव और सांस्कृतिक समन्वय के प्रयास के लिए शुभकामनाएं.  
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...