Friday, December 19, 2008

प्रगति और प्रकृति: संपूरक या विलोम

ब्रेक के बाद
ब्रेक के दौरान पिछले दिनों दिल्ली जाना हुआ. वहाँ अपनी व्यस्तता से कुछ पल निकाल जंतर-मंतर गया। जंतर-मंतर की विशेषताओं का जिक्र अगली किसी पोस्ट में, मगर यहाँ जिस विषय को उठा रहा हूँ वह 'landscape' (भू-दृश्य) के संरक्षण को लेकर है। क्या हम ताजमहल को बड़ी-बड़ी इमारतों से घिरा हुआ देखने की वीभत्स कल्पना कर सकते हैं! यदि नहीं तो अपनी विरासत के प्रति हमारी उपेक्षा का क्या कारण है ? क्या प्रगति का अर्थ प्रकृति पर चढाई करना और उसपर विजय पाना ही है ?
कभी किसी गाँव जाना हुआ, वहां सड़क के किनारे एक पेड़ थोड़ा झुक सड़क की दूसरी ओर तक आ गया था। गाँव वाले अब थोड़ा घूम कर सड़क पार करने लगे थे। उनकी परेशानी को देख मैंने पूछा -" इस पेड़ को काट क्यों नही देते!" एक ग्रामीण ने जवाब दिया- " क्यों भला! देखिये तो कितना सुंदर लग रहा है।" क्या यह सौन्दर्यदृष्टि हम तथाकथित सभ्य शहरियों के पास है ?
मैं तो अपनी व्यस्तता के बाद वापस आ गया, मगर यदि अंधाधुंध भागते इस प्रगतिशील समाज ने थोडी देर ब्रेक ले अगर इन सवालों पर न सोचा तो प्रकृति उसे ब्रेक से वापस आने की फुर्सत नहीं देगी।

8 comments:

नीरज मुसाफ़िर said...

अरे भाई अभिषेक, आ गए वापस. बढ़िया बात है.
आपकी बातों से हंड्रेड परसेंट सैटिस्फाई हूँ.

Vineeta Yashsavi said...

Wapas Aane mai Aapka ek baar fir swagat hai.

अनुपम अग्रवाल said...

बात तो आप ठीक कह रहे हैं पर बढ़ती आबादी का क्या करेंगे ?
इतने कॉन्क्रीट के जंगलों के बाद भी समस्या सुलझ नहीं रही है .
और दूसरी वजह है शिक्षा कम होना

अभिषेक मिश्र said...

हमसे कहीं छोटे आकर वाले देश अपनी विरासत और landscape को संरक्षित रखे हुए हैं. इंग्लैंड के 'Stone Henge' इसके उदाहरण हैं. हम सभ्यता के लिए संस्कृति की बलि नहीं चढा सकते.

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

धरोहर ? यू काव आये ,जौन देस पै सगरे जग कै हर संसकिरिति सभ्भता हमलाबर होए ऊ देस मा कौन धरोहरन के सवाचे, | हमरी सभ्भता मा ई जउन ''अतिथि देवो भवः '' रहा इहै हमारे देस का लै डूबा , जउनौ हमलावर आवा घरै मा घुस बईठा | का जापानियौ या अन्ग्रेजवं पै इतनै हमला भवा रहा ? इहाँ तौ जब लै एक धरोहर का आपन समझौ तब लै दूसर आए धमका , ऊ पुरान धरोहार मटियामेट कै अपनै पसंद थोप दिहिस , अब ई सब के बीचै मा कौउन धरोहर का हम आपन कही ? बतावा ? कुछ अन्चलिकओ लिखौ | अवध-प्रवास [फैजाबाद ] पै आवैक कै सुकरिया !!!

pANKAJ said...

Really your thought is very high.

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगी आप की बात, लेकिन शहर वालो के पास वो दिमाग नही जो एक गाव वाला रखता है.
धन्यवाद सुंदर विचार के लिये

Sajal Ehsaas said...

sach kahoon to mujhe lagta nahi ki ab pragati ki hod mein prakriti ki bali chadni band hogi...dukh ki baat hai par ek dukhad satya hi hai ye

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