सावन की शुरुआत के साथ ही देश भर से काँवडीये अपने भोले बाबा को जल अर्पित करने निकल पड़े हैं। सटीक रूप से कोई नहीं बता सकता कि यह परंपरा कब से शुरू हुई है, मगर कांवड़ यात्रा, कुम्भ आदि ऐसे अवसर हैं, जो हमारे पूर्वजों द्वारा संपूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोने की अनूठी सूझ-बुझ के प्रतीक हैं; जब सारा भारत अपनी तमाम प्रांतीयता, जातीयता, अमीरी-गरीबी के मिथ्या बंधनों को नकार सर्वशक्तिमान सत्ता के प्रति अपने समर्पण का इजहार करता है.
शास्त्रीय रूप से देखें तो 'देवशयनी एकादशी' पर भगवन विष्णु के शयन में चले जाने पर जनमानस को भोले शंकर का ही सहारा रहता है। कृषि प्रधान समाज वाले भारत की मूल आत्मा, सावन में भगवान शिव को जल अर्पित कर शायद 'तेरा तुझको अर्पण' के भाव को ही अभिव्यक्ति देती है.
धार्मिक आस्था से खिलवाड़ की 'फिराक' में रहने वालों की बात छोड़ दें तो यह यात्रा हिन्दू-मुस्लिम एकता की भी जिवंत अभिव्यक्ति है। कांवड़ निर्माण से लेकर प्रसाद निर्माण और मेले के आस-पास व्यापार आदि में मुस्लिम संप्रदाय की भी समान भूमिका रहती है. कांवड़ लेकर चलने वालों में अन्य धर्मावलंबी भी पीछे नहीं हैं.
इस तरह की पद यात्राएं मनुष्य को पुनः प्रकृति से साक्षात्कार का भी अवसर देती है। प्रायः हर धर्म में पदयात्राओं सदृश्य परम्परा इस ओर शोधपूर्ण दृष्टिकोण रखने को भी प्रेरित करती हैं.
आधुनिकता ने ऐसी यात्राओं की असुविधाओं को काफी कम कर दिया है, फलतः अक्सर कम आस्थावान लोग भी इस यात्रा में शामिल हो इसकी पवित्रता और सहयात्रियों सहित स्थानीय जनता को भी परेशान कर इस उत्सव की गरिमा को खंडित करते हैं। निष्ठावान कांवडियों को ही खुद अपने बीच छुपे ऐसे तत्वों को पहचान उन्हें स्वयं से दूर करना चाहिए. इस दिशा में उन्हें स्वयं ही अपने लिए आचार संहिता तैयार करनी चाहिए. छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रख वे इस पावन पर्व के स्वरुप को खंडित होने से बचा सकते हैं.
सभी कांवडियों को उनकी सफल और मंगलमय यात्रा की शुभकामनाएं।
हर-हर महादेव.
11 comments:
तो बनारस में कावरियों की उमड़ती भीड़ ने आपसे यह पोस्ट लिखा ही ली ! मैंने पिछले साल इस फेनामेनन पर विस्तार से लिखा था -देखता हूँ कहीं होगा तो क्वचिदन्य्तोअपि पर जा सकता है !
बढ़िया जानकारी दी आपने।
धार्मिक क्रियाकलापों और तीर्थ के बहाने से ही प्राचीनकाल में लोग पर्यटन किया करते थे .. वैसे आपने सही कहा .. पूरे भारतवर्ष को एक सूत्र में जोडने में भी इनकी भूमिका है।
बहुत सुंदर चित्र खींचा आप ने,
धन्यवाद
संस्कार की धरोहर को बखूबी निभा रहे हैं.
बधाई स्वीकार करें.
चन्द्र मोहन गुप्त
सभी कांवडियों को उनकी सफल और मंगलमय यात्रा की शुभकामनाएं। हर-हर महादेव.
जानकारी के लिए आभार!
सभी कांवडियों को उनकी सफल और मंगलमय यात्रा की शुभकामनाएं। हर-हर महादेव.
जानकारी के लिए आभार!
apne bilkul sahi kaha hai ki kuchh logo ne is yatra ke sawaroop ko baigar diya hai...bahut achhi post...
कांवरियों का अपना महत्वपूर्ण स्थान है बचपन से इन मीलों पैदल चलने वालों की धार्मिक श्रद्धा का प्रशंसक रहा हूँ!
बम भोले!
हर हर महादेव..
अच्छा है जी। मैं यह सोचता हूं कि आर्थिक विकास से यह धार्मिक अनुष्ठान बढ़ेगा या कम होगा?
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