Saturday, October 31, 2009
Arunachal mein Chath
NE aadi pradeshon ko patrachar ki samay sima mein chut to milti hi hai, fir yeh to apna blog parivar hai.
Prastut hai Arunachal mein kafi utsah se manaye gaye 'Chath Parv' ki ek jhalak :-
Monday, October 19, 2009
गंगा से ब्रह्मपुत्र तक
बनारस से हावडा तक के सफ़र का हाल तो आप पिछली पोस्ट्स में पढ़ ही चुके हैं। हावडा से अगली ट्रेन जो शाम 4 बजे प्रस्तावित थी पुनर्निर्धारित हो रात 8 बजे हो गई थी. दिन भर के इस अतिरिक्त समय का सदुपयोग दक्षिणेश्वर काली भ्रमण ओर दो बार नेट सर्फिंग के रूप में किया.
नॉर्थ-ईस्ट की यात्रा का कार्यक्रम बनाने वालों को मेरा सुझाव रहेगा कि वो इधर पोस्ट-पेड सिम लेकर आयें, अन्यथा असम में प्रवेश के साथ ही सिम डिस्कनेक्ट होने की समस्या से मेरी तरह उन्हें भी दो-चार होना पड़ सकता है।
खैर सफ़र का मुख्य आकर्षण तो अभी बाकी ही था., जब गोहाटी से डिब्रूगढ़ होता ब्रह्मपुत्र तट पर पहुंचा. समझ गए न आप - यानी कि रेल ओर बस के सफ़र के बाद नौका यात्रा अभी बाकी ही थी. मध्यम आकार की बोट्स पर गाडियां, कार, बाइक्स आदि चढा ब्रह्मपुत्र पार आना - जाना ही मुख्य भूमि से जुड़ने का तत्कालीन एकमात्र माध्यम था।इस जीवनधारा पर अत्यधिक वर्षा या पानी की कमी के भी संभावित परिणामों का आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं. खैर, स्वदेश के शाहरुख़ के साथ "ये जो देश है तेरा ...." गुनगुनाता अरुणाचल पहुँच ही गया.
यहाँ मेरा अगला लक्ष्य था पुनः ब्लॉग जगत से जोड़ने वाली मेरी जीवनधारा साइबर कैफे की खोज, जो एकमात्र कैफे के रूप में पूरी तो हुई मगर 50 रु। / घं की कीमत पर. किन्तु इस आभासी जगत से वास्तविक रूप से जुड़े रहने की संतुष्टि का मूल्य इससे कहीं अधिक था.
आगामी पोस्ट्स में अरुणाचल ओर अपने फिल्ड वर्क से जुड़ी और भी बातें बांटने का प्रयास करूँगा।
इस पोस्ट के साथ संलग्न है - विक्टोरिया मेमोरियल के पास इतराती मेरी, जीवनधारा ब्रह्मपुत्र पर निर्भर जनजीवन की और अरुणाचल में मेरे नए आशियाने की झलक।
Thursday, October 15, 2009
जाना न दिल से दूर ...
एक लम्बे मगर स्थानीय व्यवधान की वजह से अधूरे फिल्ड वर्क, साइबर कैफे संचालक की चुनावी व्यस्तता (यहाँ चुनावों में काफी सहभागिता रहती है आम लोगों की) आदि की वजह से एक लम्बे अंतराल के बाद आपसे मुखातिब हो पाया हूँ।
पिछले दिनों मार्केट में यूँ ही गुजरता हिंदी फिल्मों की सीडी देख ठिठक गया। कई हिंदी फिल्मों के बीच देवसाहब की 'मैं सोलह बरस की' का होना वाकई आश्चर्यजनक था. फिल्म देखता याद आया कि बीते 26 सितम्बर को देव साहब का जन्मदिन भी था.
देव आनंद नाम है हिंदी फिल्मों की आडंबरी मान्यताओं को चुनौती देते हुए भविष्य की और देखने की प्रेरणा का। आज भी किसी भी तथाकथित युवा को जोश और जज्बे में चुनौती देने वाले देवानंद ने वाकई वह स्थान प्राप्त कर लिया है, जहाँ -"न सुख है - न दुःख है, न दिन है-न दुनिया, न इंसान - भगवान्; सिर्फ मैं हूँ, मैं, सिर्फ मैं".
जीवन के रोमांटिक सफ़र के इस सदाबहार यात्री को शुभकामनाएं।
साथ ही शुभकामनाएं मन्ना डे साहब को भी जिनकी संगीत साधना को फाल्के अवार्ड के द्वारा सम्मानित किया जा रहा है।
जरा याददाश्त पर जोर दें और बताएं कि क्या ये दो हस्तियां कभी किसी गाने में इकट्ठी हुई हैं !
अब वापस अरुणाचल की ओर -
किसी इंसान की तरह स्थान की विशेषता भी छोटी-छोटी बातों से ही देखी जाती है। पिछले दिनों यहाँ बैंक में मेरे छूटे सामान का आधे घंटे बाद भी वहीँ पड़ा रह जाना कुछ तो इंगित करता ही है; और यह भी की यहाँ डुप्लीकेट चाभियाँ नहीं बनतीं. यहाँ के आम लोगों की ईमानदारी और स्पष्टवादिता वाकई सराहनीय है.
प्रयास करूँगा की कुछ पोस्ट्स ड्राफ्ट में सेव कर जाऊं ताकि इस आभासी जगत से वास्तविक संपर्क कायम रह सके।
इस पोस्ट के साथ संलग्न है पिछले माह मनाई गई विश्वकर्मा पूजा और हिंदी में चुनाव प्रचार की एक झलक।
बीते त्योहारों की विलंबित और आने वाले त्योहारों की अग्रिम शुभकामनाएं.
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