अरुणाचल में भी वसंत ने दस्तक दे दी है. शाखों पर नई पत्तियां और फूल दिखने लगे हैं. यहाँ - वहां घूमता प्रकृति के इन नजारों का आनंद उठा रहा हूँ, मगर दिल है कि कहीं दूर ' पलाश के फूल ' ढूंढ़ रहा है. अब भी याद आते हैं होली के समय पलाश के पीले फूलों का छा जाना और बच्चों का उनसे रंग तैयार करना.
खैर हाल ही में अरुणाचल का एक महत्वपूर्ण पर्व मनाया गया - 'पोदी - बारबी'.
यह यहाँ की बोकर जनजाति का एक प्रमुख पर्व है, जो हर वर्ष ५ दिसंबर को मनाया जाता है. मान्यता है फसल के देवता 'पोदी' और 'बारबी' इस अवसर पर स्वर्ग से धरती पर आकर उर्वरता, अच्छी फसल और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.
बोकर अरुणाचल की एक प्रमुख जनजाति है जो मंगोलियन मूल की है. यह वर्त्तमान में प. सियांग जिले के मेंचुका सब-डिविजन के मनिगोंग, पिदी, और टातो क्षेत्र में फैली हुई है.
आधुनिकता और धार्मिक prabhav ने पर्व कि मूल छवि को प्रभावित तो किया है, मगर लोगों के प्रकृति के प्रति अपने लगाव को प्रदर्शित करने का एक माध्यम तो है ही - 'पोदी - बारबी'.
3 comments:
सुदूर के पर्व की जानकारी पढ़ कर अच्छा लगा ..... कितना कुछ है अपने भारत देश में .........
घर बैठे अपने देश के एक प्रदेश जहाँ मैं अभी तक नहीं गयी हूँ के बारे में एक अच्छी जानकारी देने के लिए धन्यवाद क्योंकि मेरा ऐसा विचार है की जब मेरे पतिदेव का ट्रांसफर होगा आसाम तब ही पूरा नोर्थ ईस्ट देख लेंगें
'पोदी - बारबी'के बारे में जानकारी के लिए शुक्रिया
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