Sunday, February 14, 2010

हाँ मुझे मोहब्बत है - मोहब्बत

प्रेम के उल्लास का मौसम कहें, वसंतोत्सव कहें या वैलेंटाइन डे. यह माहौल प्रेम विषय पर एक पुनर्दृष्टि डालने को प्रेरित करता ही है। मैंने भी कई बार सोचा कि मेरे आस-पास की दुनिया जिस प्रेम की बात करती है, उसकी अनुभूति मुझे कभी क्यों नहीं हुई! मैं सायास किसी आकर्षण से इनकार नहीं करता, मगर औफिसिअल प्रेम जैसे किसी भाव को कभी महसूस नहीं कर पाया। और अब जब जिंदगी के साथ यहाँ - वहां भटकता फिर रहा हूँ , उसे पूरी तरह एन्जॉय करता हुए तो महसूस कर पा रहा हूँ कि - 'हाँ मैंने भी प्यार किया है'।
राष्ट्रवादी जैसे भारी-भरकम और lagbhag Copyrighted शब्द का इस्तेमाल तो मैं नहीं करूँगा; मगर हाँ मुझे प्यार है इस खुबसूरत धरती से, प्रकृति से, अपने इतिहास से, संस्कृति,से साहित्य से और अति समृद्ध विरासत से। इसके साथ मैं कभी खुद को अकेला नहीं मानता , मुझे किसी अंदरूनी खालीपन का एहसास नहीं सताता. मैं इसमें पूरी तरह डूब जाता हूँ एक प्रेमी की तरह ही.

शायद तभी किसी एक व्यक्तित्व के प्रति ही सीमित नहीं रह पाती मेरे प्रेम की परिभाषा।

हाँ मुझे प्रतीक्षा जरुर रहेगी ऐसे किसी चेहरे की जो पूर्ण रूप से स्वीकार कर सके मुझे और मेरे इस असीमित प्रेम को।
कोई है !!!!!

4 comments:

Arvind Mishra said...

ढूंढना स्वीकारना तो आपको ही होगा
उधर का हाथ इन मामलों में कमजोर होता है हाँ थामने के बाद मजबूत होता है
सीधे उगते सूरज के देश से ये सन्देश अच्छा लगा
आफिसियल न सही अन आफीसियल ही कर डालिए प्रेम आनंद उसी में है
आफिस में रहकर अनाफिसियल प्रेम का ....
हैपी वैलेंनटईन !

निर्मला कपिला said...

जरूर होगा बस इन्तज़ार कीजिये। मगर आपका ये धरती और आस पास से प्रेम सुन्दर सन्देश देता है।शुभकामनायें

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर और सटीक लिखा है आपने!
प्रेम दिवस की हार्दिक बधाई!

shilpy pandey said...

wish u all the best for ur Mumtaaz ;)

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