अपने बच्चों और परिवार के लिए बेहतर भविष्य और संभावनाओं की तलाश में विकसित देशों में जाने वाले भारतीय परिवार पहले भी कई बार विभिन्न असहज परिस्थितियों में पड़ते रहे हैं, मगर ऐसी परिस्थिति की शायद ही किसी ने कल्पना की हो - जो उन्हें अपने बच्चों, अपने परिवार से ही अलग कर दे...
जी हाँ, ऐसा ही हुआ है भारतीय मूल के भू-भौतिकी शास्त्री अनुरूप भट्टाचार्य और उनकी पत्नी श्रीमती सागरिका भट्टाचार्य के साथ. 2007 से नॉर्वे में रह रहे इस दंपत्ति के बच्चों तीन वर्षीय अभिज्ञान और एक वर्षीय ऐश्वर्या को वहां की एक संस्था ' नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर्स सोसायटी ' ने अपने कब्जे में ले लिया है. इस निर्णय का कारण अभिभावकों द्वारा अपने बच्चो की उचित देखभाल न किये जाने को बताया गया है. और इसके समर्थन में उदाहरण ये दिए गए हैं कि ये लोग अपने बच्चों को हाथ से खाना खिलाते थे और इन्हें सोने के लिए दूसरे कमरे में नहीं रखते !!!
जाहिर सी बात है कि भारतीय परिवेश में बच्चों के लालन-पालन के जो संस्कार इस दंपत्ति को मिले थे वो वहां की परिस्थितयों से सामंजन नहीं बिठा पा रहे थे. अब यहाँ तकनिकी समस्या ये भी है कि बच्चों की वीजा अवधि फरवरी में समाप्त हो रही है, और इस परिस्थिति में शायद उन्हें अपने माता-पिता के साथ लौटने न दिया जाये. इसके अलावे वहां के क़ानूनी प्रावधानों के अनुसार ये अपने बच्चों के 18 साल के होने तक साल में मात्र दो बार और वो भी एक-एक घंटे के लिए ही मिल पाएंगे.
इस सन्दर्भ में भटाचार्य दंपत्ति और उनके परिजनों ने अपने स्तर पर कई प्रयास किये हैं. इन्होने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल सहित कई संबद्ध पक्षों तक अपनी बात पहुंचाई है. नॉर्वे स्थित भारतीय दूतावास ने भी नॉर्वे की सरकार से इस मुद्दे पर हस्तक्षेप की मांग की है.
इस सन्दर्भ में विभिन्न समाचारपत्रों तथा पत्रिकाओं में भी कई रिपोर्ट्स आदि प्रकाशित हो चुकी हैं. सोशल नेटवर्किंग साइट्स में भी इस मुद्दे को उठाया जा रहा है. स्वयं हमने भी इस विषय पर फेसबुक पर ' Let's Support Anurup Bhattacharya ' नामक Page की शुरुआत की है.
मामले को सुलझाने की दिशा में एक सकारात्मक संकेत विदेश मंत्री श्री एस. एम्. कृष्णा के इस बयान से भी मिली है जिसमें उन्होंने नॉर्वे सरकार से इस मुद्दे पर शीघ्र और 'यथोचित समाधान' सुनिश्चित करने की मांग की है. इस संबंध में नॉर्वे के संबंधित अधिकारियों से बात होने की संभावना भी जताई जा रही है. माना जा रहा है कि नॉर्वे सरकार बच्चों को उनके माता-पिता के बजाये भारत में उनके दादा-दादी को सौंपे जाने पर सहमत हो सकती है.
नॉर्वे की चाईल्ड प्रोटेक्टिव सर्विस के सख्त प्रावधानों की दुनिया भर में आलोचना होती रही है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में भी इसका जिक्र होने की खबरें आ चुकी हैं. इस नए विवाद ने इस विषय को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है. आशा है जहाँ इस प्रसंग में भट्टचार्य दंपत्ति को न्याय मिलेगा, वहीँ दूसरे देशों की सरकारें भी ऐसे मामलों में संबद्ध देशों की संस्कृति - परिवेश आदि को भी ध्यान में रखेंगीं...
(सामग्री और तसवीरें अख़बारों, गूगल और फेसबुक आदि से संकलित)