Wednesday, January 4, 2012

खजुराहो : गीत गाया पत्थरों ने.....



कई वर्षों से भारत की स्थापत्य कला के उदात्त प्रकटीकरण के इस प्रतीक स्थल के भ्रमण की इच्छा थी जो आख़िरकार 2011 के आखिरी दिन पूरी हो ही गई. 31  दिसंबर और 1 जनवरी की सप्ताहांत छुट्टियों का समुचित उपयोग करते हुए आख़िरकार आनन्-फानन में खजुराहो जाने का कार्यक्रम बन ही गया. 

 चंदेल राजाओं के संरक्षण में मध्यकालीन भारत के इस भाग में कला, शिल्प, साहित्य आदि हर क्षेत्र का समग्र विकास हुआ. लगभग 500  वर्षों तक इस वंश के प्रतापी राजाओं ने अपनी कीर्ति पताका फहराई और उसके सुदीर्घ स्मरण के उद्देश्य से मंदिरों की यह अद्भुत श्रंखला विकसित होती गई. मगर कालांतर में शासक वर्ग की शक्ति क्षीण होते जाने का असर इस विरासत पर भी पड़ा और ये स्मृति पटल से भी विलुप्त होने लगी. मगर इन्हें इनका वाजिब हक़ और सम्मान मिलना अभी शेष था और एक बार फिर यह विस्मृतप्राय विरासत इतिहास की धुल को झाड़ और भी प्रखरता से उभर कर सामने आई. नतीजा आज पूरा विश्व उस युग की भारतीय स्थापत्य कला, संस्कृति, ज्ञान से मंत्रमुग्ध सा है. 

न झटको जुल्फ से पानी.... : स्नान कर आई नायिका और उसके बालों से टपकते पानी को पीता  बत्तख 

इन अवशेषों को इनका सम्मान पुनर्स्थापित करवाने में फ्रेंकलिन जैसे खोजकर्ता, इंजीनियर पी. सी. बर्ट, सर्वेक्षक अलेक्जेंडर कनिंघम  और लेखक लेवल ग्रिफिन आदि का उल्लेखनीय योगदान दिया है. वर्तमान में आर्कियोलौजी सर्वे ऑफ इण्डिया की देख-रेख में इस स्थल को काफी सुव्यवस्थित रखा गया है, विशेषकर पश्चिमी परिसर को.

खजुराहो के मंदिर परिसर अमूमन अपनी मैथुन मूर्तियों के लिए ही चर्चा में आते हैं, मगर इनके साथ यहाँ की अन्य कलाकृतियों, स्थापत्य और शिल्प को नजरंदाज करना अनुचित है. मैथुन मूर्तियाँ तो शायद 10  % ही हों यहाँ के अन्य शिल्पों के साथ... और इनके अपने कई प्रतीकात्मक आध्यात्मिक, धार्मिक, तांत्रिक और ऐतिहासिक महत्व भी हैं. मगर यहाँ के अन्य शिल्प भी अतुलनीय हैं.....
मंदिर की बाह्य दीवार पर उत्खनित एक मूर्तिशिल्प जिसका तांत्रिक महत्व भी है 

चंदेल वंश के संस्थापक चंद्र्वर्मन, चंद्रमा के पुत्र माने गए हैं द्वारा एक सिंह को अकेले परास्त करने की मान्यता के कारण इसे ही इस वंश का राजचिह्न की मान्यता प्रदान की गई. 

चंदेल राजचिह्न 
                                                
यहाँ मंदिर मुख्यतः तीन परिसरों में पाए गए हैं-

1 . पूर्वी मंदिर समूह - इनमें ब्रह्मा मंदिर, वामन मंदिर, जवारी मंदिर आदि प्रमुख हैं. 
2 . दक्षिणी मंदिर समूह - दुल्हादेव मंदिर, चतुर्भुज मंदिर आदि.
3 . पश्चिमी मन्दिर समूह (मुख्य परिसर) - चौंसठ योगिनी मंदिर, मतंगेश्वर मन्दिर, वराह मन्दिर, लक्ष्मण   
                                                                 मन्दिर, पार्वती मन्दिर, विश्वनाथ मन्दिर, चित्रगुप्त मन्दिर,   
                                                                 कंदरिया महादेव मन्दिर आदि...

यहाँ भ्रमण के इच्छुक लोगों को यह सुझाव अवश्य दूंगा कि रोज शाम आयोजित होने वाले लाईट एंड साउंड शो में जरुर शामिल हों तथा 'स्लमडॉग गाइड' के बजाये उपलब्ध ऑडियो गाइड्स का उपयोग करें. जो ज्यादा प्रामाणिक और महत्वपूर्ण जानकारी देने में विशेष लाभकारी है. 

धार्मिक पर्यटकों की चिर-परिचित भीड़-भाड़ और व्यवस्थाविहीनता के शिकार अन्य पर्यटन स्थलों (विशेषकर उत्तर भारत के...) से अलग एक सुखद अनुभव एहसास है खजुराहो. कभी अवसर मिले तो अवश्य समय निकालें 'अद्वितीय भारत' की लगभग 1000  वर्ष प्राचीन इस महत्वपूर्ण विरासत के साक्षी बनाने का.....

9 comments:

Rahul Singh said...

थोड़ी जानकारी, कुछ तथ्‍यों के साथ चटपटे गाइड की जरूरत ज्‍यादातर पर्यटकों को होती है.

रविकर said...

नव-वर्ष की मंगल कामनाएं ||

धनबाद में हाजिर हूँ --

अजित गुप्ता का कोना said...

खजुराहो अभी तक देखा नहीं है। आपने दिखा दिया। अब देखो कब कार्यक्रम बनता है।

रेखा said...

कभी मौका मिला तो जरुर घूमेंगे ...आभार

संजय भास्‍कर said...

बढ़िया जानकारी
आप को भी सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर

मनोज कुमार said...

इस निबंध का ऐतिहासिक महत्त्व ही नहीं, बल्कि स्थायी महत्त्व भी है।

Arvind Mishra said...

खजुराहो सभी के जीवन में एकाध बार तो जरुर ही आता है .मुबारक हो !

Rakesh Kumar said...

अभिषेक जी बहुत सुन्दर जानकारीपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.सन १९७५ में देखे थे खुजराहो मंदिर.
तब इतनी समझ नही थी. आपने सुन्दर
प्रस्तुति से खुजराहो के मंदिरों के बारे में जानने की अच्छी उत्सुकता उत्पन्न की है.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

P.N. Subramanian said...

जैसे राहुल जी ने कहा, आम पर्यटक हर जगह मनोरंजन की तलाश में रहता है. विषय के प्रति जो गंभीर हों उन्हें तो चाहिए की किसी ऐसी ऐतिहासिक धरोहर से रूबरू होने के पूर्व उस सम्बन्ध में उपलब्ध साहित्य का कुछ अध्ययन भी करलें. तब हम संतुष्टि के चरम में भी पहुँच सकते हैं. संभवतः किसी गाइड की आवश्यकता भी न पड़े. स्नान कर आई नायिका के शिल्प को ही लें. हम ऐसी छोटी छोटी प्रतिमाओं की उपेक्षा करने की भूल कर भैठते हैं. सुन्दर प्रस्तुति. आभार. (चेन्नई से)

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