Thursday, February 2, 2012

संस्कृति के सरोकारों से जुड़े - श्री रणबीर सिंह

जुलाई 2011  में श्री अरविन्द मिश्र जी ने अपने दिल्ली प्रवास के दौरान ICMR में बिताये लम्हों का यहाँ  जिक्र करते हुए मुझे श्री  रणबीर सिंह जी से मिलने और उनकी शागिर्दी स्वीकार करने का निर्देश दिया था. सृजनात्मक प्रवृत्ति के व्यक्तियों से मिलने का अवसर मैं छोड़ना नहीं चाहता और कला तथा संस्कृति में तो मेरी रुची है ही. रणबीर जी से संपर्क तो पिछले काफी समय से रहा, मगर मिलना उनकी अथवा मेरी कार्यालयीय बाध्यताओं के कारण संभव न हो पा रहा था. आख़िरकार बीती जनवरी के अंत में उनसे मिलने का सुखद संयोग आ ही गया. और यह वाकई एक संजोग ही कहा जायेगा कि  उनसे मिलने की परिस्थितियां काफी कुछ अरविन्द जी से पहली मुलाकात के ही समरूप थीं, जब उनसे मिलने सुबह-सुबह बनारस से कालीन नगरी भदोही जाना पड़ा था, और अब इस बार भी 26  जनवरी की सुबह मैं बस से रोहतक जा रहा था, जहाँ कला व  संस्कृति की एक नई ही दुनिया से परिचय प्राप्त होने वाला था.  

श्री  रणबीर सिंह जी 

रनबीर सिंह जी नई दिल्ली स्थित इन्डियन काउन्सिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च में पी. आर. ओ. हैं. अपनी कार्यालयीय जिम्मेवारियों के कुशल निर्वहन के साथ ही उनका अपनी विरासत, कला और संस्कृति के प्रति काफी गहरा जुडाव है, जिसने उन्हें लगभग पिछले 30  वर्षों से इस विषय में स्वतंत्र शोध व अनुसन्धान के लिए प्रेरित  कर रखा है. इसका परिणाम आज उनकी जयपुर और हरियाणा की कला और वास्तु से परिचित कराती दो पुस्तकों  के अलावे 1000  से ज्यादा लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. विज्ञान से जुड़े विषयों पर भी उनके 300  से ज्यादा पेपर और लेख आदि प्रकाशित हो चुके हैं. हाल ही में हरियाणा के इनसाइक्लोपीडिया के निर्माण में भी उनके अनुभवों का लाभ उठाया गया है. हरियाणा और राजस्थान सहित देश के कई भागों में वो अपनी जिज्ञासु और शोधपूर्ण दृष्टि के साथ भ्रमण कर जानकारियां एकत्र करते रहे हैं. अपनी संस्कृति और विरासत के प्रति उनके लगाव को इस एक उदाहरण से ही समझा जा सकता है कि अपनी खोज के क्रम में मात्र अपने स्कूटर से ही वो 2 लाख किमी से ज्यादा की दूरी तय कर चुके हैं. सच कहूँ तो इस पूरे परिदृश्य में उनके योगदान को किसी एक ब्लॉग पोस्ट में समेत पाना कम-से-कम मेरे बस की तो बात नहीं ही है..... 

बिना किसी सरकारी या बाह्य सहायता के वो इस सांस्कृतिक अभियान में अपनी अंतरप्रेरणा से दृढसंकल्पित   भाव से लगे हुए हैं. कहने को तो वो फेसबुक जैसी ' सोशल नेट्वर्किंग साइट्स' से भी जुड़े हुए हैं. पिछले कुछ समय से वो अपने ब्लॉग के साथ भी अपने विचारों को शेयर कर रहे हैं, मगर अपनी मूल प्राथमिकताओं को नजरंदाज न करने का उनका दृढसंकल्प वाकई हम सभी के लिए प्रेरक है.

यह मैं अपना बहुत बड़ा सौभाग्य मानता हूँ कि मुझे श्री रणबीर सिंह जी के साथ उनके कार्यक्षेत्र को देखने-समझने का मौका मिला. इतने अनुभवी और समर्पित व्यक्तित्व के ज्ञान को एक मुलाकात में आत्मसात कर पाने की बात अकल्पनीय ही है. मेरा प्रयास तो मात्र उनकी कार्य पद्धति, अपनी विरासत को देखने के उनके नजरिये को समझना ही था. और शागिर्दी का तो ये आलम था कि जहाँ -तहां अब तक क्लिक कर आत्ममुग्ध होता  रहा मैंने अपना कैमरा  भी उन्ही के हाथों में सौंप दिया ताकि एक-आध वाकई करीने की कुछ तसवीरें ले पाने का सौभाग्य इस कैमरे को भी हासिल हो जाये. 

अपने तीन दिवसीय  प्रवास में रणबीर सिंह जी के साथ रोहतक के कुछ भागों विशेषकर गांवों को एक नए परिप्रेक्ष्य में देखने का अवसर मिला जो निश्चित रूप से इस सन्दर्भ में मेरे दृष्टिकोण को परिमार्जित करने में सहायक सिद्ध होगा. 

अरबिंद मिश्र जी को भी हार्दिक  धन्यवाद जो उन्होंने इन अनूठे व्यक्तित्व का मुझसे परिचय कराया. 

आशा है रणबीर सिंह जी भी जहाँ अपनी विरासत के प्रति नवीन जानकारियां एकत्र करते हुए इनके डोक्युमेंटेशन को और समृद्ध करेंगे, वहीँ उनके साथ मिलने के और भी कुछ अवसर मुझे मिलते रहेंगे ताकि उनकी शागिर्दगी के रंग में थोडा और सराबोर हो सकूँ. 

चलते-चलते उनकी शागिर्दी में ली गईं कुछ तसवीरें - छायांकन के अलावे अपनी विरासत से जुडी हुईं भी.....

पगडंडियों पर 

एक ग्रामीण चौपाल 


एक ग्रामीण हवेली 

रोहतक में हरियाणवी संस्कृति की पहचान - जाट भवन 


9 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सराहनीय एवं प्रेरक व्यक्तित्व.... अच्छा लगा रणवीर जी से मिलकर

Rahul Singh said...

रास्‍ता पकड़ते हैं उनके ब्‍लाग का.

शिवा said...

अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकार ...धन्यवाद

Ranbir S Phaugat said...

Dear Abishek,
Thanks for the comments and write up about Rohtak that mainly covered information about me. However, I don't write any adjectives with my name. I shall be grateful if you kindly remove 'Dr.' and let me remain only myself as original as I wished to be.
You are most welcome anytime to follow me. In fact, 'to follow' is more rewarding that 'with'. If you follow someone trail, you are adequately rewarded.

अभिषेक मिश्र said...

रणबीर जी, आपके साथ इस क्षेत्र को जानने - समझने का अवसर मिलना वाकई एक उपलब्धि थी. आपकी भावनाओं और सुझावों को ध्यान में रखते हुए सुझाये गए परिवर्तन कर दे रहा हूँ.

अभिषेक मिश्र said...
This comment has been removed by the author.
Arvind Mishra said...

कला और संस्कृति ,पुरातिहास को समर्पित व्यक्तित्व है रणवीर जी का ..आपने उनकी शागिर्दगी स्वीकार की ,क्या बात है ?

P.N. Subramanian said...

Ab kya kahun. Aisle logon ka to charan sparsh karne mil jaaye to jeevan sarthak ho jaaye. Ran veer Singh ji ko naman. Kewal pahli tasveer grameen parivesh darsha rahi hai. Baaki sabhi to meri nazar mein attalikaayen hain. Bahut sundar bhi hain...... Chennai se...

मनोज कुमार said...

सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक लगता है यह गांव -- कम से कम तस्वीरें तो यही बोलती हैं।

उतने ही सम्पन्न सांस्कृतिक धरोहर श्री सिंह से परिचय कराने का आभार।

आपकी भाषा शैली का क्या कहना, उसका तो मैं शुरु से ही मुरीद हूं।

हां, हनुमान का फॉलोअर बन गया हूं।

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