Tuesday, November 5, 2013

लाल क़िले से लाल ग्रह तक:


पिछले वर्ष जब लाल क़िले से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मिशन मार्स की घोषणा की थी तो यह उम्मीद  काफी कम लोगों को ही महसूस हुई होगी कि इतने कम समय में ही हमारे यान द्वारा इस यात्रा के लिए काउंटडाउन शुरू हो जाएगा। लालफ़ीताशाही और कार्यों की धीमी रफ्तार की जैसी छवि हमारी बन गई है, उसमें ऐसा स्वाभाविक भी था। कई लोग इसे चुनावी शोशा कह सकते हैं, कई लोगों की नजर में यह संसाधनों का अपव्यय है। ऐसी आलोचनाओं के स्वर अन्य विकसित देशों में भी उठते रहे हैं। मगर सौभाग्य से सारे विश्व के ही अंतरिक्षविज्ञानी इस ऊहापोह और विचार मंथन से परे रहे हैं। इसरो देश के उन चंद संस्थानों में से है जो तमाम आलोचना और सराहनाओं से परे अपने लक्ष्य पर एक कर्मयोगी की तरह केंद्रित है। इसके कई अभियान अतिशय सफल हुये हैं तो कुछ सीधे शब्दों में पानी में समा गए हैं। मगर इसके प्रयासों पर से हमारा भरोसा डिगा नहीं कभी। और शायद इसी ने इसे आगे और बेहतर करने की प्रेरणा भी दी।
औद्द्योगिक क्रांति में हम पहले ही पिछड़ चुके थे। सूचना क्रांति में तमाम अनुभवी और दूरदर्शी लोगों की मान्यताओं को नकार हमारे तत्कालीन अपरिपक्व नेतृत्व ने समय रहते सार्थक पहल की जिसके नतीजे आईटी के क्षेत्र में थोड़ी साख के रूप में हमारे सामने है। भविष्य के अंतरिक्ष युग में भी समय रहते हमारी भागीदारी जरूरी है। चंद्रमा से जुड़े अभियानों में भी हम पीछे रहे, इस कारण मिशन चंद्रयान से हमारी जिम्मेवारी बड़ी थी। क्योंकि अबतक हुई खोजों और मिली जानकारी से आगे कुछ ढूँढ पाने की चुनौती थी। पानी की संभावना से जुड़ी खोज ने हमारे अभियान को नए मायने दिये। ऐसे अभियानों की यही जिम्मेवारी होती है। मिशन मार्स से भी यही जिम्मेवारी जुड़ी है। 60 के दशक से ही मंगल को लेकर अभियान चलते रहे हैं। कुछ असफलताओं के बाद अमेरिका, रूस और कुछ यूरोपीय अभियानों को खासी सफलता मिली है। हमारे सामने चुनौती इस मायने में भी बड़ी है कि एशिया से जापान और चीन के मंगल अभियानों को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है। यह मात्र एशिया से कोई अंतरिक्ष होड़ नहीं है। अंतरिक्ष की विपुल संभावनाओं के मद्देनजर यह भागीदारी समय की आवश्यकता है। हमारे अंटार्कटिका अभियानों की तरह ही। यदि यहाँ मीथेन की उपस्थिति से जुड़े कुछ पुख्ता प्रमाण मिले तो यह वहाँ जीवन की संभावना को लेकर बड़ी उपलब्धि होगी। धरती की बढ़ती माँग के मद्देनजर अंतरिक्ष में खनन, कृषि और आगे के अभियानों के लिए स्टेशन बनाए जाने की संभावनाओं के मद्देनजर भी ये अभियान आवश्यक हैं। 
यहाँ मेरी यह बात शायद किसी को ठेस पहुँचा सकती है, मगर मैंने पाया है कि कई उत्तर भारतीय वैज्ञानिकों को यह मलाल है कि अरबों रुपये पानी में डुबो देने पर भी इसरो पर सरकार इतनी मेहरबान क्यों है ! मेरे ख्याल से इसके लिए उन्हे अपनी मानसिकता, सोच और कार्यशैली पर भी विचार करने की जरूरत है।

बहरहाल, इस मंगल अभियान के लिए अपने वैज्ञानिकों और इस अभियान से जुड़े हर व्यक्ति को इसकी सफलता के लिए मंगलकामना.....  

8 comments:

Arvind Mishra said...

A write up full of positivism!

Ashish Shrivastava said...

बधाई! एक बड़ी छलांग है इसरो की

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (06-11-2013) मंगल मंगल लाल, लाल हनुमान लंगोटा : चर्चा मंच 1421 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

virendra sharma said...

शुभेच्छा सद्भावना हमारी भी इस अभियान की सफलता के लिए। बढ़िया सामयिक रिपोर्ट सकारात्मकता लिए।

रविकर said...

मंगल मंगलवार है, उड़ता मंगल-यान |
मंगल मंगल कामना, बढ़े हिन्द की शान |

बढ़े हिन्द की शान, बधाई श्री हरिकोटा |
मंगल मंगल लाल, लाल हनुमान लंगोटा |

कह रविकर कविराय, लक्ष्य-हित बढ़ता पलपल |
मनोवांछित पाय, सफल हो अपना मंगल ||

दिगम्बर नासवा said...

देश के वैज्ञानिकों ने लंबी छलांग लगाईं है ... बधाई के पात्र हैं वो ... ऐसे प्रकल्प चलते रहने चाहियें ...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

अच्छा लगता है, ऐसे आगे बढ़ना !!

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/अंक ४१ शुक्रवारीय चौपाल में आपकी रचना शामिल की गयी हैं कृपया अवलोकन हेतु अवश्य पधारे धन्यवाद

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