आज गणेश चतुर्थी है। और संजोग ऐसा कि हर पर्व-त्यौहार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चांद को आज देखना भी वर्जित है। कहते है इससे कलंक लगता है। जब इस भूल के कारन स्वयं श्रीकृष्ण पर चोरी का आरोप लग गया तो आमजनों की क्या बिसात है !
प्रचलित कथा के अनुसार एक बार गणेश जी अपने जन्मदिन के अवसर पर अपने एक प्रिय भक्त के यहाँ भोजन के आमंत्रण पर गए। वहाँ उन्होंने भरपेट भोजन किया और अपने आराधकों को सुख-प्राप्ति के भरपूर आशीर्वाद दिए। इसके बाद वे अपनी सवारी चूहे के ऊपर चढकर शिवलोक की तरफ चल दिये कि तभी एक साँप ने उनका रास्ता काट दिया। चूहे तो साँप के प्रिय भोजन होते हैं। वैसे जिसके ऊपर श्री गणेश जी का आशीर्वाद हो उसे डरने की क्या जरूरत, परन्तु गणेश जी का सवारी भी था तो एक चूहा ही। वह साँप से बहुत डर गया और भाग खड़ा हुआ। गणेश जी लड़खड़ा कर गिर पड़े। रात का समय था और आसमान में चतुर्थी का चाँद चमचमा रहा था। यह दृश्य देखकर चाँद से रहा ना गया और जोर-जोर से ठहाके मारकर हँस पड़ा। यह देखकर गणेश जी के गुस्से का ठिकाना ना रहा। साँप को सबक सिखाने के बाद गणेश जी मखौल उड़ाते चाँद की तरफ दौड़ पड़े। गुस्से से लाल गणेश जी को देखकर चाँद भाग खड़ा हुआ और डरकर अपने महल में छिप गया।
रात्री का समय था। चाँद के छिप जाने के कारण चारों तरफ अँधेरा छा गया। पृथ्वी पर लोग परेशान हो गए। सभी देवों ने गणेश जी से धरती पर शांती लाने की प्रार्थना की और यह आग्रह किया कि चँद्रमा को क्षमा कर दें। अंततः गणेश जी पिघल गए और चाँद को अपने क्रोध से मुक्त किया। पर जाते-जाते उसे एक शाप भी दे गए। चूँकि चाँद एक चोर की तरह अपने महल में छुप गया था, जैसे उसने कोई अपराध किया हो। इसीलिए अगर कोई गणेश जी के जन्मदिन पर चाँद का दर्शन करेगा, तो वह भी चोर कहलाएगा। यही कारण है कि आज भी लोग गणेश चतुर्थी के अवसर पर चाँद की तरफ नहीं झाँकते।
चंद्र दर्शन दोष से बचाव :--
प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात् व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-
'सिहः प्रसेनम् अवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥'
इस दिन चन्द्रमा देख लेने पर उसके दोष के शमन हेतु श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के 57वेंअध्याय को पढें। जिसमें स्यमन्तकमणि के हरण का प्रसंग हैं।
मैथिल कवि विद्यापति ने भी इस विडंबना को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है-
"कि हम सांझ क एकसर तारा, कि भादव चौथि क ससि।
इथि दुहु माँझ कवोन मोर आनन, जे पहु हेरसि न हँसि।।"
राधा कृष्ण की उपेक्षा से दुखी हैं। कहती हैं- क्या मैं शाम का एकाकी तारा हूँ (यह तारा उदासी का प्रतीक माना जाता है) या भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का चाँद? इन दोनों में मेरा मुँह किस तरह का है? न प्रभु मुझे देख रहे हैं न मुझ पर हँस ही रहे हैं?
शास्त्रों और कवियों की बातें अपनी जगह आप चाहें तो इस अवसर से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी बाँट सकते हैं...
Friday, August 29, 2014
गणेश चतुर्थी या ढेलहिया चौथ
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3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-08-2014) को "गणपति वन्दन" (चर्चा मंच 1721) पर भी होगी।
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श्रीगणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं
विद्यापति की अद्भुत पंक्तियों से इस आलेख को एक अलग ही सौन्दर्य मिल गया है। ढेलहिया चौथ पर सुन्दर प्रस्तुति।
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