Tuesday, September 9, 2014

अशोक चक्र से सम्मानित एअर होस्टेस नीरजा भनोट


यूँ तो आधुनिक भारत के इतिहास में भी वीरता और बहादुरी के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान कम नहीं रहा है, मगर यह जिक्र खास बन जाता है उस वीरांगना के कारण जो कि एक एअर होस्टेस थीं और जिन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च असैन्य नागरिक सम्मान 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया गया। 7 सितम्बर 1964 को चंड़ीगढ़ के हरीश भनोत जी ले यहाँ जन्मी इस बच्ची को वायुयान में बैठने और आकाश में उड़ने की प्रबल इच्छा थी।
नीरजा ने अपनी वो इच्छा 16 जनवरी 1986 को एयर लाइन्स पैन एम ज्वाइन करके पूरी की और वहां बतौर एयर होस्टेस काम करने लगीं। 5 सितम्बर 1986 को पैन एम 73 विमान कराची, पाकिस्तान के एयरपोर्ट पर अपने पायलेट का इंतजार कर रहा था। विमान में लगभग 400 यात्री बैठे हुये थे। अचानक 4 आतंकवादियों ने पूरे विमान को गन प्वांइट पर ले लिया। उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाया कि वो जल्द से जल्द विमान में पायलट को भेजे। किन्तु पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया। तब आतंकियों ने नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया कि वो सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करे ताकि वो किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके। नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित किये और विमान में बैठे अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिये। धीरे-धीरे 16 घंटे बीत गये। पाकिस्तान सरकार और आतंकियों के बीच वार्ता का कोई नतीजा नहीं निकला। अचानक नीरजा को ध्यान आया कि प्लेन में फ्यूल किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा। उसने अपनी सहपरिचायिकाओं को यात्रियों को खाना बांटने के लिए कहा और साथ ही विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझाने वाला कार्ड भी देने को कहा। नीरजा को पता लग चुका था कि आतंकवादी सभी यात्रियों को मारने की सोच चुके हैं।
उसने सर्वप्रथम खाने के पैकेट आतंकियों को ही दिये क्योंकि उसका सोचना था कि भूख से पेट भरने के बाद शायद वो शांत दिमाग से बात करें। इसी बीच सभी यात्रियों ने आपातकालीन द्वारों की पहचान कर ली। नीरजा ने जैसा सोचा था वही हुआ। प्लेन का फ्यूल समाप्त हो गया और चारो ओर अंधेरा छा गया। नीरजा तो इसी समय का इंतजार कर रही थी। तुरन्त उसने विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये। योजना के अनुरूप ही यात्री तुरन्त उन द्वारों के नीचे कूदने लगे। वहीं आतंकियों ने भी अंधेरे में फायरिंग शुरू कर दी। किन्तु नीरजा ने अपने साहस से लगभग सभी यात्रियों को बचा लिया था। कुछ घायल अवश्य हो गये थे किन्तु ठीक थे। किन्तु इससे पहले कि नीरजा खुद भागती तभी उसे बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी। दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे।
इधर नीरजा उन तीन बच्चों को खोज चुकी थी और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन द्वार की ओर बढ़ने लगी। तभी एक आतंकवादी उसके सामने आ खड़ा हुआ। नीरजा ने बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल दिया और स्वयं उस आतंकी से भिड़ गई। कहाँ वो दुर्दांत आतंकवादी और कहाँ वो 23 वर्ष की पतली-दुबली लड़की। आतंकी ने कई गोलियां उसके सीने में उतार डाली। नीरजा ने अपना बलिदान दे दिया। आतंकियों को पाकिस्तानी कमांडों ने गिरफ्तार कर लिया, किन्तु वो नीरजा को न बचा सके। उनपर बाद में मुकदमा चला और 1988 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई जो बाद नें उम्रकैद नें बदल गई। नीरजा के बलिदान के बाद भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'अशोक चक्र' प्रदान किया तो वहीं पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा को 'तमगा-ए-इन्सानियत' प्रदान किया। 2004 में नीरजा भनोत पर डाक टिकट भी जारी हो चुका है।
स्वतंत्र भारत की इस महानतम विरांगना को नमन.....

3 comments:

Shikha Kaushik said...

shat shat naman is veerangna ko

कविता रावत said...

वीरांगना नीरजा को शत शत सलाम!
प्रेरक प्रस्तुति हेतु आपको धन्यवाद!

Vaanbhatt said...

Salute to the brave lady...

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