हम सामान्यतः सिलेक्टिव और सुविधाजनक इतिहास पसन्द करते हैं और असहज प्रश्नों से परहेज ही बरतने की कोशिश करते हैं। इसी लिये अपने अनुकूल इतिहास लिखवाने और इतिहास में अपनी जगह तलाशने की प्रवृत्ति पाई जाती है। जिन ट्राइबल्स को असभ्य/अनार्य घोषित किया उनकी वैज्ञानिक सोच को स्वीकार कैसे करते ! रावण को प्रकांड ज्योतिष मानने से इंकार तो नहीँ कियाDismiss मगर उन लोगों की कालगणना किसपर आधारित थी इसपर सुविधाजनक और सुनियोजित चुप्पी साध ली ! आज भी पुस्तकालयों और संग्रहालयों को जमींदोज करना उसी मानसिकता का ही अंग है...
प्रकृति और व्यक्तिगत प्रभावों के बावजूद विश्व में कई ऐसी प्राचीन संरचनाएं अभी भी विद्यमान है जो प्राक्इतिहास में कालगणना के प्रयासों का दस्तावेज हैं। इंग्लैंड का स्टोन हेंज जो सॉल्स्टाइस देखने का प्रमुख स्थान है के बाद संभवतः झाड़खण्ड के हजारीबाग का पंखड़ी बरवाडीह एक मात्र ऐसी जगह है जहाँ Equinox (समदिवारात्री; 20-21 मार्च/ 22-23 सितंबर) के अवलोकन की महापाषाणकालीन परंपरा अन्वेषक श्री शुभाशीष दास द्वारा पुनर्जीवित की गई है।
ऐसे स्थलों का अध्ययन व संरक्षण वैश्विक आवश्यकता है, यदि हम मानवता के इतिहास को समग्र रूप से समझने के प्रति वाकई गम्भीर हैं। ऐसी एक कड़ी का टूटना हमें अपनी विकास यात्रा की श्रृंखला से अलग कर देगा। यह स्थल भी आज अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है। माईनिंग के माध्यम से विकास और विरासत की जंग में विकास का पलड़ा ही भारी पड़ता दिख रहा है। देखें कब तक महफूज़ रह पाती है ये हमारी साझी विरासत !!!