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Saturday, August 22, 2009

दिल आज शायर है...

मैं समझ नहीं पाता कि प्रोफेशनली कवितायें कैसे लिख ली जाती हैं। मैं तो लेखों में ही खुद को ज्यादा सहज पाता हूँ। हाँ कभी-कभी कुछ भावनाएं सिर्फ कविताओं में ही व्यक्त हो पाती हैं, और यहीं आकर यह पंक्तियाँ सच ही लगती हैं कि 'वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान'। ऐसी ही कुछ मनःस्थितियों से गुजरते हुए कुछ पंक्तियाँ स्वयं ही मेरे अंतर से बाहर आने को अकुला रही हैं -

मैं और मेरा मौन
कुछ यादें, कुछ आंसू और जाने कौन
आज फिर साथ है मेरे - वही मौन,

एक - एक कर साथ सारे छुटते गए,
हम भीड़ में पीछे छुटते रहे ।
साथ था तब भी वही - और कौन
मैं और मेरा मौन।
संजोने से पहले ही सपने सारे लूटते रहे ,
हम बार- बार बिखरते और टूटते रहे
पलट कर देखा कंधे पर हाथ रखे है कौन
फिर वही- मैं और मेरा मौन।
आज फिर एक ठेस कहीं खाई है
और दर्द अन्दर ही कहीं छुपाई हैं ।
दर्द बांटू जिससे है कहीं ऐसा कौन ,
चलो फिर वही - मैं और मेरा मौन
शायद बन चुका मौन मेरी परछाई है,
इसीने तो हमेशा साथ निभाई है।
फिर भी कहूँगा मेरी इस बिखरती कहानी में
तेरा भी स्वरुप नहीं है गौण।
अब मुझे छोड़ दे तन्हा मेरे मौन.....
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