मैं और मेरा मौन
कुछ यादें, कुछ आंसू और जाने कौन
आज फिर साथ है मेरे - वही मौन,
एक - एक कर साथ सारे छुटते गए,
हम भीड़ में पीछे छुटते रहे ।
साथ था तब भी वही - और कौन
मैं और मेरा मौन।
संजोने से पहले ही सपने सारे लूटते रहे ,
हम बार- बार बिखरते और टूटते रहे
पलट कर देखा कंधे पर हाथ रखे है कौन
फिर वही- मैं और मेरा मौन।
आज फिर एक ठेस कहीं खाई है
और दर्द अन्दर ही कहीं छुपाई हैं ।
दर्द बांटू जिससे है कहीं ऐसा कौन ,
चलो फिर वही - मैं और मेरा मौन
शायद बन चुका मौन मेरी परछाई है,
इसीने तो हमेशा साथ निभाई है।
फिर भी कहूँगा मेरी इस बिखरती कहानी में
तेरा भी स्वरुप नहीं है गौण।
अब मुझे छोड़ दे तन्हा मेरे मौन.....
10 comments:
तेरा भी स्वरुप नहीं है गौण।
अब मुझे छोड़ दे तन्हा मेरे मौन...
pyaar me ho kafi hai kavita likhane ke liye trained hone ki jarurat nahi hai ........ye panktiyan to dil ko chhoo gayee
शायद बन चुका मौन मेरी परछाई है,
इसीने तो हमेशा साथ निभाई है
बेहद खुबसूरत रचना।
बेहतर है...
शायद भूमिका की जरूरत नहीं थी...
यह मौन तो गौत्तम बुद्ध के मौन की याद दिला गया -सारगर्भित मौन /कविता !
अरविन्द भाई कविता को जन्म देने की बधाई .. कविता ऐसे ही जन्म लेती है बिलकुल शिशु की तरह बस फिर उसे नहलाना धुलाना ,कपड़े पहनाना, काजल का टीका लगाना जैसे काम करने पड़ते है .. सो एक अच्छी माँ को और अच्छे कवि को तो यह करना ही पडता है .. ।
बेहतरीन रचना!!
इन टिप्पणियों को पढ़कर अपनी पहली पोस्ट पर प्राप्त टिप्पणियों सा ही अहसास हो रहा है, क्योंकि इस ब्लॉग पर कविता पहली बार लिखी गई है. क्षणिक भावावेश में ऑनलाइन ही लिखा गई यह कविता इन शब्दों में तारीफ की हक़दार थी, ऐसा मुझे नहीं लगता. फिर भी आप सभी की शुभकामनाओं का हार्दिक शुक्रिया
बहुत सुन्दर।
ये शायरी जारी रहे।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
Kavita bahut achhi hai...shuruaat ki 2 lines to bahut hi achhi hai...
Awesome...
the sadness, poignancy is vividly described.
Expressions r best :)
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