Wednesday, November 26, 2008
रविन्द्र जैन : एक संगीतकार ऐसा भी
Friday, November 21, 2008
गंगा तूँ बहती है क्यों?
Monday, November 17, 2008
बाल-दिवस और बाल गीत
(Image from google)
बाल-दिवस और बाल गीत
बाल दिवस आया और एक बार फ़िर कई वादों और इरादों के आश्वाशन के साथ चला गया। कई बच्चों ने इसे फैशन परेड और बड़ों के गानों पर छोटे -छोटे ठुमकों के साथ मनाया और कईयों को इस बार भी पता नहीं चला की उनके लिए भी इस देश में कोई दिन निर्धारित है। मगर मैं मुख्यतः बात कर रहा हूँ उन बच्चों की जिन्हें इस देश का कर्णधार मानते हुए आज के प्रतिस्पर्धी समाज के अनुकूल ढालने के प्रयास किए जा रहे है। इस प्रयास की एक झलक तो तथाकथित reality shows में दिख ही रही है जहाँ इनका मासूम बचपन इनसे किस तरह छीना जा रहा है!
इस पीढी को शायद ही याद होंगे वो ख़ूबसूरत बाल लोक गीत जो इस देश की मिट्टी की खुशबु में भीगे होते थे और अनजाने में ही उन्हें अपने परिवेश और प्रकृति से मजबूती से बाँध लेते थे। ऐसा ही एक बाल खेल गीत है-
ओका-बोका तीन तरोका,लउआ लाठी चंदन काठी,चनवा के नाम का ?, 'रघुआ',खाले का? 'दूधभात',सुतेले कहाँ? 'पकवा इनार में',ओढ़ेले का?, 'सूप' देख 'बिलायी के रूप'।
गर्मी की दुपहरी में बच्चे इस खेल में अपने 4-5 दोस्तों के साथ अपने पंजों को केकड़े के रूप में रखते थे और कोई लड़का यह गीत गाते हुए इन पंजों की गिनती करता। इस क्रम में जिसके पंजे पर 'सूप' शब्द आता उसे सभी 'बिलाई' कह चिढाते।
खाने को मनाने के लिए माँ की ममता चाँद का भी सहारा लेती -
चंदा मामा,
आरे आव- पारे आव, नदिया किनारे आव,
दूध-रोटी लेके आव,बेटवा के मुंहवा में गुटुक।
और चंदा मामा को निहारते हुए माँ के हाथों से भोजन का सुख लेता बालक कब उनसे अपना एक रिश्ता बना लेता उसे पता ही नहीं चलता।
वही रिश्ते उसे हमेशा अपनी मिटटी और संस्कृति से जोड़े रहते। आज जब बच्चों को मिट्टी को गन्दा कह हाथ धोने का पाठ पढाना सभ्यता समझी जा रही है तो उसके अपनी मिट्टी से कटने की शिकायत भी अभिभावकों को नहीं होनी चाहिए।
(यदि आपकी यादों में भी बचपन में सुने ऐसे कोई गीत बसे हों तो कृप्या मुझसे भी साझा करें। )
Monday, November 10, 2008
नरसिंह स्थान
झारखण्ड के हजारीबाग जिले में स्थित धार्मिक स्थल 'नरसिंह स्थान ' में आयोजित होने वाला यह एक वार्षिक उत्सव है। यह प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन आयोजित होता है। मान्यता है की लगभग 4०० वर्ष पूर्व स्व० श्री दामोदर मिश्र ने यहाँ नरसिंह भगवान की प्रतिमा स्थपित की थी। प्रारम्भ में कार्तिक पूर्णिमा के उपलक्ष्य में स्थानीय कृषक वर्ग नई फसल के रूप में ईख तथा नए धान को भगवान को अर्पित किया करते थे। इस परम्परा ने आज एक विशाल मेले का रूप ले लिया है और आरंभिक छोटा सा मन्दिर परिसर आज एक भव्य तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित हो चुका है। यहाँ दशावतार मन्दिर, सूर्य मन्दिर और माँ सिद्धिदात्री देवी के मन्दिर सहित कई अन्य प्रमुख मन्दिर भी हैं जिन पर भक्तों की श्रद्धा कायम है.
तो आइये इस बार आप भी कार्तिक पूर्णिमा (१३ नवम्बर) को हजारीबाग, शामिल होने इस प्राचीन और पारंपरिक मेले में।