मकर संक्रांति और पतंगबाजी का गहरा नाता है। B.Sc के दौरान मैंने आपने दोस्तों के साथ 'Dharohar' (An Amateur's Club) के नाम से एक ग्रुप बनाया था और पतंगोत्सव का आयोजन शरू किया था। यह बिना किसी सरकारी सहयोग के युवाओं द्वारा आयोजित झारखण्ड का शायद अकेला प्रयास था।
यही समय होता है जब प्रवासी पक्षी बड़ी तादाद में हमारे यहाँ पहुँचते हैं। पतंगबाजी शायद उनके साथ हमारी सहभागिता की प्रतिक भी है। मगर इस बार PETA (People for the Ethical Treatment of Animals) ने एक महत्वपूर्ण विषय को उठाया है. पक्षियों के समान हमारी भी आकाश में उड़ान की कामना की प्रतीक ये पतंगें इन मासूम परिंदों के लिए नुकसानदेह भी बन जाती हैं. धागे को धार देने के लिए मिलाये गए कांच के टुकड़े इन पंक्षियों को चोटिल कर देते हैं. अच्छी मेहमाननवाजी और सच्ची खेल भावना इसी में है कि हम ऐसी हरकतें न करें, और इस त्यौहार को पतंग उत्सव के रूप में मनाएं, पतंग प्रतियोगिता के रूप में नहीं. (PETA के इस नेक प्रयास में उसे समर्थन दें).
अरे-अरे वो देखिये...चली-चली रे पतंग मेरी...........
8 comments:
एक जमाना था जब हम भी भरी दोपहर में पतंगों के पीछे भागा करते थे। वैसे पतंग उडाने से ज्यादा लूटने में ज्यादा आनंद है।
sahi article hai, yah dekh kar bachpan yad aa gaya
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अभिषेक जी,
भाई इधर तो पतंग कैसे उड़ती है, पता ही नहीं है. पतंग उडानी आती ही नहीं.
सही कहा आपने आज के दिन तो सब तरफ़ सिर्फ़ उडी उडी रे पतंग है :)
bilkul sahi kaha hai is kabile gaur slah par bdhaaiaur shukria
अरे भाई सब से ऊंची पतंग उडाने मै मजा आता था, सारी दोपहर कांच को खुद पीसना, फ़िर उसे धागे पर लगाना, ओर फ़िर घर वालो से पीटना सब याद दिला दिया,
अगर पतंग कट गई तो सारा मांजा लुटा देना, ओर फ़िर से ...
धन्यवाद
ओह तो यह पहलू भी है पतंगबाजी का ?
Mai aap ki baat se sahmat hu...
aapne bahut achhi baat kahi.
apno makar sankranti ki shubhkaamnaye.
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