गंगा पर रेतीला संसार
कलाकार अपनी रचनाशीलता की अभिव्यक्ति के लिए कोई-न-कोई मंच ढूंढ़ ही लेते हैं। पानी की कमी के कारण गंगा के बीच उभर आए रेत के टीलों को ही इसबार अपनी अभिव्यक्ति का मध्यम बना लिया गया, और सैकड़ों कलाकारों, स्कूली बच्चों और आम लोगों ने अपनी कल्पनाशीलता का साक्षी बनाया माँ गंगा को। अवसर था राम छात्पार कला न्यास की ओर से अपने गुरु के जन्मदिन 19 जनवरी को 'रेत में आकृति की खोज' विषय पर आयोजित कला प्रतियोगिता का। वार्षिक आयोजन का रूप ले चुका यह कार्यक्रम काशी की उत्सवप्रियता और रचनाशीलता को एक नया आयाम देता है, और स्थानीय कलाकारों और नागरिकों को अपनी कला की अभिव्यक्ति का अवसर भी। आशा है यह आयोजन अपनी निरंतरता बनते हुए अन्तराष्ट्रीय स्वरुप लेगा। इस अभिनव सोच को क्रियान्वित करने वाले जज्बे को सलाम।
11 comments:
बहुत बडिया जानकारी है धन्यवाद्
vaki mai kalakar apni kala ka pradarshan kahi bhi kar sakta hai.
bahut achha.
कलाकार अपनी पहचान करवा ही देगा ...बढ़िया लगा यह
बहुत सुंदर कला, लेकिन साथ ही साथ गंगा के पानी का भी दुख.
धन्यवाद
सुंदर जानकारी इस प्रतियोगिता की निरंतरता बनी रहे. पूरी के समुद्र तट पर भी रोजाना होता है परंतु वह शायद एक ही व्यक्ति की कृति रहती है. आभार.
http://mallar.wordpress.com
बहुत सुंदर!
जब भी पुरी जाता हूँ तो समुद्र तट पर इस तरह की कलाकारी खूब देखता हूँ. खासकर सुदर्शन जी के बनाये गए तमाम स्कल्पटर.
अभिषेक जी नमस्कार
आजकल तो इलाहाबाद मे माघ मेला चल रहा है ना...
जरा उसके भी दर्शन करा दो. धन्यवाद
ऊपर चित्र मे शायद गंगा जल भी दिख रहा है.
अब तो गंगाजल को भी ढूंढना पडता है.
बहुत सुन्दर, कहते हैं कला अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम खोज ही लेती है।
बहुत अच्छा लगा
नदी किनारे पसरी मिट्टी कब गुड़िया बन जाए,
पर्वत का पत्थर कब मंदिर में पूजा जाए...
जहां भी छिपी हुई कला है,वो अवसर कब खोती है,
जैसा चाहें वो हो जाए किसकी किस्मत होती है।
कला की अभिव्यक्ति के इस माध्यम की बात पढ़कर अपनी कविता का यह छंद याद आ गया। रेत पर स्कल्पचर काफी आकर्षित करते हैं। बढ़िया जानकारी दी आपने।
अच्छी जानकारी दी है आपने....अच्छी लगती है ये कलाकारी....आभार।
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