झारखण्ड के प्रकृति प्रेमी आदिवासियों द्वारा मनाये जाने वाले त्योहारों में एक प्रमुख प्रकृति पर्व है - 'सरहुल'. चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीय से प्रारंभ हो बैसाख तक यानि दो माह तक चलने वाला यह एक अद्भुत धार्मिक त्यौहार है.
'साल' के वृक्ष में फूलों का आना इस त्यौहार के आने का द्योतक है. साल के वृक्ष के अलावे प्रकृति में उपजने वाली सभी वन-सम्पदा का अपनी आराध्य देवी पर अर्पण करने के बाद ही स्वयं इनका प्रयोग आरम्भ करते हैं ये प्रकृति-पूजक.
मुख्यतः संथालों और उरावों द्वारा आयोजित इस पर्व में 'फूल गईल सारे फूल, सरहुल दिना आबे गुईयाँ' जैसे गीतों की ताल पर प्रसिद्द 'सरहुल' नृत्य पर झूमते हुए प्रकृति से अपने जुडाव और आत्मीयता का परिचय देते हैं ये. इस अवसर पर इनके पुजारी जिसे 'पाहन' कहते हैं द्वारा आने वाले समय में मौसम की भविष्यवाणी भी की जाती है. इस वर्ष राज्य में अच्छी बारिश और खेती में समृद्धि की सम्भावना जताई गई है.
एक प्रकार से देखें तो नव वर्ष पर धरती की उर्वरा शक्ति का सम्मान ही है- 'वासंतिक नवरात्र' के ही सामान. ऐसे में इन पारंपरिक त्योहारों और इनके शास्त्रीय स्वरुप में सम्बन्धओं पर एक नए दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता भी महसूस होती है.
तस्वीर: साभार गूगल
7 comments:
मिट्टी की खुसबू महसूस हुई इस पोस्ट से ...अच्छा लगा
Simit shabdo ke sath ek baar fir apne behtreen aur rochak jankari di hai...
बढ़िया जानकारी दी भाई,
मुख्यतः संथालों और उरावों द्वारा आयोजित इस पर्व में 'फूल गईल सारे फूल, सरहुल दिना आबे गुईयाँ' जैसे गीतों की ताल पर प्रसिद्द 'सरहुल' नृत्य पर झूमते हुए प्रकृति से अपने जुडाव और आत्मीयता का परिचय देते हैं ये. इस अवसर पर इनके पुजारी जिसे 'पाहन' कहते हैं द्वारा आने वाले समय में मौसम की भविष्यवाणी भी की जाती है. इस वर्ष राज्य में अच्छी बारिश और खेती में समृद्धि की सम्भावना जताई गई है.
lok jivan se jude is parv ki nayi jankari mili aapse...aabhar...!!
सरहुल , अजी नाम अलग अलग है लेकिन पुरे भारत मै त्योहार लगभग एक जेसे ही है, बहुत ही सुंदर लगा आप का यह लेख बहुत सुंदर जानकारी लिये.
धन्यवाद
झारखंड के आदिवासियों के द्वारा यह त्यौहार वसंत के महीने के आनेद के लिए ही मनाया जाता है ... बहुत अच्छा लगा यह पोस्ट।
सरहुल का विस्तार छत्तीसगढ़ के उरांव अंचल सरगुजा, जशपुर तक है.
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