ब्लौगर मीट की यादों के साये से अभी पुरी तरह निकला भी नहीं था की आभासी जगत के प्रत्यक्ष साक्षात्कार का और अवसर सामने आ ही गया।
विज्ञान लेखन और हिंदी ब्लौगिंग के सशक्त प्रतिनिधि श्री अरविन्द मिश्र जी से पिछले वर्ष 'विज्ञान लेखन कार्यशाला' में मुलाकात हुई थी। हिंदी ब्लौगिंग और विज्ञान लेखन पर और भी कई जिज्ञासाओं की पूर्ति के लिए चाहते हुए भी बनारस में ही रहने के बावजूद उनसे दोबारा मुलाकात नहीं हो पा रही थी. अंततः इस रविवार को आभासी जगत से परे उनसे मिलना तय हो ही गया.
नियत समय पर उनके बताये स्थान पर मैं पहुँच गया, जहाँ से उनके सुपुत्र कौस्तुभ मुझे घर तक ले गए। अपने व्यक्तित्व के अनुरूप पूरी गर्मजोशी से उन्होंने मेरा स्वागत किया और कहीं-से-भी आभासी जगत की दीवार को हमारे बीच नहीं आने दिया.
विज्ञान लेखन और हिंदी ब्लौगिंग की दशा-दिशा सम्बन्धी विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई, जिसमें गंभीर और समर्पित प्रयास की आवश्यकता काफी शिद्दत से महसूस की गई।
भोजन में सारे परिवार की आत्मीयता की झलक तो थी ही, साथ ही था इस परिवार की अभिन्न, शरारती किन्तु आज्ञाकारी सदस्य 'डेजी' का साथ भी।
ब्लौगिंग के बेहतर भविष्य और इसमें अपने सकारात्मक योगदान की आशाओं के साथ हम एक-दुसरे से विदा हुए। मगर यह विदा आभासी ही है वास्तविक नहीं !
हाँ दो दिन व्यस्ततावश इन्टरनेट से दूर रहने के बाद आज एक surprise भी रखा देखा अरविन्द जी के ब्लॉग पर. अपनी चिट्ठाकार चर्चा में मुझे भी शामिल कर उन्होंने मुझपर एक जिम्मदारी डाल दी है. सेलिब्रिटी कांसेप्ट पर तो मैं कुछ नहीं कहूँगा, अलबत्ता इस मुलाकात के बाद उनकी अब मेरे प्रति क्या धारणा है इसकी उत्सुकता मुझे भी रहेगी !
17 comments:
padh kar acha laga
achchha laga jankar ki aap done mile.
ब्लॉगरों को वन विभाग वाले तो पकड़ नहीं सकेंगे. ऐसा करिए, टेलीकम्युनिकेशन वालों को सूचित कर दीजिए.
अच्छा लगा अरविन्द जी से आपकी मुलाकात का किस्सा
Ek achhi mulakaat...
नेक बच्चों के बारे में धारणा तो नेक ही रहती है अभिषेक ,ईमानदारी से अपने प्रयोजनों को हासिल करने में जुटे रहो ! हाँ कौस्तुभ का उलाहना है की उनका सही नाम आपने नहीं लिखा ! बताता चलू समुद्र के चौदह रत्नों में से एक कौस्तुभ मणि है जिसे
विष्णु अपने वक्ष पर धारण करते हैं -यह नाम कौस्तुभ के प्रपितामह का दिया हुआ है ! कौस्तुभ का आग्रह है की यह अतिरिक्त जानकारी मैं जोड़ दूं !
यह सौभाग्य किस्मत वालों को ही मिलता है।
मिश्र जी भले और खुले ब्लागर हैं। हमें न्यौता दे चुके हैं अपने यहाँ आने का। देखते हैं कब मुहूर्त निकलता है।
शुभस्य शीघ्रम द्विवेदी जी !
मिश्र जी से आपकी मुलाकात हो ली और हम अभी जुगाड़ में लगे हैं कि कैसे बनारस पहुँची. पनीर की सब्जी, दही, गरमा गरम फुल्के बुलाने लग गये अब तो हमें...अच्छा लगा पढ़कर.
मुलाकात का बढ़िया ब्यौरा दिया है .
@समीर जी जल्दी आईये तवां गरम है !
अच्छा लगा आपका अर्विँद भाई साहब से यूँ मिलना -हिन्दी ब्लोग जगत आभासी नहीँ अब परिवार सा लगने लगा है !
- लावण्या
बहुत ही अच्छा लगा, खास कर खाने का व्योरा... सभी सब्जियां मेरी पसंद की ओर गर्मा गर्म, चलिये हम भी आ रहे है आप के वनारस मै
धन्यवाद
लगता है अब हमको भी बनारस का रुख करना पडेगा.:) मिश्राजी हमे भी तो खबर कर देते तनिक.
रामराम.
दरवाजे तो मैंने कब के खोल रखे हैं ताऊ आपके लिए !
अभिषेक जी,
अच्छी बात है कि आप एक ब्लोगर से मिले. ऐसी जगहों पर खाना बड़ा ही मस्त मिलता है.
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