विद्वानों की नगरी मानी जाने वाली उत्सवप्रिय काशी में एक शाम महामूर्खों के नाम करने की भी परंपरा है. पहली अप्रैल को गंगा तट पर सालाना आयोजित होने वाले 'महामूर्ख सम्मलेन' ने एक पारंपरिक आयोजन का रूप ले लिया है.
1980 में स्व. चकाचक बनारसी और पं. श्री धर्मशील चतुर्वेदी के सम्मिलित प्रयासों से महामूर्ख सम्मलेन का आयोजन आरम्भ किया गया. विभिन्न पड़ावों से गुजरते हुए और काशी के आम जन से जुड़ते हुए इस आयोजन ने गंगा तट पर अपना स्थाई आशियाना जमा लिया है. लोकप्रिय कवि सांढ़ बनारसी वर्तमान में इस आयोजन के एक प्रमुख स्तम्भ हैं.
इस 1 अप्रैल को भी यह आयोजन अपने पुरे शबाब पर रहा. कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत दूल्हा-दुल्हन के विवाह के साथ की गई, जिसमें दुल्हे की भूमिका स्त्री पात्र और दुल्हन की भूमिका पुरुष पात्र ने निभाई. दुल्हन की मूंछें होने की शिकायत पर शादी के फ़ौरन बाद ही दोनों का तलाक़ भी करा दिया गया.
पारंपरिक धोबी नृत्य आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद हास्य कवियों ने महामूर्ख मेले का शमा ही बाँध दिया. नेता व पुलिस की शान में इस चुनावी मौसम में कुछ ज्यादा ही कसीदे गढे गए.
कार्यक्रम के दौरान हास्य पत्रिका 'पहली अप्रैल' का लोकार्पण भी किया गया. रहमान की 'जय हो' यहाँ भी छाई रही; जो कि सम्मलेन की थीम भी थी.
अंत में कवि अशोक सुन्दरानी की चंद पंक्तियाँ आपकी नजर-
"देश में मेरे नफरतों का मौसम है,
नफरत की सीढ़ी से सत्ता पाने का सीजन है;
जनता के दर्दो से इनका लेना देना क्या,
इनका तो कुत्ता भी नखरे से करता भोजन है."
15 comments:
काशी के महालंठ सम्मेलन के बारे में भी बहुत सुन रखा है। इच्छा है कि इन दोनों में कभी शामिल होने का अवसर मिले।
वाह !! रोचक खबर ।
रोचक लगा यह ..शुक्रिया
आप भी वहां थे या नहीं !
अरविन्द जी, तभी तो विवरण दे पाया हूँ1
'धरोहर' के लिए हर रूप धरना पड़ता है. :)
रोचक खबर शुक्रिया
Ye apne bahut achhi aur majedaar khabar batai hai...
इस पोस्ट को थोड़ा और विस्तार दिया होता. मसलन सभी कवियों के नाम व दो-दो चार-चार पंक्तिया भी.
वैसे एक नीतिवाक्य आपको समर्पित करता हूं कि 'इस चालबाज दुनिया का असली आनंद मूर्ख होकर ही लिया जा सकता है'.. खैर.. बधाई इस पोस्ट के लिये.
अभिषेक जी
एक रात काशी के महामूर्खों के साथ भले ही आपको गुजारनी पडी हो पर असर परिलक्षित न हुआ.
कहीं आप चन्दन सरीखे तो नहीं...................हमारा नमन.
सुन्दर प्रस्तुति से हम सभी को अवगत करने का शुक्रिया. वैसे थोडा विस्तार देते तो हम सभी को अतिप्रस्संनता होती. फिर भी सच्चे भावों के हर प्रस्तुति का स्वागत किया ही जाना चाहिए.
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत खूब जानकारी.. ऐसा जयपुर में भी महामूर्ख कवि सम्मेलन के रूप में होता है..
बहुत बढिया।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
ब्लागिंग की मूर्खता अपनाने के बाद, तीन वर्षों से यह सम्मेलन छूट जा रहा है ।
कोई रिकार्डिंग मिल सकती है, क्या ?
aapke madhyam se yah jaankari humko mili iske liye aapko shukria ....
बहुत शानदार खबर...बधाई..
रचना बहुत अच्छी लगी,बधाई।
मैनें आप का ब्लाग देखा। बहुत अच्छा
लगा।आप मेरे ब्लाग पर आयें,यकीनन अच्छा
लगेगा और अपने विचार जरूर दें। प्लीज.....
हर रविवार को नई ग़ज़ल,गीत अपने तीनों
ब्लाग पर डालता हूँ। मुझे यकीन है कि आप
को जरूर पसंद आयेंगे....
- प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
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