ऐसी ही घटनाओं की कड़ी में अब हजारीबाग के पाषाण वृत्त (Stone Circle) भी आ गए हैं. जिस प्राकैतिहसिक धरोहर के साथ इस क्षेत्र को अन्तराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र में देखने की कल्पना की जा रही थी, उसकी दुर्दशा दिल को तोड़ देने वाली है. अन्वेषक श्री शुभाषिस दास के एकल प्रयासों से यह स्थल 'समदिवारात्रि' (Equinox) देखने के विश्व में एकमात्र प्राकैतिहसिक स्थल के रूप में विकसित हो रहा था. विरासत की सुरक्षा से जुड़े उच्चतम संस्थानों के अलावा प्रशासन भी इस स्थल की महत्ता से वाकिफ था, मगर इस स्थल की सुरक्षा को तमाम आग्रह के बावजूद नजरअंदाज किया गया. परिणाम ? आज यह स्मारक भी किसी की प्यार की निशानी के घाव अपने सीने पर झेलने को विवश है.
प्रशासन से भी कहीं ज्यादा ऐसे मामलों में स्थानीय जनता दोषी है जो अपनी विरासत के प्रति उपेक्षा का भाव रखती है. हो सकता है रोटी-रोजगार का दबाव इस विषय को हमारी प्राथमिकता सूची में नहीं आने देता, मगर खास ऐसे उद्देश्यों के लिए निर्मित सरकारी विभाग भला किस काम के हैं? 'विश्व विरासत दिवस' पर रूटीन जुमलों और औपचारिकताओं के अलावे अपने आस-पास बिखरी अमूल्य धरोहर को सहेजने की दिशा में सार्थक पहल ही हमें अपनी विरासत पर गर्व करने के अवसर उपलब्ध करा सकेगी.
14 comments:
विश्व विरासत दिवस पर आपने हमें हमारे दायित्वों की याद दिलाई _आभार !
आपने सही लिखा है. जागरूकता का आभाव है. स्मारकों पर नाम गोदने की वैसे पुरानी परंपरा रही है. कुछ बहुत ही पुराने मंदिरों में दीवारों पर कुछ नाम खुदे मिलते हैं. जो तीर्थ यात्रियों के होते हैं. पिल्ग्रिम्स रिकॉर्ड. यह कहने का हमारा कतई उद्देश्य नहीं है कि हमारे धरोहरों के साथ इस तरह का दुर्व्यवहार किया जावे.
ेआपने सही लिखा है आभार्
जागरूकता का अभाव तो सदा से ही रह है।पता नही कब जागेगें ।आप ने अच्छी पोस्ट लिखी।आभार।
aapne ek bahut gambhir mudde pe bahas shuru ki hai...
'विश्व विरासत दिवस' पर मर्मस्पर्शी लेख के लिए आपका आभार।
अपनी इस विकृत मानसिकता पर केवल अफ़सोस ही जाहिर कर सकते हैं.
Ye upechha har jagah maujood hai.
विश्व बिरासत दिवस पर आपका मर्मस्पर्शी लेख आजकी साक्षर हो रही जनता के वास्तविक अज्ञान को पुख्ता ही करता है, तभी तो वह अनावश्यक हरकते एक चंचल अबोध बालक की तरह कर बैठता है, कारन चाहे जो भी हो पर एक बात सत्य है कि ऐसे गंदी हरकतें साक्षरों का अज्ञान ही प्रतिबिंबित करती हैं.
सुन्दर विचार, सुन्दर प्रस्तुति, मेरा भारत महान, देश के निवासी ?????????????????????
चन्द्र मोहन गुप्त
आपने सही लिखा है.....
जागरूकता का अभाव तो सदा से ही रह है।पता नही कब.......aawaaj uthegi aur ham ....
kuchh kar payege...
हमारे हालात ऐसे हैं की जब तक कुछ बर्बाद न हो जाये हम उस और ध्यान ही नही देते हैं
Dharohar pe likha har lekh hame sochneke liye vivash karta hai...mai hamesha padhtee hun...lekin kya tippanee karun...kya ho ke maibhi kuchh kar sakun, is vicharke saath laut jaatee hun...
koshish kar rahee hun apne bunkaronke utthaanke liye...paryawaranke liye...lekin ye tamam koshishe bohot chhoti hain..
प्रिय बंधु -बहुत ही समयानुकूल बात कही है आपने और आपका सवाल भी प्रशासन से नहीं बल्कि आम जनमानस से है /नितांत सत्य है कि हमें अपनी विरासत पर गर्व करने के साथ उसकी हिफाजत के प्रति भी सजग रहें /किसी हद तक आपका कहना भी सही है कि रोजी रोटी का दबाव इस विषय को प्राथमिकता की सूची में नहीं आने देता होगा किन्तु जो संपन्न है वे भी तो उदासीन हैं / सरकारी विभाग ठीक है अपनी जगह कार्य कर रहे है ,वहां के कर्मचारी काम कर रहे है क्योंकि उन्हें इस बात की तनखा मिल रही है मगर हमें भी अपना कर्तव्य एक अवैतनिक कर्मचारी के रूप में निभाना चाहिए /धरोहर सहेजने की दिशा में आपका लेख सराहनीय है तथा आपके ब्लॉग के नाम को सार्थक कर रहा है /
आपने बिल्कुल सठिक फ़रमाया है! बहुत खूब!
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