Wednesday, July 22, 2009

यूँ देखा मैंने पूर्ण सूर्यग्रहण


पूर्ण सूर्यग्रहण

सदी के इस सबसे महत्वपूर्ण सूर्यग्रहण को देखने की उत्कंठा पिछले कई दिनों से थी। मगर मौसम का ख्याल भी नकारात्मक विचार उत्पन्न कर रहा था (वैसे बारिश को लेकर बनारस के मौसम के प्रति मैं अतिआश्वस्त ही रहता हूँ)। फ़िर भी कल शाम हुई हलकी बारिश ने मेरे जैसे कई खगोल्प्रेमियों के दिलों की धड़कनें तो बढ़ा ही दी थीं।
दूसरी ओर हमारे अरविन्द मिश्र जी भी इस परिघटना के अवलोकन के लिए उतने ही उतावले थे , हमने साथ ही बनारस के 'सामने घाट' नामक घाट पर गंगा के किनारे अन्य खगोल्प्रेमियों के साथ इस ग्रहण का साक्षात्कार करने का निर्णय ले लिया था।
डाक विभाग की मेहरबानी से १ सप्ताह पहले ही चल पड़े 'सन गोगल्स' कल शाम तक नहीं पहुँच पाए थे, ऐसे में देर रात वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर मैं एक 'वेल्डिंग ग्लास' प्राप्त करने में सफल हो ही गया।
सुबह साफ़ आसमान ने जहाँ हमें तसल्ली दी, वहीं अरविन्द जी के कुछ अतिथियों को भी कार्यक्रम में शामिल करने की आकांशा ने कार्यक्रम स्थल में आंशिक परिवर्तन भी करा दिया। अंततः यह खगोल प्रेमी गंगा तट पर एक उपयुक्त स्थल पर इकट्ठी हो ही गई। इसमें हमारे साथ अरविन्द जी की धर्मपत्नी, उनके पुत्र कौस्तुभ, पुत्री, दिल्ली से आईं प्रो. मधु प्रसाद तथा उनके पुत्र कनिष्क उपस्थित थे। बनारस यात्रा पर आए कुछ विदेशी सैलानी भी हमारे इस आयोजन में शामिल हो गए।
5:30AMसे ही सूर्य पर चंद्रमा की छाया नजर आने लगी थी। कौस्तुभ द्वारा आनन-फानन में तैयार 'पिन होल कैमरा', X -Ray प्लेट तथा वेल्डिंग ग्लास ने इस दृश्य को सुलभ बनने में अविस्मर्णीयभूमिका निभाई। अपने कैमरों की लिमिट के बावजूद हमने तस्वीरें तो ली हीं ; मगर कनिष्क जी जो सिर्फ़ ग्रहण देखने के ही उद्देश्य से बनारस पधारे थे अपनी कमाल की तस्वीरों से तो बस छा गए !
पूर्ण सूर्यग्रहण, डायमंड रिंग, कोरोना जैसी घटनाओं का साक्षी बनना, सुबह-सुबह ही शाम सा माहौल, घाटों पर बत्तियां जल जन, थोडी सी ठंढ और पक्षियों का अपने घोसलों की ओर वापसी अविस्मरनीय अनुभव थे।
अरविन्द जी ने ग्रहण के दौरान स्नैक्स वितरित कर ग्रहण के दौरान खान-पान को लेकर भ्रान्ति दूर करने का भी एक सार्थक प्रयास किया।
सपरिवार अरविन्द मिश्र जी, प्रो. मधु प्रसाद, कनिष्क, मैं और उपस्थित सैलानी
कुछ ग्रुप फोटोग्राफ्स और अनिवर्चनीय यादों के साथ एक तरफ़ हमारा यह कार्यक्रम समाप्त हो रहा था, जबकि दूसरी ओर घाटों पर अपार जनसमूह धर्म और आस्था के संगम में दुबकी लगाने को बढ़ता चला जा रहा था। इसे देख मैं इसी प्रश्न का उत्तर तलाशने को उत्सुक था कि अन्धविश्वास में विज्ञान की तुलना में ज्यादा आकर्षणआख़िर कैसे उत्पन्न हो जाता है !

14 comments:

अनिल कान्त said...

आपकी पोस्ट से वहाँ के बारे में पता चला ...फोटो अच्छा है

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

दिगम्बर नासवा said...

लाजवाब चित्र के साथ apka grahan darshan kathaa padh कर mazaa आ gaya..........

संगीता पुरी said...

हमलोग तो नहीं देख पाए .. आपके चित्रों को देखकर और विस्‍तृत विवरण पढकर अच्‍छा लगा।

Science Bloggers Association said...

Aapse thori thri jalan ho rahi hai.
H h ha.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Gyan Dutt Pandey said...

अच्छा! आपने वैज्ञानिक और मैने आस्था वाला पक्ष देखा!

Vineeta Yashsavi said...

Taiyari to maine bhi kar rahki thi grahan dekhne ki...per subah mausam kharaab ho gaya aur barish shuru ho gayi...isliye hum to bas TV pe hi dekh paye...

aapke paas aur pictures hai to unko bhi jarur lagaiyega...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आप भाग्यशाली हैं।
बधाई!

समयचक्र said...

रोचक पल बांटने के लिए आभार.

Manish Kumar said...

आज दिन में अफलू भाई ने कुछ खूबसूरत चित्र दिखाए थे और आपने भी पूर्ण सूर्यग्रहण का मंज़र सामने ला कर रख दिया। हम तो यही कहेंगे कि आज काशी बनारस वालों की मौज रही !

P.N. Subramanian said...

आप लोगों को बधाई. हम यहाँ भोपाल में रह कर भी मेघ मल्हार सुनने के लिए मजबूर रहे.

roushan said...

ओह तो सूर्यग्रहण था? हमें तो पता तक नहीं चला

hem pandey said...

बनारस भाग्यशाली रहा कि बादलों की मार नहीं पड़ी.

नीरज मुसाफ़िर said...

abhishek ji,
ham to us samay soye pade the. jab tak uthe tab tak grahan khatm ho chuka tha.

संगीता-जीवन सफ़र said...

इस फ़ोटो के जरिये हम भी पूर्ण सूर्यग्रहण देख रहे हैं!

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