अरुणाचल से बनारस वाया गोहाटी जाने के क्रम में गोहाटी स्टेशन पर आदतन 'व्हीलर स्टाल' पर थोड़ी तफरीह की. (व्हीलर नाम का क्या अब तक ब्रिटिश शासन से भी कोई संबंध है क्या !)
इसी कम में 'पाओलो कोएलो' रचित 'अल्केमिस्ट' के उसी नाम के हिंदी अनुवाद पर नजर पड़ी. मूल रचना को हिंदी में प्रवाह के साथ पढने की प्रवृत्ति के कारण अनुवाद बहुधा आकर्षित ही करते हैं, और ऐसे में अनुवादक के रूप में 'कमलेश्वर साहब' के नाम ने पुस्तक को स्टाल से उठा मेरे हाथों तक पहुंचा ही दिया. मगर सफ़र के एक तिहाई से भी कम पलों में पुस्तक ने साथ छोड़ दिया मनो - मस्तिष्क पर एक यादगार छाप छोड़ कर.
सहज ही नायक से तादात्मय स्थापित कर लेने वाले आम हिंदी दर्शक या पाठक को कथानक न सिर्फ पूरी अवधि में बांधे रखता है,अपितु अंत में एक तृप्ति भरी मुस्कान को स्वतः ही अपने चेहरे पर ले आने का भरोसा भी देता है. वैसे भी एक नियति, एक खजाने की तलाश तो हर मन में कहीं - न - कहीं तो रहती ही है.
उपन्यास पढता देवसाहब की 'गाईड' की भी बरबस याद आई और लगे हाथ एक विचार भी क़ि 'Slumdog Millionnaire' की जोड़ी के साथ इस उपन्यास पर फिल्म बनाने का आईडिया क्यों न दे दूँ. सुझाव देने में हम हिन्दुस्तानियों का कोई जोड़ है क्या !
चलते-चलते इस उपन्यास की एक प्रमुख उक्ति (जिसे शायद आपने कहीं सुना तो होगा... :-) )
"... जब तुम वास्तव में कोई वस्तु पाना चाहते हो तो संपूर्ण सृष्टि उसकी प्राप्ति में मदद के लिए तुम्हारे लिए षड्यंत्र रचती है "
(आपको नहीं लगता क़ि 'ओम शांति ओम' में 'साजिश' और यहाँ 'षड्यंत्र' शब्द का प्रयोग अनुवादात्मक त्रुटी है ! )
6 comments:
बड़े दिनों बाद ...आशा है आप ठीक होंगे.
अनुवाद में त्रुटि लग रही है -शायद भाव यह है की समस्त नैसर्गिक स्थितियां आपकी प्राप्ति के विरुद्ध षड्यंत्र करती हैं -???
संभावानायें जुटाना ठीक शब्द हो शायद ।
ना कुछ करने से तो कुछ करना बेहतर है!
इस पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_03.html
यह लिंक उपलब्ध करने के शुक्रिया रूपचंद्र जी.
मुझे भी लगता है कि 'साजिश' या षड़यंत्र' की जगह प्रयास या कोशिश शब्द का प्रयोग ज्यादा उचित होता.
"इतनी शिद्दत से तुम्हे पाने की कोशिश की है,
जर्रे-जर्रे ने तुमसे मिलाने की साजिश (!) की है"
("ओम शांति ओम")
सर इतने दिनों के बाद, एक नई चर्चा के साथ. अच्छा लगा पढ़ कर.
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