हावड़ा से गोहाटी लौटता हुआ दमदम एअरपोर्ट पर 'डोमिनिक लेपियर ' की 'City of Joy' के हिंदी अनुवाद 'आनंद नगर' पर नजर पड़ी, जिसे पढने की उत्कंठा रोक न सका और इसे आज ही समाप्त की है. कोलकाता जैसे महानगर की पृष्ठभूमि में सारे भारत की ही विशिष्टता को प्रदर्शित करने वाली यह पुस्तक पिछले कुछ दशकों में बदलते कोलकाता और उससे जुड़े आम लोगों की जिंदगी को बखूबी अभिव्यक्त करती है. जमीन से कटे, बेगारी से हाथ रिक्शा खींचती किसानों की व्यथा, जिंदगी की जद्दोजहद, कोलकाता में स्थित छोटा सा भारत 'आनंद नगर' , कम्युनिस्ट आन्दोलन, मदर टेरेसा और अन्य मिशनरी सेवाएं आदि समकालीन कोलकाता का बखूबी चित्रण करती है यह पुस्तक. हाँ दीवाली के बाद दुर्गा पूजा का जिक्र जैसी बातें एक बारगी चौंकाती जरुर हैं, मगर कोलकाता के परिवेश को एक नए दृष्टिकोण और समग्र रूप से व्यक्त करने में यह पुस्तक अनूठी है. वाकई यह पुस्तक भारत के सन्दर्भ में आशा की एक नई दृष्टि देती है.
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5 comments:
आनद नगर पढ़कर आपने अच्छा किया !
कभी अवसर मिला तो हम भी यह पुस्तक पढ़ेंगे!
कोलकता जीवन्त शहर है ।
अच्छी जानकारी मिली आपकी पोस्ट से .पढ़ने के लिए अच्छा नाम सुझाया आपने
आभार
अब तो इसे खोज कर पढना पड़ेगा। शुक्रिया।
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