इलेक्ट्रिकल वस्तुओं के स्टोर के रूप में तेजी से उभर रहे टाटा क्रोमा रिटेल स्टोर के उस विज्ञापन पर आपकी नजर जरुर गई होगी जिसमें एक व्यक्ति खुद को ही मुक्के मार रहा है कि “उसने इतनी अच्छी दुकान छोड़ कहीं और से सामान क्यों लिया ?” मगर मैं अपने अनुभव से आपको आगाह कर रहा हूँ कि यदि इस एड पर ही भरोसा करके गए तो शायद उक्त इंसान की जगह आप खुद को ही पाएंगे.
अपने उत्पाद की बिक्री के सिवा ग्राहकों की सुविधा से इन्हें कोई वास्ता नहीं. शिकायत या सामान
रिटर्न करने की भी इनकी प्रक्रिया पेचीदा ही है.
मैंने इंटरनेट के नियमित उपभोग के लिए यहाँ से 31 जनवरी को ‘टाटा फोटोन +’ खरीदा, जिसका कनेक्शन 9/10 तारीख तक कट गया. कस्टमर सेंटर ने इसका कारण पेपर्स का समय पर न पहुँचना बताया. 11 को इसके स्टाफ मि. चेतन जो इसके सेल को देखते हैं से बात करने पर उन्होंने कहा कि आज ही आपको कोई और तस्वीर देने को कहा गया है. मैंने 12 को तस्वीर उन्हें दीं. 15 तक फिर कोई प्रगति नहीं हुई. पुनः संपर्क कर मैंने उनसे कहा कि आपको कष्ट हो तो पेपर्स मुझे दे दें, मैं खुद ही उन्हें डीलर को पहुँचा दूँगा. फिर मैंने उनसे उस व्यक्ति का नंबर लिया जो इनके अनुसार पेपर्स डीलर को सौंपते हैं. पहली बार फोन करने पर उस सज्जन ने बताया कि उसे पेपर्स मिले ही 15 को हैं और उसने उन्हें सबमिट कर भी दिया है. इसके बाद भी कोई प्रगति न होने पर मेरी छोडिये ‘टाटा इंडीकोम’ के कर्मचारियों द्वारा फोन करने पर भी इसने कहना शुरू कर दिया कि वो ‘विजेन्द्र’ नहीं ‘विवेक’ है.
अंततः मैं एक बार फिर २० फरवरी को श्रीमान चेतन से मिला और उन्हें समझाया कि वो मुझे पुलिस या उपभोक्ता अदालत की ओर जाने को विवश कर रहे हैं. इसके बाद उनमें शायद अपने दायित्वबोध की भावना जगी और 22 को मुझे SMS द्वारा अपने पेपर्स वेरिफिकेशन की सुचना मिल गई.
इस पूरे उपक्रम में सिर्फ टाटा इंडिकॉम के कस्टमर केयर अधिकारियों न ही अपनी ओर से पूरा सहयोग दिया. मगर पेपर्स सबमिट होने तक वो भी कुछ विशेष कर पाने की स्थिति में नहीं थे.
मैंने इस संबंध में कई दिनों से कोशिश करते हुए क्रोमा की साईट पर कम्पलेन करने में आज सफलता पाई है, (यह भी कोई सहज प्रक्रिया नहीं थी) देखें क्या नतीजा निकालता है ! टाटा के ही ग्रुप का एक भाग होते हुए क्रोमा की यह स्थिति निराश करती है और आगे कभी उससे खरीददारी को हतोत्साहित ही करती है. कस्टमर केयर संबंधी क्रोमा की और भी कई शिकायतें इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं. हो सकता है कि यह सिस्टम की न होकर कुछ स्टाफ्स की व्यक्तिगत लापरवाही का ही नतिजा हों, मगर एक प्रतिष्ठित ब्रांड के नाम को कलंकित करने के लिए काफी हैं ये उदहारण. आशा करूँ कि प्रबंधन स्वयं को सरकारी बाबु समझ रहे इन कर्मचारियों की नकेल खिंच ग्राहकों को ऐसी असुविधाओं से बचाने की दिशा में गंभीर होगा.
बहरहाल इस पोस्ट के माध्यम से अपने ब्लौगर साथियों को आगाह करने का अपनी ओर से प्रयास तो मैंने कर ही दिया है.
2 comments:
हमारी लापरवाही और उदासीनता ऐसे लोगों को बढ़ावा देती है, आपकी जागरूकता रंग लाएगी
इन्हे वकील के जरिये नोटिस भेजे, लूट मची हे भारत मे तो हर कोई लूट लेना चाहता हे
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