हर ओर होली का उल्लास है, मगर ब्रज की होली की बात ही कुछ और है; साथ में अगर कान्हा भी शामिल हों तब तो होली के आनंद अलहदा ही है.
रंगों भरी होली से तो अपनी दूरी ही है, मगर साहित्यिक और आत्मिक होली (अपने-आप के साथ J) का आनंद जरुर उठा लेता हूँ. इस बार वृन्दावन की होली देखने का कार्यक्रम तो अनिश्चित ही है, मगर आपसे साझा कर रहा हूँ नजीर अकबराबादी साहब की देश की गंगा-जमुनी होली की शाब्दिक प्रस्तुति और ब्रज की होली के एक मंचीय प्रस्तुति से एक झलक.
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।
हो नाच रंगीली परियों का, बैठे हों गुलरू रंग भरे
कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे
दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे
कुछ तबले खड़कें रंग भरे, कुछ ऐश के दम मुंह चंग भरे
कुछ घुंगरू ताल छनकते हों, तब देख बहारें होली की
गुलज़ार खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो।
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो।
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो और हाथों में पिचकारी हो।
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो।
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की।
और एक तरफ़ दिल लेने को, महबूब भवइयों के लड़के,
हर आन घड़ी गत फिरते हों, कुछ घट घट के, कुछ बढ़ बढ़ के,
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के, कुछ होली गावें अड़ अड़ के,
कुछ लचके शोख़ कमर पतली, कुछ हाथ चले, कुछ तन फड़के,
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों, तब देख बहारें होली की।।
ये धूम मची हो होली की, ऐश मज़े का झक्कड़ हो
उस खींचा खींची घसीटी पर, भड़वे खन्दी का फक़्कड़ हो
माजून, रबें, नाच, मज़ा और टिकियां, सुलफा कक्कड़ हो
लड़भिड़ के 'नज़ीर' भी निकला हो, कीचड़ में लत्थड़ पत्थड़ हो
जब ऐसे ऐश महकते हों, तब देख बहारें होली की।।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।
हो नाच रंगीली परियों का, बैठे हों गुलरू रंग भरे
कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे
दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे
कुछ तबले खड़कें रंग भरे, कुछ ऐश के दम मुंह चंग भरे
कुछ घुंगरू ताल छनकते हों, तब देख बहारें होली की
गुलज़ार खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो।
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो।
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो और हाथों में पिचकारी हो।
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो।
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की।
और एक तरफ़ दिल लेने को, महबूब भवइयों के लड़के,
हर आन घड़ी गत फिरते हों, कुछ घट घट के, कुछ बढ़ बढ़ के,
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के, कुछ होली गावें अड़ अड़ के,
कुछ लचके शोख़ कमर पतली, कुछ हाथ चले, कुछ तन फड़के,
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों, तब देख बहारें होली की।।
ये धूम मची हो होली की, ऐश मज़े का झक्कड़ हो
उस खींचा खींची घसीटी पर, भड़वे खन्दी का फक़्कड़ हो
माजून, रबें, नाच, मज़ा और टिकियां, सुलफा कक्कड़ हो
लड़भिड़ के 'नज़ीर' भी निकला हो, कीचड़ में लत्थड़ पत्थड़ हो
जब ऐसे ऐश महकते हों, तब देख बहारें होली की।।
फूलों भरी होली में खुद ही कूद पड़े कृष्ण |
आज न छोडेंगे राधे को... |
अलौकिक होली |
यदा - यदा हि धर्मस्य |
होली मुबारक.
7 comments:
आप को सपरिवार होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर चित्र .......
बेहतरीन रचना पढवाई आपने..... आभार
रंग पर्व की मंगलकामनाएं
होली की शुभकामनायें .....हैप्पी होली
बहुत सुन्दर!
आपको पूरे परिवार सहित होली की बहुत-बहुत शूभकामनाएँ!
बेहतरीन रचना पढवाई आपने, होली का रंग जम गया.
आप को सपरिवार होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
लाजबाब अभिषेक जी !
होली का एक नया ही रूप ! एक नई तस्वीरों की सोगात !धन्यवाद ..गुजरी होली की अनेको अनेक बधाईया ..
bahut khub to aap rango ki holi se dur rehate hai per bhav bhakti ki holi se to jude hue hai na.yahi hona chiye jo us ke rang mein rang gaya usse kisi aur rang ki kya jarurat hai.
happy holi radhe radhe
Post a Comment