Tuesday, October 18, 2011

सीमान्त प्रान्तों के विकास में जल संसाधनों की भूमिका

देश के सीमान्त प्रदेश अपनी प्राकृतिक समृद्धि से ओत-प्रोत हैं, मगर विकास के मानकों से काफी पीछे भी. यही कारण है कि अशिक्षा, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से ग्रसित इन प्रान्तों में उपनने वाले आक्रोश को उग्र अभिव्यक्ति दिए जाने के प्रयास भी किये जाते रहे हैं. स्वावलंबी बनने के लिए सिर्फ पर्यटन और पर्यटकों की कृपा दृष्टि पर आश्रित व्यवस्था से मैं सहमत नहीं. उन्हें अपने उपलब्ध संसाधनों का समुचित विकास कर देश की अर्थव्यवस्था में भी अपना योगदान सुनिश्चित करना होगा, तभी वे सही मायने में इस देश के महत्वपूर्ण अंग कहे जा सकेंगे.
'राजभाषा ज्योति' में प्रकाशित लेख 

नौर्थ - ईस्ट हों या जम्मू कश्मीर ये प्रदेश जल संसाधनों से समृद्ध हैं, और यही इनकी ताकत भी हैं. ये सभी प्रदेश खनन आदि की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माने नहीं जा सकते. साथ  ही जल उर्जा अन्य विकल्पों की तुलना में अपेक्षया प्रदुषण रहित भी है. ऐसे में निश्चित रूप से इस विकल्प का उपयुक्त विकास किया जाना चाहिए.  

जिस प्रकार कोई ईमारत अपने मजबूत पायों पर ही सुदृढ़ हो सकती है, उसी प्रकार किसी देश की समृद्धि, सुरक्षा, आदि अपने चारों कोनों की सुदृढ़ता पर ही निर्भर कर सकती है. 

इन्ही विचारों को मैंने उक्त लेख में रखने का प्रयास किया है जो एन. एच. पी. सी. की हिंदी पत्रिका 'राजभाषा ज्योति' में प्रकाशित हुई है. 

आशा है आपकी भी प्रतिक्रिया तथा सुझाव प्राप्त होंगे.

10 comments:

आशा बिष्ट said...

kya vikas ke nam par har 5km par bandh nirman[jaisa ki uttarakhand me ho raha hai]kar jaiv vividhata ko nasht karna achchha hai?

अभिषेक मिश्र said...

आशा बिष्ट जी,

जैवविविधता का नुकसान किसी भी सूरत में अच्छा नहीं, मगर छोटे बांधों के विकल्प के लिए भी उत्तराखंड में आवाज उठाई गई है, प्रयास किये गए हैं. मगर बिना अपने संसाधनों के संतुलित इस्तेमाल किये सिर्फ केंद्रीय सहायता पर आश्रित रहना भी तो समेकित विकास का आधार नहीं बन सकता.

P.N. Subramanian said...

किसी भी राज्य के विकास में जलसंसाधनों की अहमियत को झुटलाया नहीं जा सकता. विकास की दौड़ में पर्यावरण पर जो अघात किये जा रहे है उसका प्रतिकूल प्रभाव अनावृष्टि के रूप में अथवा जलसंसाधनों की विलुप्ति के रूप में हम देख ही रहे हैं.

रचना दीक्षित said...

सच कहा है आपने. देश के विकास में सभी का साथ जरुरी है और सभी का विकास जरुरी है. इसमें अन्यथा की गुंजाइश ही नहीं है.

रविकर said...

उपलब्ध संसाधनों का समुचित विकास कर देश की अर्थव्यवस्था में भी अपना योगदान सुनिश्चित करना होगा ||

बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||

बधाई स्वीकारें ||

anshumala said...

ऐसा नहीं है की पर्यटन से काम नहीं चल सकता है गोवा इसका प्रत्यक्ष उदहारण है जहा पर्यटन ही सबसे बड़ा उद्योग है | आप पर्यटकों को प्रकृति देखने के लिए बुलाइए ये प्रकृति और लोगो के लिए ज्यादा अच्छा है मुकाबले उसका दोहन अन्य तरीको से करने के | किन्तु इसके लिए सरकारों को ही आगे आना होगा | हमरे यहाँ पूर्वोत्तर के लोगो के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है जैसे वो देश का हिस्सा हो ही नहीं |

अभिषेक मिश्र said...

सहमत हूँ आपसे अंशुमाला जी कि पर्यटन प्रकृति केंद्रित ही होना चाहिए, किन्तु आप भी अवगत हैं कि इनका दोहन अन्य तरीकों से ही ज्यादा होता है. इसके अलावे ये पर्यटक अपने प्रभाव से स्थानीय संस्कृति और परिवेश को भी नकारात्मक तरीके से ही ज्यादा प्रभावित करते हैं. गोवा इसी मायने में अलग है कि वो समर्थ है अपने परिवेश में आगंतुकों को रंगने में और इसमें उसके समृद्ध और स्वावलंबी होने का भी योगदान है और यहीं अल्पविकसित क्षेत्र उससे अलग हो जाते हैं.

Jyoti Mishra said...

this clearly shows uneven n biased development goin on in our country..

a contemporary post.. which definitely deserves a read :)

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

देश के सर्वांगीण विकास के लिए सम्यक प्रयास अत्यंत आवश्यक हैं

मनोज कुमार said...

आपने बहुत ही सही कहा है। जो इनका है उसे उन्हें समुचित उपयोग करना चाहिए।

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